हिंदु धर्म में प्रदोष तिथि का विशेष महत्व है। प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष तिथि कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था। इस कष्ट से राहत पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन नया जीवन प्रदान किया, इसलिए इस दिन को प्रदोष तिथि कहा जाने लगा। यह विशेष तिथि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। शिव पुराण के अनुसार, प्रदोष तिथि पर भगवान शिव मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर रहने वालों अपने भक्तों की कामनाएं सुनते हैं। इसलिए माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से उनका दिव्य आशीष प्राप्त होता है। वैसे तो भक्त महादेव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जिसमें पार्थिव शिवलिंग की पूजा प्रमुख है। शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग का ऊपरी भाग शिव जी (पुरुष) का और निचला भाग मां पार्वती (स्त्री) का प्रतिनिधित्व करता है। इसी कारण शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि प्रदोष तिथि पर पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने से अविवाहित जातक को आर्दश जीवनसाथी एवं विवाहित जातक को वैवाहिक जीवन में आनंद की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
शास्त्रों में बताई गई विधि के अनुसार, पार्थिव शिवलिंग हमेशा पवित्र नदियों के तट पर पाई जाने वाली मिट्टी और रेत से बनाया जाना चाहिए। जिनमें से एक है नर्मदा नदी। पौराणिक कथा के अनुसार, मां नर्मदा भगवान शिव की पुत्री हैं और उनकी उत्पत्ति भगवान शिव के पसीने की बूंदों से हुई थी। इसलिए माना जाता है कि नर्मदा नदी का हर एक पत्थर शिवलिंग है। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योतिर्लिंग श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है, जिसे स्वयंभू लिंग माना जाता है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। ओंकारेश्वर मंदिर की महिमा का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और वायु पुराण में भी मिलता है। इसलिए, भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित प्रदोष तिथि पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में 1100 शिवलिंग प्राणप्रतिष्ठा पार्थेश्वर पूजन का आयोजन किया जा रहा है। यह पूजा नर्मदा नदी के बीच नाव पर की जाएगी, जहां पार्थिव शिवलिंग बनाए जाएंगे और पूजा के बाद सभी शिवलिंगों को नर्मदा नदी में विसर्जित कर दिया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें।