जानें 2025 में दूर्वा अष्टमी की तिथि, पूजा का महत्व, व्रत की कथा और भगवान गणेश को प्रसन्न करने की विधि, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और विघ्नों का नाश हो।
दूर्वा अष्टमी के बारे में
दूर्वा अष्टमी हर साल श्रावण मास की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत दूर्वा घास की पूजा करके सुख, समृद्धि और परिवार की रक्षा के लिए किया जाता है। दूर्वा को भगवान शिव का प्रिय माना जाता है।
हिंदू धर्म में ऐसे कई व्रतों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाता है, जिनकी कथा भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है। ऐसा ही एक व्रत है, दूर्वा अष्टमी का व्रत, जिसे भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत मुख्यतः स्त्रियों द्वारा ही रखा जाता है। तो चलिए आज आपको इस व्रत की सम्पूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं।
दूर्वा अष्टमी का शुभ मुहूर्त
दूर्वा अष्टमी साल 2025 में 31 अगस्त 2025, रविवार से आरंभ होगा।
अष्टमी तिथि 30 अगस्त 2025, शनिवार को रात 10 बजकर 46 मिनट से प्रारम्भ होगी।
अष्टमी तिथि का समापन 01 सितम्बर 2025, सोमवार को रात 12 बजकर 57 मिनट पर होगा।
इस दूर्वा अष्टमी व्रत पर पूर्वविद्धा समय प्रातः 05 बजकर 38 मिनट से 06 बजकर 18 मिनट पर होगा।
जिसकी कुल अवधि - 12 घण्टे 40 मिनट्स तक होगी।
अष्टमी के अन्य शुभ मुहूर्त
मुहूर्त
समय
ब्रह्म मुहूर्त
04:08 ए एम से 04:53 ए एम तक
प्रातः सन्ध्या
04:30 ए एम से 05:38 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त
11:33 ए एम से 12:23 पी एम तक
विजय मुहूर्त
02:05 पी एम से 02:55 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त
06:18 पी एम से 06:41 पी एम तक
सायाह्न सन्ध्या
06:18 पी एम से 07:26 पी एम तक
अमृत काल
05:49 ए एम से 07:37 ए एम तक
निशिता मुहूर्त
11:36 पी एम से 12:21 ए एम, सितम्बर 01 तक
क्या है दूर्वा अष्टमी?
दूर्वा अष्टमी एक विशेष धार्मिक पर्व है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन पवित्र दूर्वा घास की पूजा की जाती है, जो देवी-देवताओं के पूजन में अत्यंत शुभ और आवश्यक मानी जाती है। दूर्वा अष्टमी व्रत मुख्यतः भगवान विष्णु और श्रीगणेश जी को समर्पित होता है।
इस दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं, दूर्वा घास एकत्र करते हैं और उसका पूजन कर जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं। इस दिन की गई पूजा से घर-परिवार में नकारात्मकता का नाश होता है और लक्ष्मी-नारायण की कृपा प्राप्त होती है।
क्यों मनाई जाती है दूर्वा अष्टमी?
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (कछुए का रूप) धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर संभाला था। मंथन के दौरान पर्वत के तीव्र घर्षण से, भगवान विष्णु के शरीर से कुछ रोम (बाल) समुद्र में गिर पड़े। जब अमृत की कुछ बूंदें उन रोमों पर पड़ीं, तो वे दूर्वा घास के रूप में इस पृथ्वी पर उत्पन्न हो गईं।
इस कारण, दूर्वा को श्रीहरि विष्णु के शरीर का अंश और अत्यंत पवित्र माना गया है। यही कारण है कि दूर्वा अष्टमी पर विशेष रूप से दूर्वा घास की पूजा की जाती है।
दूर्वा अष्टमी का महत्व क्या है?
दूर्वा अष्टमी व्रत करने से धन-धान्य, स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
यह व्रत कष्टों के निवारण, ऋण मुक्ति, और पारिवारिक शांति के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है।
इस दिन पूजा करने से श्रीहरि विष्णु, श्रीगणेश तथा देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पौराणिक मान्यता है कि जो व्यक्ति दूर्वा अष्टमी के दिन श्रद्धा से व्रत करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
दूर्वा अष्टमी कैसे मनाएं?
दूर्वा अष्टमी का पर्व पूरी श्रद्धा और नियम से मनाया जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है और दिनभर उपवास रखा जाता है। पूजा मुख्यतः दोपहर के समय या शुभ मुहूर्त में की जाती है।
पूजा का क्रम इस प्रकार है:
प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
घर के पूजा स्थान की सफाई करें और पूजा चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर भगवान विष्णु, श्रीगणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
सभी देवताओं का गंगाजल से शुद्धिकरण करें और तिलक लगाएं।
अब विशेष रूप से दूर्वा घास को एक थाली में रखें और उसका विधिपूर्वक पूजन करें।
दूर्वा घास को भगवान गणेश और विष्णु भगवान को अर्पित करें।
पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजा करें — जिसमें अक्षत, चंदन, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
पूजन के पश्चात व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें।
अंत में प्रसाद वितरण करें और ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन अथवा वस्त्र दान करें।
दूर्वा अष्टमी पर किसकी पूजा की जाती है?
दूर्वा अष्टमी के दिन मुख्य रूप से इन देवताओं की पूजा की जाती है:
भगवान विष्णु — क्योंकि दूर्वा उनके शरीर के रोमों से उत्पन्न हुई मानी जाती है।
भगवान श्रीगणेश — उन्हें दूर्वा अत्यंत प्रिय है और दूर्वा के बिना गणपति पूजन अधूरा माना जाता है।
देवी लक्ष्मी — क्योंकि यह व्रत सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
साथ ही, दूर्वा घास की भी पूजा की जाती है, उसे पूजा में देवी के रूप में प्रतिष्ठित कर अर्पण किया जाता है।
दूर्वा अष्टमी पूजा की पूजन सामग्री लिस्ट
दूर्वा अष्टमी व्रत के लिए आवश्यक पूजन सामग्री इस प्रकार है:
दूर्वा घास (21 या 108 तंतु)
भगवान विष्णु और गणेश जी की मूर्ति या चित्र
कलश (जल सहित)
गंगाजल
अक्षत (चावल)
रोली और हल्दी
चंदन
पुष्प (पीले फूल विशेषकर)
धूप-बत्ती
दीपक (घी या तेल का)
मौली (कलावा)
फल और पंचामृत
नैवेद्य (मिठाई या घर का बना प्रसाद)
अगरबत्ती
वस्त्र व आसन
कथा पुस्तक या पंक्तियाँ
दूर्वा अष्टमी की पूजा विधि
दूर्वा दो शब्दों, ‘दुहु’ और ‘अवम’ के मेल से बना है। इसे हिंदू धर्म की पूजा-अर्चनाओं में अत्यंत पवित्र स्थान दिया गया है। तभी तो कोई भी मंगल कर्म, दूर्वा घास के बिना पूरा नहीं होता है। दूर्वा अष्टमी का व्रत विशेषतः महिलाओं में बड़ा प्रचलित है। इस दिन महिलाएं, सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर, व्रत का संकल्प लेती हैं, नए वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद दही, फूल,फल, अगरबत्ती समेत सभी पूजन सामग्रियों से दूर्वा की पूजा की जाती है।
इसके पश्चात भगवान गणेश, शिव जी और माता पार्वती को दूर्वा चढ़ा कर, इनकी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान गणेश को तिल और मीठे आटे से बनी रोटी का भोग भी लगाया जाता है। साथ ही, ब्राह्मणों को नए वस्त्र और भोजन का भी दान दिया जाता है। दूर्वा घास के पूजन के लिए, विशेष परिश्रम की भी आवश्यकता नहीं होती। इसे घर के आँगन में ही लगाया जाता है। यह एक तरह से, आध्यात्मिकता को परिवेश के साथ सहेजकर रखने का प्रतीक भी होती है।
दूर्वा अष्टमी पूजा के लाभ क्या हैं?
दूर्वा अष्टमी व्रत और पूजा करने से अनेक आध्यात्मिक व सांसारिक लाभ मिलते हैं, जैसे:
भगवान गणेश और विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
दूर्वा की पूजा करने से आरोग्य, दीर्घायु और शांति का वरदान मिलता है।
घर में समृद्धि और सुख-शांति बनी रहती है।
यह व्रत विघ्न, शत्रु बाधा और दरिद्रता को दूर करने वाला माना गया है।
संतान सुख की प्राप्ति और संतान के जीवन में शुभता के लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायक है।
दूर्वा को अमृततुल्य माना गया है, अतः इसकी पूजा करने से पापों का क्षय होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
दूर्वा अष्टमी व्रत के नियम क्या हैं?
व्रतधारी को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनना चाहिए।
पूरे दिन उपवास रखें – फलाहार किया जा सकता है, परंतु अन्न सेवन न करें।
व्रत में मन, वचन और कर्म से पवित्रता और संयम बनाए रखें।
किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावना, क्रोध, कटु वाणी या झूठ से बचें।
इस दिन दूर्वा घास का संग्रह और पूजन अवश्य करें।
पूजा के समय विष्णु, गणेश और लक्ष्मी जी का ध्यान करें।
पूजा में दूर्वा को प्रमुख रूप से अर्पित करें और दूर्वा अष्टमी व्रत कथा अवश्य पढ़ें या सुनें।
संध्या के समय आरती करके प्रसाद वितरण करें और व्रत का समापन करें।
दूर्वा अष्टमी की परंपरा क्या है?
प्राचीन मान्यता के अनुसार दूर्वा का उद्भव विष्णु भगवान के रोम से हुआ है, जिससे यह पवित्र और पूजनीय मानी जाती है।
विशेषकर गणेश पूजन में दूर्वा को अति आवश्यक माना गया है। गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
दूर्वा अष्टमी पर सुहागिन स्त्रियां और ब्रह्मचारी युवक यह व्रत रखते हैं।
कई क्षेत्रों में इस दिन महिलाएं अपने परिवार की आरोग्यता और समृद्धि के लिए व्रत करती हैं।
कुछ स्थानों पर दूर्वा घास को रक्षा सूत्र में बांधकर, घर के मुख्य द्वार पर टांगा जाता है ताकि घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश न हो।
दूर्वा अष्टमी पर क्या करें
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थान को साफ करके विष्णु जी, गणेश जी और दूर्वा घास की पूजा हेतु चौकी सजाएं।
दूर्वा घास को साफ जल से धोकर, 11, 21, या 108 दूर्वा तंतु गणेश जी को अर्पित करें।
दूर्वा अष्टमी व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
व्रत रखने वाले दिन दिनभर मन, वाणी और आचरण से संयम रखें और सत्कर्म करें।
संध्या के समय घी या तेल का दीपक जलाएं, आरती करें और प्रसाद बाँटें।
पूजा के पश्चात जरूरतमंदों को भोजन या वस्त्र दान करें।
व्रतधारी दिन भर फलाहार करे और रात्रि में व्रत का पारण करें या अगले दिन करें (परंपरा अनुसार)।
दूर्वा अष्टमी व्रत का फल
यह व्रत रखने से गणेश जी, विष्णु जी और लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
संतान, परिवार और स्वास्थ्य की रक्षा होती है।
विघ्न, रोग, दरिद्रता और मानसिक कष्ट दूर होते हैं।
श्रद्धापूर्वक व्रत करने पर धन-संपत्ति और समृद्धि का वास होता है।
यह व्रत व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मन की शांति लाता है।
धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत करने वाला जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त होता है।
दूर्वा अष्टमी व्रत में क्या खाएं
व्रत के दिन अधिकतर लोग फलाहार करते हैं, यहाँ कुछ उपयुक्त विकल्प दिए जा रहे हैं:
साबूदाना खिचड़ी या खीर (बिना लहसुन-प्याज)
फल-मिठाई – जैसे केला, सेब, पपीता, मखाना, नारियल
सिंघाड़ा या कुट्टू के आटे से बनी पूरी या पकवान
आलू की सब्जी (सेंधा नमक के साथ)
दूध, दही, मठ्ठा
मखाना भुजिया या मखाने की खीर
शक्कर या गुड़ से बनी मिठाई (व्रत अनुसार)
इस दिन अन्न, लहसुन, प्याज, तामसिक या बासी भोजन वर्जित होता है।
दूर्वा घास की दिव्यता का इतिहास
ऐसी मान्यता है, कि दूर्वा अष्टमी के व्रत को पूरी श्रद्धा से करने पर, भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। दूर्वा घास की दिव्यता का अपना एक उज्जवल इतिहास वर्णित है। मान्यता है, कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दूर्वा घास का महत्व बताया था। वहीं माता सीता ने भी लंका में इसी दूर्वा घास के द्वारा, रावण से दूरी बनाई और रावण को भी इसे ना लांघने की चेतावनी दी थी।
तो ये थी, दूर्वा अष्टमी के व्रत की विस्तृत जानकारी। उम्मीद करते हैं, आपको यह जानकारी अच्छी लगी। हिंदू धर्म के ऐसे अन्य व्रतों और पर्वों की विस्तृत जानकारी से अवगत होने के लिए, आप श्रीमंदिर के साथ जुड़े रहें।