सनातन धर्म में प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्गा अष्टमी पर्व मनाया जाता है। यह तिथि माता पार्वती के रौद्र रूप मां काली की पूजा के लिए शुभ मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, जिस प्रकार मां काली, माता पार्वती का रौद्र रूप है, उसी प्रकार बाबा भैरव भी भगवान शिव के रौद्र रूप है। इसलिए मान्यता है कि दुर्गा अष्टमी पर बाबा भैरव के स्वर्णाकर्षण रूप की पूजा करने से आर्थिक समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए श्री मंदिर द्वारा दुर्गा अष्टमी के शुभ अवसर पर काशी के श्री बटुक भैरव मंदिर में स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जाप, बटुक भैरव स्तोत्र पाठ एवं हवन का आयोजन कराया जा रहा है। भैरव का अर्थ है 'रक्षा करने वाला।' बाबा भैरव भगवान शिव के पांचवे अवतार हैं, जिनके दो मुख्य रूप हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। कथा के अनुसार, एक बार जब माँ पार्वती ने दारुक नमक असुर का वध करने के लिए माँ काली का विनाशकारी रूप धारण किया तो वो नियंत्रण से बाहर हो गयीं। माता को पुनः चेतना में लाने के लिए भगवान शिव ने एक पांच साल के बालक का रूप धारण किया और देवी को माँ कहकर पुकारने लगे जो सुनकर माँ का ह्रदय पिघल गया और उन्होंने वापस पार्वती का रूप धारण कर लिया। माता को शांत करने के लिए भगवान शिव ने जिस रूप को धारण किया था उन्हीं को 'बटुक भैरव' कहते हैं।
भगवान भैरव के बाल रूप श्री बटुक भैरव को धन और समृद्धि का दाता माना जाता है। इसलिए भगवान बटुक भैरव की पूजा करने से अत्यंत शुभ फल प्राप्त होते हैं। वहीं शास्त्रों के अनुसार, स्वर्णाकर्षण भैरव पूजा धन और समृद्धि को आकर्षित करने के लिए की जाती है, जिससे आठ महान सिद्धियों की प्राप्ति होती है। भगवान भैरव के इस रूप की पूजा करने से ऋण मुक्ति, आर्थिक समृद्धि, जीवन में स्थिरता और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है। भगवान शिव के निवास स्थान काशी में यह पूजा करना और भी शुभ माना जाता है क्योंकि भगवान भैरव को भगवान शिव के रूपों में से एक के रूप में जाना जाता है। इसलिए मासिक दुर्गा अष्टमी के शुभ अवसर पर काशी के श्री बटुक भैरव मंदिर में आयोजित स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जाप, बटुक भैरव स्तोत्र पाठ एवं हवन में श्री मंदिर द्वारा भाग लें और बाबा भैरव से ऋण मुक्ति, आर्थिक समृद्धि एवं स्थिरता का आशीर्वाद प्राप्त करें।