पर्यूषण पर्वारम्भ 2025 कब है?
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पर्यूषण पर्वारम्भ 2025 कब है?

पर्यूषण पर्वारम्भ 2025 की तिथि, पूजा विधि, व्रत नियम, तपस्या और क्षमावाणी जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं की सम्पूर्ण जानकारी।

पर्यूषण पर्वारम्भ के बारे में

पर्यूषण पर्व जैन धर्म का प्रमुख आध्यात्मिक उत्सव है, जो आत्मशुद्धि, तपस्या और क्षमा का प्रतीक है। पर्वारम्भ के दिन से ही उपवास, स्वाध्याय और संयम की शुरुआत होती है। यह पर्व आत्मकल्याण और आंतरिक शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।

पर्यूषण पर्वारम्भ सम्पूर्ण जानकारी

जैन समुदाय के महापर्व पर्यूषण को पर्वों का राजा कहते हैं। जैन धर्म के सभी लोगों के लिए यह त्योहार विशेष महत्व रखता है, और भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इतना ही नहीं, इस महापर्व पर किए गए सभी अनुष्ठान मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलते हैं।

पर्यूषण पर्व कब मनाया जाता है?

श्वेतांबर और दिगंबर समाज दोनों के पर्यूषण पर्व भाद्रपद मास में अलग-अलग समय पर मनाए जाते हैं। श्वेतांबर समाज के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं।

श्वेतांबर भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक और दिगंबर भाद्रपद शुक्ल की पंचमी से चतुर्दशी तक पर्यूषण पर्व मनाते हैं।

साल 2025 में पर्यूषण पर्व का आरंभ 21 अगस्त 2025, बृहस्पतिवार यानि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से होगा।

पर्यूषण पर्व का समापन अर्थात 'संवत्सरी पर्व' 28 सितंबर, बृहस्पतिवार को शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर रहेगा।

  • त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ - अगस्त 20, 2025 को 01:58 पी एम बजे से होगा।
  • त्रयोदशी तिथि का समाप्त - अगस्त 21, 2025 को 12:44 पी एम बजे पर होगा।

क्या है पर्यूषण पर्वारम्भ?

पर्यूषण के अर्थ की बात की जाए तो 'परि' अर्थात् 'चारों ओर से', 'उषण' अर्थात् 'धर्म की आराधना'। श्वेतांबर संप्रदाय पर्यूषण पर्व आठ दिनों तक मनाते हैं, जिसे 'अष्टान्हिका' कहा जाता है। आठवें दिन जैन धर्म के लोगों का एक और विशेष पर्व 'संवत्सरी महापर्व मनाया जाता है। जैन अनुयायी इस दिन यथासंभव व्रत रखते हैं, और लोगों से क्षमा-याचना करते हैं। इसके बाद दिगंबर संप्रदाय का पर्यूषण पर्व प्रारंभ होता है, जो 10 दिनों तक चलता है। इसे 'दसलक्षण धर्म' के नाम से जाना जाता है। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य।

पर्यूषण महापर्व का उद्देश्य क्या है? क्यों मनाते हैं पर्यूषण पर्वारम्भ?

पर्यूषण के दो मुख्य उद्देश्य हैं- पहला तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण करना। वहीं, दूसरा अनुष्ठान है व्रत के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व वाचिक तप में स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना। इस तरह के अनुष्ठान में बिना कुछ खाये-पिये निर्जल व्रत रखते हैं।

इन दिनों साधुओं के लिए 5 कर्तव्य बताए गए हैं- संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपश्चर्या, आलोचना और क्षमा-याचना। गृहस्थों के लिए भी कुछ कर्तव्य अनिवार्य माने गये हैं, वो हैं शास्त्रों का श्रवण, तप, अभयदान, सुपात्र दान, ब्रह्मचर्य का पालन, आरंभ स्मारक का त्याग, संघ की सेवा और क्षमा-याचना आदि।

पर्यूषण महापर्व का महत्व क्या है? पर्यूषण पर्वारम्भ का महत्व

यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है, साथ ही सभी जीवों के प्रति करुणा और प्रेम की भी भावना जागृत करता है। ये पर्व संदेश देता है कि- 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।

पर्यूषण पर्व के समापन पर 'विश्व-मैत्री दिवस' अर्थात 'संवत्सरी पर्व' मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर 'उत्तम क्षमा' तो श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहते हुए लोगों से क्षमा-याचना करते हैं। इससे सभी नकारात्मक भाव नष्ट होते हैं, और मन निर्मल हो जाता है। साथ ही सबके प्रति मैत्रीभाव का भी जन्म होता है।

कौन लोग मनाते हैं पर्यूषण पर्वारम्भ?

श्वेतांबर जैन समुदाय: श्वेतांबर संप्रदाय में पर्यूषण पर्व भाद्रपद शुक्ल पंचमी से शुरू होता है और आठ दिनों तक चलता है। वे इसे "पर्यूषण महापर्व" कहते हैं और इसका समापन संवत्सरी क्षमा याचना दिवस के साथ होता है।

दिगंबर जैन समुदाय: दिगंबर संप्रदाय इस पर्व को भाद्रपद कृष्ण पक्ष में दस दिवसीय 'दशलक्षण पर्व' के रूप में मनाता है। उनका पर्व एक दिन बाद शुरू होता है और दशमी तक चलता है।

गृहस्थ और तपस्वी दोनों: यह पर्व केवल मुनियों या साधु-साध्वियों तक सीमित नहीं है; गृहस्थ (संसारी) जैन लोग भी इस पर्व को अत्यंत श्रद्धा और तपस्या से मनाते हैं। वे उपवास, सामायिक, प्रार्थना, पूजा और धार्मिक अध्ययन करते हैं।

अनुयायी और श्रद्धालु: इस अवसर पर वे लोग भी पर्यूषण में भाग लेते हैं जो जैन धर्म में पूर्ण रूप से दीक्षित नहीं होते, लेकिन जैन दर्शन और अहिंसा के विचारों को मानते हैं।

इस प्रकार पर्यूषण पर्वारम्भ सम्पूर्ण जैन समाज के लिए आत्मशुद्धि, क्षमा, संयम और धर्म की गहराई से अनुभूति का पर्व है, जिसे बड़े ही श्रद्धा, अनुशासन और धार्मिक वातावरण में मनाया जाता है।

पर्यूषण पर्वारम्भ की पूजाविधि

पर्यूषण पर्व की शुरुआत अत्यंत पवित्र भावना और आत्म-शुद्धि के संकल्प के साथ की जाती है। यह पर्व न केवल उपवास का, बल्कि आत्मनिरीक्षण, क्षमा और साधना का अवसर होता है। इसकी पूजाविधि इस प्रकार है:

  • प्रातःकालीन स्नान एवं शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • घर या मंदिर में भगवान महावीर या तीर्थंकरों की प्रतिमा का विधिपूर्वक जल से अभिषेक करें।
  • दीप जलाकर पूजा स्थल को पवित्र करें।
  • नवकार मंत्र का जप करें — यह पर्युषण के दौरान सबसे महत्वपूर्ण मंत्र माना जाता है।
  • स्वाध्याय (शास्त्र पठन) करें – 'कल्पसूत्र' और 'अवश्यक सूत्र' का वाचन किया जाता है।
  • दिन में सामायिक (समता में स्थित रहना) का पालन करें।
  • यदि संभव हो तो उपवास या एकासना (एक बार अल्पाहार) करें।
  • मुनियों के प्रवचन सुनें और धर्मचर्चा में भाग लें।
  • रात में प्रतिक्रमण (पश्चाताप की क्रिया) करें और सभी से "मिच्छामी दुक्कड़म" कहकर क्षमा याचना करें।

पर्यूषण महापर्व के दस दिन- दस संकल्प

दिगंबर जैन समाज का पर्यूषण पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस पर्व के दौरान लोगों को अलग-अलग 10 दिन किन विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए।

पहले दिन- पहले दिन प्रयास किया जाता है कि मनुष्य अपने मन में क्रोध का भाव न उत्पन्न होने दे। यदि ऐसा भाव आए भी, तो उसे विनम्रता से शांत कर दें।

दूसरे दिन- अपने व्यवहार में मिठास और और सबके प्रति प्रेम की भावना लाने का प्रयास किया जाता है। मन में किसी के लिए घृणा न रखें।

तीसरे दिन- इस दिन आप जो कार्य करने का संकल्प लें, उसे पूर्ण अवश्य करें।

चौथे दिन- इस दिन कम बोलने, अच्छा बोलने, और सच बोलने का प्रयास किया जाता है।

पांचवें दिन- मन में किसी प्रकार का लालच न रखें, और न ही मन में किसी तरह का स्वार्थ्य होना चाहिए।

छठे दिन- छठे दिन मन पर काबू रखते हुए संयम से काम लेने का संकल्प लेना चाहिए।

सातवें दिन- अनुचित क्रियाकलापों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना।

आठवें दिन- किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि ज़रूरी वस्तुएं देना।

नौवें दिन- किसी भी वस्तु आदि के लिए मन में लालच न रखना।

दसवें दिन- सद्गुणों का अभ्यास करना और स्वयं को पवित्र रखना।

जानें जैन पर्युषण पर्व के 6 कर्तव्य

पर्युषण पर्व के दौरान जैन अनुयायी विशेष रूप से निम्नलिखित छह कर्तव्यों का पालन करते हैं:

  • सम्यक दर्शन – सही दृष्टिकोण से जीवन और धर्म को देखना।
  • सम्यक ज्ञान – धर्मशास्त्रों और आत्मतत्त्व का सच्चा ज्ञान प्राप्त करना।
  • सम्यक चरित्र – संयम, अहिंसा और सदाचार से युक्त आचरण करना।
  • तप (उपवास आदि) – शरीर को संयम में रखकर आत्मा को शुद्ध करना।
  • स्वाध्याय – शास्त्रों का अध्ययन और आत्मचिंतन करना।
  • प्रतिक्रमण – दिन भर में हुए पापों का पश्चाताप कर क्षमा मांगना।

जैन पर्युषण पर्व पर क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

  • प्रतिदिन नवकार मंत्र का जप करें।
  • उपवास, एकासना या अल्पाहार का पालन करें।
  • सामायिक और प्रतिक्रमण जैसे धार्मिक अनुशासन अपनाएं।
  • घर या मंदिर में स्वाध्याय (शास्त्रपठन) करें।
  • मुनियों के प्रवचन सुनें और ध्यान करें।
  • सभी से क्षमा याचना करें — "मिच्छामी दुक्कड़म"

क्या न करें:

  • झूठ, चोरी, चुगली या किसी भी प्रकार का छल-कपट न करें।
  • मांसाहार, मद्यपान और हिंसा से पूर्णतः दूर रहें।
  • बेवजह मोबाइल, टीवी, मनोरंजन आदि से दूरी बनाए रखें।
  • नकारात्मक विचारों और क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या से बचें।
  • प्रलोभन, दिखावा या बाह्य प्रदर्शन न करें।

तो ये थी जैन धर्म के पवित्र पर्व पर्यूषण से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। ये पर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आप भी महावीर स्वामी द्वारा बताये गये सद्मार्ग पर चलते हुए इस पर्व के सभी नियमों का पालन करें, और नेक इंसान बनें। व्रत त्यौहारों से जुड़ी धार्मिक जानकारियों के लिये जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' पर।

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Published by Sri Mandir·August 7, 2025

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