हिंदु धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी दुर्गा की शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। पौराणिक कथानुसार, मां दुर्गा ने इन्हीं नौ दिनों तक दुष्ट राक्षस महिसासुर से युद्ध किया था और दसवें दिन उसे पराजित किया था। किंतु देवताओं और असुरों के बीच यह पहला युद्ध नहीं था। युगों-युगों से देवता और असुर के बीच युद्ध होते आ रहे हैं। देवता और असुर दोनों ही प्रजापति की संताने हैं और दोनों के बीच हुए युद्धों को देवासुर संग्राम कहा जाता है। पौराणिक कथानुसार, एक बार देवासुर संग्राम 100 वर्षों से भी अधिक चला। इस दौरान देवताओं के लिए संशाधनों और शस्त्रों की व्यवस्था करते हुए कुबेर जी का सारा धन समाप्त हो गया और मां लक्ष्मी भी धनहीन हो गईं। इस संकट में सभी देवता और देवी मिलकर भगवान शिव की शरण में गए, तब महादेव ने नंदी के माध्यम से स्वर्णाकर्षण भैरव की महिमा का बखान किया और बताया कि केवल वे ही कुबेर के खाली भंडार को फिर से भर सकते हैं। शिव जी के निर्देश पर लक्ष्मी और कुबेर सहित सभी देवताओं ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की, तब स्वर्णाकर्षण भैरव प्रकट हुए और चार भुजाओं से धन की वर्षा की, जिससे कुबेर और लक्ष्मी सहित सभी देवता फिर से संपन्न हो गए। कहा जाता है कि मनुष्यों की दरिद्रता का नाश करने के लिए नंदी जी ने महर्षि मार्कण्डेय जी को इस स्तोत्र के बारे में बताया था। स्वर्णाकर्षण भैरव, काल भैरव का ही सात्त्विक रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है।
शास्त्रों के अनुसार, धन की प्राप्ति, आर्थिक स्थिरता और समृद्धि के लिए भगवान शिव के पांचवें अवतार माने जाने वाले काल भैरव के सात्विक रूप स्वर्णाकर्षण भैरव की उपासना करनी चाहिए। मान्यता है कि यदि नवरात्रि के दौरान स्वर्णाकर्षण भैरव की पूजा तो यह अत्यंत फलदायी हो सकती है, क्योंकि भैरव को माता दुर्गा का रक्षक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, बाबा भैरव के स्वर्णाकर्षण रूप की पूजा के साथ-साथ बटुक भैरव रूप की पूजा भी करनी चाहिए। इसलिए महादेव की नगरी काशी के श्री बटुक भैरव मंदिर में नवरात्रि प्रांरभ के शुभ अवसर पर स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जाप एवं बटुक भैरव अष्टकम स्तोत्र पाठ का आयोजन किया जा रहा है। काशी में भगवान भैरव की पूजा का अलग महत्व बताया गया है। धार्मिक कथाओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ ने ही यहां बाबा भैरव को काशी का कोतवाल और दंडनायक के रूप में नियुक्त किया था। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और बाबा भैरव द्वारा ऋण मुक्ति, आर्थिक समृद्धि और स्थिरता का आशीर्वाद प्राप्त करें।