ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कुंडली में सूर्य और शनि ग्रह पीड़ित होते हैं, तो यह पितृ दोष उत्पन्न कर सकते हैं। सूर्य पिता का कारक है और शनि पूर्वजों एवं कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है। यदि सूर्य-शनि के बीच शत्रुता बनी रहे या ये अशुभ ग्रहों से प्रभावित हों, तो व्यक्ति के जीवन में आर्थिक, पारिवारिक, और मानसिक समस्याएँ बनी रहती हैं। इस दोष के कारण पैतृक संपत्ति में बाधाएँ, पारिवारिक कलह, करियर में अस्थिरता और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं। इसलिए इन समस्याओं को दूर करने के लिए सूर्य-शनि दोष निवारण पूजा एवं पितृ महादान कुंजिका अर्पण का आयोजन किया जा रहा है। यह पूजा सूर्य और शनि के अशुभ प्रभावों को शांत करती है और पितरों को तृप्त करने के लिए समर्पित होती है।
वहीं, यह पूजा मोक्ष नगरी काशी के पिशाच मोचन कुंड में की जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि पिशाच मोचन कुंड पर पितृ के निमित्त श्राद्ध करने का अधिक महत्व है। वहीं काशी खंड के अनुसार, पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थस्थल की उत्पत्ति मां गंगा के धरती पर अवतरण से भी पहले की है। सदियों से देशभर से भक्त अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितृ दोष शांति महापूजा करने के लिए काशी के इस कुंड में आते हैं। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ महादान कुंजिका अर्पण का विशेष महत्व है। इसमें उन आवश्यक वस्तुओं का दान किया जाता है जो पितरों की आत्मा को संतुष्ट करती हैं और उनके आशीष की प्राप्ति होती है।
इस महादान में शामिल वस्तुएँ:
खड़ाऊ (लकड़ी की चप्पल) –मान्यता है कि इससे पूर्वजों की पितृलोक की यात्रा सहज होती है।
सफेद धोती – सफेद रंग शुद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है।
छाता – पितरों को धूप-बारिश से सुरक्षा देने का काम करता है छाता।
चटाई – पितरों को आराम देने के लिए।
मान्यता है कि इन वस्तुओं के दान से पितर तृप्त होते हैं, जिससे व्यक्ति के जीवन में उन्नति, समृद्धि और शांति का वास होता है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का श्रेष्ठतम उपाय है। इसलिए श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और पैतृक कर्मों के निवारण एवं पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का आशीर्वाद प्राप्त करें।