जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हमारी पूरी मेहनत के बावजूद हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन परिस्थितियों में मन कमजोर और निराश हो जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि ऐसे समय पर ग्रहों की स्थिति भी प्रभाव डालती है, खासकर भगवान शनि देव, जिन्हें कर्मों का न्यायाधीश कहा जाता है। वह हमें दंड देने के लिए नहीं, बल्कि सही मार्ग दिखाने और जीवन के सबक सिखाने के लिए कठिन परिस्थितियाँ देते हैं। ऐसे समय में भगवान शिव का स्मरण हमें सहनशक्ति और आगे बढ़ने की शक्ति देता है। शनि प्रदोष का दिन इस दृष्टि से बहुत विशेष माना जाता है। जब शनिवार के दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय, जो भगवान शिव को समर्पित है) आता है, तब उसे शनि प्रदोष कहा जाता है। यह समय भगवान शिव और भगवान शनि की संयुक्त उपासना का अत्यंत शुभ अवसर होता है।
पुराणों में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तो भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए उसे ग्रहण किया। उस समय देवताओं ने गोधूलि बेला में उनकी आराधना की, जिससे उनकी पीड़ा शांत हुई। इस पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुरक्षा और समृद्धि का आशीर्वाद दिया। चूँकि भगवान शनि स्वयं भगवान शिव के महान भक्त हैं, इसलिए शनि प्रदोष के दिन दोनों की पूजा करना बहुत फलदायी माना जाता है।
इस विशेष पूजा में भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 11,000 महामृत्युंजय मंत्रों का जाप किया जाता है। यह जाप बीमारी, भय और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने वाला आध्यात्मिक कवच बनाता है। इसके बाद भगवान शनि देव की कृपा पाने के लिए 23,000 शनि मूल मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे शनि दोष से होने वाली कठिनाइयाँ कम होती हैं और जीवन में स्थिरता तथा अनुशासन आता है। ये सभी पूजन उज्जैन स्थित पवित्र श्री नवग्रह शनि मंदिर में संपन्न किए जाते हैं, जो स्वयं महाकाल की आशीष से पावन भूमि है। यहाँ की दिव्यता पूजा की शक्ति को और गहन बना देती है, जिससे साधक को मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त होता है।
श्री मंदिर के माध्यम से की जाने वाली यह विशेष पूजा आपके जीवन में शक्ति, राहत और शांति के लिए भगवान शिव और भगवान शनि देव की दिव्य कृपा लाती है।