सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व माना गया है। इस महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा शुभ फलदायी होती है। चंद्र देव के कलाओं के विषय में एक कथा प्रचलित है। राजा दक्ष की 27 कन्याओं का विवाह चंद्र देव से हुआ था, परंतु उनमें से रोहिणी के प्रति चंद्र देव का विशेष लगाव था। इस कारण अन्य पत्नियाँ असंतुष्ट हो गईं और उन्होंने राजा दक्ष से शिकायत की। राजा दक्ष के समझाने पर भी चंद्र देव का व्यवहार नहीं बदला, जिसके परिणामस्वरूप राजा दक्ष ने उन्हें श्राप दिया कि वे 15 दिनों में क्षीण हो जाएंगे। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्र देव ने भगवान शिव की आराधना की।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त किया और आशीर्वाद दिया कि उनकी शक्ति 15 दिनों तक बढ़ेगी और अगले 15 दिनों तक घटेगी। यही कारण है कि पूर्णिमा और अमावस्या का क्रम बना। शास्त्रों के अनुसार, चंद्र देव मन, मानसिक शांति और स्थिरता के देवता माने जाते हैं। इसी प्रकार ज्योतिष में भी चंद्र ग्रह को मन का कारक माना गया है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र ग्रह प्रतिकूल स्थिति में हो, तो उसकी सोचने-समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है और मानसिक अस्थिरता उत्पन्न होती है। ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के पावन दिन पर चंद्र बीज मंत्र का जाप करने से चंद्र देव की कृपा से मानसिक संतुलन और भावनात्मक स्थिरता प्राप्त होती है।
यदि इस मंत्र-जाप के साथ शिव रुद्राभिषेक भी किया जाए, तो इसका फल अनेक गुना बढ़ जाता है, क्योंकि चंद्र देव स्वयं भगवान शिव के परम भक्त हैं। इसी कारण, कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर श्री चंद्रेश्वर महादेव मंदिर, ऋषिकेश (गंगा तट पर स्थित) में 10,000 चंद्र बीज मंत्र जाप और शिव रुद्राभिषेक का विशेष आयोजन किया जाएगा।
श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र पूजा में सम्मिलित होकर चंद्र देव और भगवान शिव की कृपा से मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और जीवन में स्थिरता का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें।