नवरात्रि की अष्टमी केवल कैलेंडर की एक तिथि नहीं है, यह वह क्षण है जब साधना अपनी पूर्णता को पाती है और देवी कृपा बरसाने के लिए तत्पर होती हैं। इस पावन अवसर पर माँ ब्रजेश्वरी और माँ लक्ष्मी की संयुक्त आराधना का आयोजन किया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि माँ ब्रजेश्वरी साधक के जीवन से अंधकार और भय को दूर करती हैं, वहीं माँ लक्ष्मी हर हृदय में सुख, वैभव और संतोष का संचार करती हैं। दोनों देवियों का आह्वान साथ-साथ किया जाए तो साधक के जीवन में संतुलन और नई दिशा का प्रकाश फैलता है।
पुराणों में वर्णित है कि जब महिषासुर का आतंक असहनीय हो गया, तब आदिशक्ति ने नौ रूप धारण कर धर्म की रक्षा की। इन्हीं में से माँ ब्रजेश्वरी का स्वरूप आज हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में शक्तिपीठ के रूप में पूजित है। कहते हैं कि यहाँ माँ सती का स्तन गिरा था, वहीं उनकी यह दिव्य पीठ स्थापित हुई। इस पीठ से ऐसी शक्ति प्रवाहित होती है जो हर प्रकार की कमी और अभाव को दूर करने वाली मानी जाती है।कहते हैं कि माँ ब्रजेश्वरी को स्मरण करने से साधक के जीवन में स्थिरता, साहस और वैभव का संचार होता है।
इसी प्रकार माँ लक्ष्मी, जिनके बिना जीवन अधूरा माना जाता है, का पूजन अष्टमी पर विशेष महत्व रखता है। जब दीपों की ज्योति और मंत्रों की ध्वनि के बीच माँ लक्ष्मी का आवाहन होता है, तो साधक का हृदय श्रद्धा से भर उठता है। इस अष्टमी पर 11,000 माँ ब्रजेश्वरी बीज मंत्र जाप और श्री सूक्त हवन संपन्न होगा। वैदिक ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले इस अनुष्ठान में हर अर्पण, हर आहुति साधक के जीवन की उलझनों को शांति और ऊर्जा में बदलने का माध्यम बनती है।
कहा जाता है कि ऐसे अनुष्ठानों से केवल आर्थिक स्थिरता ही नहीं, बल्कि मन का बोझ भी हल्का हो सकता है। परिवार में प्रेम और आपसी सौहार्द बढ़ता है, और साधक अपने जीवन की कठिनाइयों को नई दृष्टि से देख पाता है। अष्टमी पर माँ ब्रजेश्वरी और माँ लक्ष्मी की यह संयुक्त आराधना भक्तों को केवल धन-संपदा ही नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और दिव्य विश्वास भी प्रदान कर सकती है।
श्री मंदिर द्वारा आयोजित इस विशेष महापूजन में सम्मिलित होकर भक्त अपनी श्रद्धा अर्पित कर सकते हैं और अपने जीवन को देवी कृपा के प्रकाश से आलोकित कर सकते हैं।