सनातन धर्म में वर्ष की पहली अष्टमी का विशेष महत्व है। यह समय माता दुर्गा की कृपा और संरक्षण प्राप्त करने का पावन अवसर माना जाता है। जीवन में अक्सर ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जो हमारे नियंत्रण से बाहर लगती हैं। अचानक बीमारियाँ, बिना कारण दुर्घटनाएँ, घर में कलह या मन में डर और असुरक्षा की भावना। शास्त्रों के अनुसार, ये समस्याएँ बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा या कर्म असंतुलन के कारण उत्पन्न होती हैं। जब ये शक्तियाँ बढ़ती हैं, तब माता दुर्गा की दिव्य शक्ति का आह्वान करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
माता दुर्गा अपने भक्तों की सर्वोच्च रक्षक हैं। उनकी अपार शक्ति और करुणामयी दृष्टि हर तरह के संकट, भय और नकारात्मक प्रभाव से रक्षा करती है। पुराणों में वर्णन है कि महिषासुर नामक असुर ने तीनों लोकों में आतंक फैलाया और कोई भी देवता उसे रोकने में सक्षम नहीं था। तब सभी देवताओं की शक्तियों के संयोग से माता दुर्गा प्रकट हुईं। उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्र और अदम्य साहस प्रदान किया गया। माता ने महिषासुर का वध कर यह दिखाया कि देवी के प्रकाश के सामने कोई भी नकारात्मक शक्ति टिक नहीं सकती। यह कथा हमें यह विश्वास देती है कि माता दुर्गा की कृपा से जीवन की सभी कठिनाइयाँ दूर हो सकती हैं।
इसी दिव्य कृपा की प्राप्ति के लिए साल 2026 की पहली कालाष्टमी के दिन श्री मंदिर के द्वारा जम्मू के नवदुर्गा मंदिर में विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। इस पूजन में दुर्गा सप्तशती का किया जाएगा जिसमें माता की असुरों पर विजय की कथाएँ सुनाई जाती हैं। इसके साथ चंडी हवन भी किया जाता है, जिसमें घी, अन्न और पुष्पों की आहुति दी जाती है। जिसके प्रभाव से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर का वातावरण सकारात्मक बनता है। यह पूजन पूरे परिवार के लिए एक दिव्य सुरक्षा कवच का काम कर सता है, जो उन्हें बुरी नजर, ईर्ष्या, दुर्घटना और अनजाने संकट से बचा सकता है।
इस पावन अवसर पर माता दुर्गा की कृपा से घर में शांति, सुख, समृद्धि और सुरक्षा को आमंत्रित करें और नए वर्ष की शुरुआत साहस, विश्वास और दिव्य ऊर्जा के साथ करें।