🌕🔱 इस आषाढ़ पूर्णिमा, पाएं भगवान शिव और चंद्रदेव की संयुक्त कृपा, और प्राप्त करें उत्तम मानसिक स्वास्थ्य तथा सम्पूर्ण कल्याण का वरदान🌸🕉️
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि को अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली माना गया है। इस दिन की गई पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है, क्योंकि यह दिन चंद्र देव और भगवान शिव की आराधना के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। चंद्रमा और भगवान शिव का संबंध बहुत ही प्राचीन और आध्यात्मिक है, जिसका उल्लेख अनेक पुराणों में मिलता है। मान्यता के अनुसार, प्रजापति राजा दक्ष की 27 पुत्रियाँ थीं, जिनका विवाह उन्होंने चंद्र देव से किया था। परंतु चंद्र देव को केवल रोहिणी अत्यंत प्रिय थीं, और वे उसी को अधिक स्नेह करते थे। यह देखकर अन्य पत्नियाँ दुःखी हो गईं और उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष से इसकी शिकायत की। क्रोधित होकर राजा दक्ष ने चंद्र देव को श्राप दे दिया, जिससे उनका तेज कम होने लगा और वे बीमार और कमजोर हो गए।
तब देवर्षि नारद ने उन्हें भगवान शिव की शरण में जाने की सलाह दी। चंद्र देव ने श्रद्धा से भगवान शिव की कठोर तपस्या की और अंततः उनकी कृपा से पुनः तेजस्वी और स्वस्थ हो गए। तब उन्होंने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे उन्हें अपने मस्तक पर धारण करें। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपने शीश पर स्थान दिया। तभी से भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित हैं।
वहीं चंद्रमा का घटना और बढ़ना जीवन के चक्र का प्रतीक माना जाता है। इसका कमजोर होना वृद्धावस्था और मृत्यु का संकेत है, जबकि उसका पुनः पूर्ण रूप में लौटना नवजीवन, आशा और उन्नति का प्रतीक है। इसी कारण चंद्रमा को "मृत्यु संहारकाय" कहा गया है- अर्थात, जो मृत्यु को जीतने वाला है। भगवान शिव भी महामृत्युंजय हैं। जो मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं। इसलिए इन दोनों की संयुक्त पूजा जीवन की रक्षा और आध्यात्मिक बल प्राप्ति का माध्यम मानी जाती है। विशेषकर आषाढ़ पूर्णिमा की निशित काल रात्रि को अत्यंत शक्तिशाली समय माना गया है। इसी शुभ मुहूर्त में श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर 11,000 महामृत्युंजय मंत्र, 10,000 चंद्र बीज मंत्र जाप और हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य अनुष्ठान में भाग लें और भगवान शिव एवं चंद्र देव के कृपा पात्र बनें।