हिंदु वैदिक पंचाग के अनुसार, हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी दुर्गा की शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। पौराणिक कथानुसार, महिषासुर नाम के एक असुर को भगवान ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था। जिसके चलते उसने तीनों लोकों में हमला कर दिया और देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा जी से मदद मांगी। महिषासुर को केवल एक स्त्री ही हरा सकती थी। इसलिए त्रिदेवों ने अपनी दिव्य शक्तियों से मां दुर्गा को उत्पन्न किया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध चला। इस दौरान महिषासुर ने मां दुर्गा को भ्रमित करने के लिए कई रूप धारण किए लेकिन अंततः उसने जब भैंसे का रूप धारण किया तो मां दुर्गा मौके का फायदा उठाते हुए अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों में एक बार फिर से शांति स्थापित की। इसीलिए इन नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान भक्त मां दुर्गा और उनके नौ रूपों को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जिनमें से एक है नवार्ण मंत्र। नवार्ण, नव और अर्ण के युग्म से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है नौ अक्षर। शास्त्रों में ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ को नवार्ण मंत्र कहा गया है। इसके हर अक्षर से शक्ति अर्थात मां दुर्गा के नौ रूपों का सीधा संबध है। पहला अक्षर "ऐं" है, जो माँ शैलपुत्री से संबंधित है। दूसरा अक्षर "ह्रीं" है, जो माँ ब्रह्मचारिणी द्वारा नियंत्रित होता है। तीसरा अक्षर "क्लीं" माँ चंद्रघंटा से जुड़ा है। चौथा अक्षर "च" माँ कूष्माण्डा से संबंधित है। पाँचवाँ अक्षर "मुं" माँ स्कंदमाता पर प्रभाव डालता है। छठा अक्षर "डा" माँ कात्यायिनी से जुड़ा हुआ है। सातवाँ अक्षर "यै" माँ कालरात्रि से संबंधित है और आठवाँ अक्षर "वि" माँ महागौरी को दर्शाता है। नौवाँ अक्षर "चै" माँ सिद्धिदात्री से जुड़ा है।
इसी कारणवश हिंदु धर्म में नवरात्रि के दौरान नवार्ण मंत्र का जाप को सबसे प्रभावशाली माना गया है, क्योंकि यह मंत्र मां दुर्गा को नौ रूपों को समर्पित है। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान नवार्ण मंत्र का जाप करने से मां दुर्गा का दिव्य आशीष प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। यदि नवार्ण मंत्र के जाप के साथ दुर्गा सप्तशती एवं नव चंडी महाहवन भी किया जाए तो यह अंत्यत और कई गुना अत्यधिक फलदायी हो सकता है। कहा जाता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से एक दैवीय ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे सभी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और देवी दुर्गा द्वारा मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए काशी के प्रसिद्ध श्री दुर्गा कुंड मंदिर में 1,25,000 नवार्ण मंत्र जाप, दुर्गा सप्तशती एवं नव चंडी महाहवन का आयोजन किया जा रहा है। यह अनुष्ठान आठ ब्राह्मणों द्वारा किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य अनुष्ठान में भाग लें और मां दुर्गा द्वारा सफलता प्राप्ति एवं मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें।