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अंडाल जयंती 2025

अंडाल जयंती 2025: श्रीविष्णु की परम भक्त अंडाल जी की जयंती पर जानें उनकी भक्ति, रचनाएं और आध्यात्मिक संदेश।

अंडाल जयंती के बारे में

आंडाल जयंती तमिलनाडु की प्रसिद्ध भक्ति कवियित्री और आलवार संत आंडाल की जयंती है, जो आषाढ़ मास में मनाई जाती है। वे भगवान विष्णु की परम भक्त थीं और उनकी रचित 'तिरुप्पावै' अत्यंत प्रसिद्ध है। इस दिन भक्तजन विशेष पूजा, भजन और उत्सवों के माध्यम से आंडाल देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

अंडाल जयंती: श्रीविष्णु की भक्तवत्सला, प्रेम और भक्ति की अद्वितीय प्रतीक

अंडाल जयंती दक्षिण भारत की विशेष धार्मिक तिथियों में से एक है। यह दिन अंडाल देवी की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जो श्रीविष्णु की परम भक्त मानी जाती हैं और जिन्हें अलवार संतों में स्थान प्राप्त है। विशेष रूप से तमिलनाडु में, यह उत्सव बहुत श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।

अंडाल जयंती का शुभ मुहूर्त व तिथि?

अंडाल जयंती हर वर्ष तमिल पंचांग के अनुसार आदि मास में, पूर्णिमा तिथि या आदि पुर्णिमा एवं पूरम नक्षत्र पर को मनाई जाती है। जिसे आदि पूराम भी कहा जाता है।

अंडाल जयन्ती - 28 जुलाई 2025, सोमवार

इस दिन के मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

03:58 ए एम से 04:41 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:19 ए एम से 05:23 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:38 ए एम से 12:31 पी एम

विजय मुहूर्त

02:18 पी एम से 03:12 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

06:46 पी एम से 07:07 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

06:46 पी एम से 07:49 पी एम

अमृत काल

10:52 ए एम से 12:33 पी एम

निशिता मुहूर्त

11:43 पी एम से 12:26 ए एम, जुलाई 29

रवि योग

05:23 ए एम से 05:35 पी एम

क्या है अंडाल जयंती या आदिपूरम?

अंडाल जयंती, दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक अत्यंत पावन पर्व है, जो देवी अंडाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि तमिल पंचांग के अनुसार "आदि" मास की शुक्ल पक्ष की "पूरम" नक्षत्र के दिन आती है, इसलिए इसे "आदिपूरम" भी कहा जाता है।

अंडाल देवी श्रीविष्णु की परम भक्त और दक्षिण भारत की 12 आलवार संतों में एकमात्र महिला संत मानी जाती हैं।

क्यों मनाते हैं अंडाल जयंती?

अंडाल जयंती मनाने का उद्देश्य देवी अंडाल की भक्ति, प्रेम और समर्पण भाव को स्मरण करना है। उन्होंने जीवनभर भगवान विष्णु से विवाह की कामना करते हुए भक्ति मार्ग का प्रचार किया। मान्यता है कि अंततः भगवान रंगनाथ स्वामी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।

अंडाल देवी कौन थीं?

  • अंडाल, श्रीविष्णु की अनन्य भक्त थीं, जिन्हें गोदा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
  • वे अलवार संतों में एकमात्र महिला थीं और उन्हें श्रीरंगम के विष्णु चित्त (पेरियालवार) की पुत्री माना जाता है।
  • यह माना जाता है कि अंडाल का जन्म तुलसी के पौधों के बीच हुआ था, और वे बाल्यकाल से ही भगवान विष्णु में लीन रहती थीं।

अंडाल जयंती का महत्व क्या है?

  • यह दिन स्त्रियों के लिए विशेष मंगलकारी माना गया है।
  • अंडाल देवी को भागवत प्रेम की साक्षात प्रतिमूर्ति माना गया है।
  • उन्होंने "तिरुप्पावै" नामक भक्ति रचना की रचना की, जो आज भी तमिल वैष्णव परंपरा में पाठ्य है।
  • इस दिन विशेष पूजा से भक्ति, सौभाग्य और समर्पण का भाव जागृत होता है।

अंडाल जयंती का धार्मिक और सामाजिक महत्व

  • अंडाल भक्ति की शक्ति की जीती-जागती मिसाल थीं। उनका प्रेम भगवान विष्णु के प्रति इतना गहरा था कि उन्हें साक्षात विष्णु से विवाह का वरदान प्राप्त हुआ।
  • यह दिन विशेष रूप से स्त्रियों के लिए प्रेरणादायक है – भक्ति, पवित्रता और निष्ठा का प्रतीक।
  • श्रीविल्लीपुथूर मंदिर, अंडाल का जन्मस्थान, इस दिन विशेष उत्सव का आयोजन करता है।

अंडाल जयंती पर किसकी पूजा करनी चाहिए?

  • इस दिन देवी अंडाल की विशेष पूजा होती है। साथ ही भगवान श्रीरंगनाथ (भगवान विष्णु) की पूजा भी अति शुभ मानी जाती है।
  • अंडाल जयंती की पूजा विधि:
  • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर में भगवान विष्णु और अंडाल देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • तुलसी, कमल, और पीले फूलों से अंडाल देवी की पूजा करें।
  • "तिरुप्पावै" के श्लोकों का पाठ करें।
  • मक्खन, दूध, और मिठाई अर्पित करें, क्योंकि अंडाल को यह प्रिय था।
  • व्रत या उपवास रखा जा सकता है, विशेषकर विवाहित महिलाएं संतान सुख व दाम्पत्य प्रेम की कामना से करती हैं।
  • अंत में आरती कर प्रसाद वितरण करें।

अंडाल जयंती के धार्मिक अनुष्ठान

  • प्रातः स्नान करके देवी अंडाल की मूर्ति या चित्र को गंध, पुष्प, तुलसी, केसर इत्यादि अर्पित करें।
  • तिरुप्पावै स्तोत्र का पाठ करें।
  • देवी को अक्षत, तुलसी, दूध से बने व्यंजन अर्पित करें।
  • मंदिरों में सामूहिक भजन-कीर्तन और विवाह उत्सव का आयोजन किया जाता है, जहाँ अंडाल और विष्णु के प्रतीकात्मक विवाह का मंचन होता है।

अंडाल जयंती मनाने के लाभ

  • स्त्रियों को सौभाग्य और अखंड सुहाग का वरदान मिलता है।
  • विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
  • प्रेम, भक्ति और संयम का भाव विकसित होता है।
  • परिवार में शांति और कल्याण बना रहता है।
  • कन्याओं के लिए यह दिन योग्य वर प्राप्ति हेतु श्रेष्ठ माना जाता है।

अंडाल जयंती व आदिपूरम में अंतर

असली में अंतर नहीं है, बल्कि यह एक ही पर्व के दो नाम हैं:

  • "अंडाल जयंती" — जब इसे देवी अंडाल के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाए।
  • "आदिपूरम" — जब इसे तमिल पंचांग के आदि मास की पूरम नक्षत्र तिथि के रूप में पहचाना जाए।

तमिलनाडु में श्रीविल्लीपुथुर मंदिर अंडाल देवी का प्रमुख मंदिर है, जहाँ यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

अंडाल जयंती कहाँ-कहाँ मनाई जाती है?

  • तमिलनाडु के मंदिरों में विशेष समारोह होते हैं – विशेषकर श्रीविल्लीपुथूर, श्रीरंगम, कांचीपुरम और मदुरै में।
  • वैष्णव संप्रदाय से जुड़े भक्त देशभर में इसे श्रद्धा से मनाते हैं।
  • मलयालम और तेलुगु भाषी क्षेत्रों में भी यह पर्व लोकप्रिय है।

अंडाल की रचनाएं

अंडाल ने दो प्रमुख भक्ति रचनाएँ तमिल में लिखीं:

  • तिरुप्पावै – जिसमें 30 भक्ति पद्य हैं, विशेषकर मार्गशीर्ष मास में गाए जाते हैं।
  • नाचियार तिरुमोझी – विष्णु से मिलन की लालसा से भरे गीत।

अंडाल जयंती या आदिपूरम, भक्ति, प्रेम और समर्पण की मिसाल है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जब श्रद्धा निष्कलंक हो, तो भगवान स्वयं अपने भक्तों के लिए प्रकट होते हैं। अंडाल जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह भक्ति और प्रेम की पराकाष्ठा है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि यदि श्रद्धा सच्ची हो, तो भगवान स्वयं अपने भक्त के व्रत को स्वीकार करते हैं। अंडाल की भक्ति आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देती है। अंडाल देवी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।

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Published by Sri Mandir·July 5, 2025

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