इस मंदिर माँ रात्रि शयन करती हैं
.मानसखण्ड, उत्तराखंड, भारत
देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में कदम-कदम पर देवी देवताओं का वास है। राज्य के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में स्थित है माँ कालिका का एक मंदिर जिसका नाम हाट कालिका मंदिर है। माता के इस मंदिर की महिमा दूर दूर तक फैली हुई है। कहते हैं कि जितनी मान्यता कोलकाता के काली मंदिर की है, उतनी ही मान्यता हाट कालिका मंदिर की भी है। यहां मुख्य रूप से मां काली की पूजा अर्चना की जाती है। कई रहस्यों से भरे इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर दूर से भक्त आते हैं। भारतीय सेना में सबसे पराक्रमी कुमाऊं रेजीमेंट मां हाट कालिका को अपनी आराध्य देवी मानते हैं।
मंदिर का इतिहास
हाट कालिका मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना बताया जाता है। कहते हैं कि 5 हजार साल पहले लिखे गए स्कंद पुराण के मानसखंड में दारुकावन (गंगोलीहाट) स्थित देवी का विस्तार से वर्णन किया गया है। बताया जाता है कि 6 वीं सदी के आखिर में भगवान शिव का अवतार माने जाने वाले जगत गुरु शंकराचार्य जी ने कुमाऊं के भ्रमण के दौरान इस स्थान को शक्तिपीठ के लिए चुना और हाट कालिका मंदिर की पुनर्स्थापना की, जिसके बाद से यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया। स्कंद पुराण के मानस खंड के अनुसार, सुम्या नाम के दैत्य का गंगोलीहाट क्षेत्र में बहुत प्रकोप था। उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था, जिसके बाद देवताओं ने शैल पर्वत पर जाकर दैत्य से मुक्ति पाने के लिए देवी की आराधना की। देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और सुम्या दैत्य का अंत किया। जिसके बाद से इस स्थान पर महाकाली की पूजा होने लगी। वहीं, कुछ जगहों पर उल्लेख है कि इसी स्थान पर महाकाली ने महिषासुर रक्तबीज जैसे राक्षसों का भी वध किया था। कथा के अनुसार, पहले मंदिर वाली जगह देवी मां के प्रकोप से निर्जन थी। कहते हैं कि देवी मां रात को महादेव का नाम पुकारती थीं और जो भी व्यक्ति उसे सुन लेता था, उसकी मृत्यु हो जाती थी। लोग मंदिर के पास से गुजरने से भी डरते थे। आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने तंत्र मंत्र जाप से देवी को खुश किया और दोबारा से मंदिर की स्थापना करवाई। स्थानीय निवासियों द्वारा बताया जाता है कि 1971 में जब पाकिस्तान से जंग छिड़ी तब गंगोलीहाट के रहने वाले कुमाऊं रेजीमेंट के सूबेदार शेर सिंह द्वारा मंदिर में महाकाली की मूर्ति की स्थापना की गई।
मंदिर का महत्व
मां हाट कालिका को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त बकरों और मेमनों की बलि देते हैं। कहते हैं मां हाट कालिका का नाम लेने से कुमाऊं सैनिकों का जहाज डूबने से बच गया था। युद्ध पर जाने से पहले जवान यहां मत्था टेकने जरूर आते हैं। कहते हैं कि मंदिर के पुजारी शाम के समय मंदिर में एक बिस्तर लगाते हैं। सुबह कपाट खोलने पर बिस्तर पर सिलवटें पड़ी मिलती है। माना जाता है कि स्वयं महाकाली रात के समय इस स्थान पर विश्राम करती हैं। मान्यता है कि मंदिर में महाकाली से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर की वास्तुकला
पिथौरागढ़ मुख्य शहर से 57 किलोमीटर दूर गंगोलीहाट में स्थित मां हाट कालिका का मंदिर पहाड़ी पर बनाया गया है। इसके चारों तरफ खूबसूरत देवदार के पेड़ हैं। सड़क से मंदिर तक जाने के लिए कुछ सीढ़ियां उतरनी पड़ती है। मंदिर तक जाने वाला पैदल मार्ग टिन की चादरों से ढका हुआ हैं और जगह-जगह घंटी बंधी हुई दिखाई देती है। मंदिर में मुख्य रूप से मां काली विराजमान हैं। मंदिर परिसर में बलि देने का भी एक स्थान बना हुआ है। इसके अतिरिक्त कुछ आश्रमों का भी निर्माण करवाया गया है।
मंदिर का समय
मां हाट कालिका मंदिर खुलने का समय
05:00 AM - 09:00 PMमां हाट कालिका मंदिर की सुबह की आरती
06:00 AM - 06:30 AMमां हाट कालिका मंदिर की सायंकाल आरती
08:00 PM - 08:30 PMमंदिर का प्रसाद
मां हाट कालिका मंदिर में भक्तों द्वारा नारियल, फल, चुनरी, चूड़ी, मिष्ठान, लईया आदि अर्पित किए जाते हैं।
यात्रा विवरण
मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है