मां नंदा देवी उत्तराखंड की बहुमान्य और बहु पूज्य देवी हैं।
.मानसखण्ड, उत्तराखंड, भारत
उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां आपको कई प्राचीन मंदिर देखने को मिल जाएंगे। आज हम आपको अल्मोड़ा शहर के मध्य में स्थित नंदा देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। हम आपको नंदा देवी की कहानी क्या है, नंदा देवी की कथा और नंदा देवी मंदिर के इतिहास के बारे में बताएंगे। मां नंदा देवी को पूरे उत्तराखंड में पूजा जाता है। ये उत्तराखंड की बहुमान्य और बहु पूज्य देवी हैं। इन्हें चंद वंश के राजाओं की कुलदेवी भी माना जाता है। नवरात्रि के दिनों में नंदा देवी सिद्धपीठ में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। नंदाष्टमी पर चंद वंशी अपनी प्रजा जनों के साथ मिलकर यहां बड़े ही धूमधाम से विशेष उत्सव मनाते हैं। इस मौके पर विशाल मेले का भी आयोजन किया जाता है।
मंदिर का इतिहास
इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार, मंदिर का इतिहास 1000 साल से भी पुराना बताया जाता है। धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में प्राचीन काल से ही मां नंदा की उपासना किए जाने के प्रमाण मिलते हैं। कहते हैं करीब सन् 1617 में चंद राजा बाज बहादुर चंद बधाणगढ़ किला जीतने के बाद वहां से नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा अल्मोड़ा लेकर आए थे। यहां उन्होंने मल्ला महल (पुराना कलेक्ट्रेट) परिसर में देवी की प्रतिमा को स्थापित कर उन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया था। वर्ष 1815 में अंग्रेजों और गोरखों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ, जिसमें मल्ला महल के भवनों के साथ मां नंदा देवी का मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो गया था। कहते हैं कि प्रजा ने अंग्रेजों से मां नंदा का नया मंदिर बनवाने के लिए काफी गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एक दिन तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर ट्रेल साहब किसी यात्रा पर थे कि अचानक उनकी आंखों की रोशनी चली गई। सलाहकारों ने इसे देवी का प्रकोप बताकर उन्हें मां नंदा देवी के नए मंदिर की स्थापना का सुझाव दिया, जिसके बाद नंदा देवी के वर्तमान परिसर में शिव मंदिर के साथ मां नंदा का मंदिर बनवाया गया और मल्ला महल से माता की मूर्ति को लाकर यहां प्रतिष्ठित किया गया। कहते हैं मंदिर स्थापना के बाद आश्चर्यजनक रूप से ट्रेल साहब के आंखों की रोशनी वापस लौट आई थी। बताया जाता है कि वर्तमान मंदिर में स्थापित मां नंदा देवी की मूर्ति वह नहीं है, जिसे राजा बाज बहादुर बधाणगढ़ किला जीतने के बाद लाए थे। कहते हैं कि अष्टधातु से बनी असली मूर्ति चोरी हो गई थी, जिसके बाद चंद वंशीय राजा आनंद सिंह ने मां नंदा की नई मूर्ति का निर्माण करवाया और उसे यहां स्थापित करवाया।
मंदिर का महत्व
कहा जाता है कि मां नंदा देवी अपने भक्तों को सपने में दर्शन देती हैं और उनकी हर मनोकामना को पूरा करती हैं। मां नंदा देवी की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। मान्यता है कि मां नंदा अपने भक्तों के सभी कष्ट हर लेती हैं और अपने भक्तों की रक्षा भी करती हैं।
मंदिर की वास्तुकला
कुमाऊं के शांत परिदृश्य में हिंदू देवी दुर्गा की अवतार नंदा देवी का पवित्र मंदिर काफी खूबसूरत तरीके से बनाया गया है। मंदिर में पत्थर के 'आमलक' या मुकुट से सुसज्जित माता की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। यहां स्थापित मां नंदा देवी को शैलपुत्री का रूप माना जाता है। मंदिर का निर्माण शिव मंदिर के डेवढ़ी पर किया गया है। मंदिर की दीवारों में कई शैल चित्र भी देखने को मिलते हैं। दीवारें उस काल के कुशल कलाकारों द्वारा की गई जटिल नक्काशी को दर्शाती हैं। मंदिर परिसर में 3 देवालय हैं, बाईं ओर पर्वतेश्वर मंदिर, बीच में उद्योग चंद्रेश्वर मंदिर और नंदा देवी मंदिर।
मंदिर का समय
नंदा देवी मंदिर खुलने का समय
06:00 AM - 10:00 PMसुबह की आरती का समय
06:00 AM - 07:00 AMशाम की आरती का समय
07:00 PM - 08:00 PMमंदिर का प्रसाद
नंदा देवी मंदिर में भक्तों द्वारा नारियल, मिष्ठान, फल, फूल, चुनरी आदि अर्पित किया जाता है।
यात्रा विवरण
मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है