🪷 काल भैरव जयंती का महत्व इसलिए बेहद ख़ास है, क्योंकि इस अष्टमी तिथि पर भगवान शिव ने अपने उग्र स्वरूप ‘काल भैरव’ को प्रकट किया था। काशी को भगवान शिव का निवास माना गया है और वहाँ काल भैरव को ‘काशी के कोतवाल’ अर्थात रक्षक कहा गया है। शास्त्रों में उन्हें तंत्र साधनाओं के स्वामी और देवी उपासना के मार्गदर्शक के रूप में भी वर्णित किया गया है।
इस दिन भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव के साथ-साथ देवी के उग्र रूपों की भी पूजा की जाती है। जिस प्रकार काल भैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं, उसी प्रकार माँ काली, माँ पार्वती का उग्र रूप हैं। पुराणों के अनुसार, जब माँ पार्वती ने राक्षस दारुक का संहार करने के लिए काली रूप धारण किया, तो उनका क्रोध बढ़ हो गया। तब भगवान शिव ने पाँच वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया और उन्हें ‘माँ’ कहकर पुकारा। यह सुनकर माँ काली का हृदय पिघल गया और वे पुनः अपने सौम्य रूप पार्वती में लौट आईं। भगवान शिव का यह बाल स्वरूप ‘बटुक भैरव’ कहलाता है।
बटुक भैरव को भैरव का बाल रूप माना जाता है, जो अत्यंत करुणामय और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। मान्यता है कि बटुक भैरव देव की पूजा करने से क्रोध पर नियंत्रण और विपत्ति से सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है। इसी प्रकार माँ काली की कृपा के लिए नव चंडी हवन अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। शास्त्रों में माँ चंडी को अत्यंत शक्तिशाली देवी माना गया है जिन्होंने शुंभ और निशुंभ जैसे दानवों का संहार किया, परंतु अपनी शक्ति और करुणा के बीच भी संतुलन बनाए रखा।
इसीलिए श्री काल भैरव जयंती पर काल भैरव और माँ काली की संयुक्त उपासना से व्यक्ति को क्रोध पर नियंत्रण, आंतरिक शक्ति और अचानक आने वाली मुसीबतों से दैवीय सुरक्षा मिलने की मान्यता है। यह भव्य अनुष्ठान काशी स्थित श्री बटुक भैरव मंदिर और कुरुक्षेत्र स्थित भद्रकाली शक्तिपीठ में संपन्न होगा।
🪷 श्री मंदिर के माध्यम से आप भी इस महाअनुष्ठान में घर बैठे शामिल होकर भैरवदेव और माँ काली का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।