
अन्नपूर्णा स्तोत्रम् के पाठ से जीवन में अन्न, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र माँ अन्नपूर्णेश्वरी की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन है, जो भूख, दरिद्रता और अभाव को दूर कर सुख-शांति प्रदान करती हैं। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
अन्नपूर्णा स्तोत्रम् देवी अन्नपूर्णा माता को समर्पित एक पवित्र और मंगलकारी स्तोत्र है। इसका पाठ करने से जीवन में अन्न, धन और समृद्धि की कभी कमी नहीं होती। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर दरिद्रता, अभाव और नकारात्मकता दूर होकर घर में सुख-शांति और माँ अन्नपूर्णा की कृपा का वास होता है।
मां अन्नपूर्णा आदिशक्ति जगत जननी मां जगदंबा के विभिन्न रूपों में से एक हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां अन्नपूर्णा को अन्न की देवी कहा जाता है। शास्त्रों-ग्रंथों में भी अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा का विस्तार से वर्णन किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि यदि मां अन्नपूर्णा की कृपा हो तो कोई भी व्यक्ति कभी भूखा नहीं सोता है। लेकिन मां अन्नपूर्णा अगर नाराज हैं तो कितना ही धन आपके पास क्यों न हो आपको दो वक्त की रोटी सुखसही से नहीं मिलेगा।
हर मनुष्य को जीवित रहने के लिए अन्न की आवश्यकता होती है। अन्न से ही मनुष्य के शरीर को काम करने की शक्ति मिलती है। यदि अन्न ना हो तो व्यक्ति ज्यादा दिनों तक जीवित नही रह सकता है। हिन्दू धर्म में अन्न को ईश्वर का प्रसाद माना गया है और उसके लिए मां अन्नपूर्णा को अन्न की देवी माना गया है। ऐसे में हमें अन्न ग्रहण करने से पहले भगवान व मां अन्नपूर्णा को धन्यवाद अर्पित करना चाहिए। मां पार्वती ने मागर्शीष शुक्ल पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा स्वरूप को धारण किया था। इस दिन अन्नपूर्णा प्राकट्योत्स मनाया जाता है। इस दिन मां अन्नपूर्णा की आराधना करनी चाहिए, मां की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नही होती है। अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव को अन्न दान की विशेष महिमा है। अन्नपूर्णा प्राकट्योत्सव को मां अन्नपूर्णा की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है, जिससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों का घर अन्न, खाने-पीने की वस्तुओं और धन्य-धान से परिपूर्ण होता है।
आदि गुरु शंकराचार्य ने मां अन्नपूर्णा की उपासना के लिए अन्नपूर्णा स्तोत्र का निर्माण किया। मान्यता है कि अन्नपूर्णा स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करने पर मां अन्नपूर्णा की कृपा जरूर प्राप्त होती है और घर में अन्न की कभी कमी नहीं होती है। अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से आपको धन धान्य की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ जिस घर में होता है उस घर में कभी अन्न-धन की कमी नहीं होती है। अन्नपूर्णा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने वाले व्यक्ति के जीवन मे सुख समृद्धि बनी रहती है और कभी अन्न-धन की कमी नहीं होती।
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्य रत्नाकरी निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष माहेश्वरी । प्रालेयाचल वंश पावनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 1 ॥
अर्थ- हे मां अन्नपूर्णा आप अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करती हैं, वरदान देती हैं और अपने भक्तों के सम्पूर्ण पापों का नाश करती हैं। आप पार्वती के रूपमें जन्म लेकर साक्षात् माहेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आपने हिमालय वंश में जन्म लेकर हिमालय वंश को पावन कर दिया है, आप काशीपुरी की स्वामिनी हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा मुझे भिक्षा प्रदान करें, मेरा कल्याण करें।।1।।
नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमाम्बराडम्बरी मुक्ताहार विलम्बमान विलसत्-वक्षोज कुम्भान्तरी । काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 2 ॥
अर्थ- मां भगवती अन्नपूर्णा आप स्वर्ण-वस्त्रों से शोभा पाने वाली हैं, आप काशीपुर की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देने वाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं, मुझे भिक्षा और आशीर्वाद प्रदान करें। ।।2।।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य निष्ठाकरी चन्द्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षाकरी । सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 3 ॥
अर्थ- मां भगवती अन्नपूर्णा आप योगीजन को योग का आनन्द प्रदान करती हैं, आप शत्रुओं का नाश करती हैं, धर्म और अर्थ के लिये लोगों में निष्ठा उत्पन्न करती हैं, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि की प्रभाव-तरंगों के समान करणिती वाली हैं, तीनों लोकों की रक्षा करती हैं। अपने भक्तों को सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण करती हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।। 3।।
कैलासाचल कन्दरालयकरी गौरी-ह्युमाशाङ्करी कौमारी निगमार्थ-गोचरकरी-ह्योङ्कार-बीजाक्षरी । मोक्षद्वार-कवाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 4 ॥
अर्थ- कैलास पर्वत की गुफा में रहने वाली महागौरी, उमा, शंकरी और कौमारी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, आप वेदार्थ तत्त्व का अवबोध करानेवाली हैं, आप ‘ओंकार’ बीजाक्षर स्वरूपिणी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप समस्त प्राणियों की माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।4।।
दृश्यादृश्य-विभूति-वाहनकरी ब्रह्माण्ड-भाण्डोदरी लीला-नाटक-सूत्र-खेलनकरी विज्ञान-दीपाङ्कुरी । श्रीविश्वेशमनः-प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 5 ॥
अर्थ- हे मां अन्नपूर्णा आप दृश्य और अदृश्य रूप से सबका कल्याण करती हैं। आप अनन्त ब्रह्माण्ड को अपने उदररूपी पात्र में धारण करने वाली हैं, आप विज्ञान रूपी दीपक की शिखा हैं, आप भगवान विश्वनाथ मन को प्रसन्न रखनेवाली हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, भगवती अन्नपूर्णा मुझे शिक्षा प्रदान करें ।।5।।
उर्वीसर्वजयेश्वरी जयकरी माता कृपासागरी वेणी-नीलसमान-कुन्तलधरी नित्यान्न-दानेश्वरी । साक्षान्मोक्षकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 6 ॥
अर्थ- मां अन्नपूर्णा आप निरन्तर अन्न दानमें लगी रहती हैं। समस्त प्राणियोंको आनन्द प्रदान करनेवाली हैं। सर्वदा भक्तजनों का मंगल करनेवाली हैं, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपना आश्रय देनेवाले हैं, आप [ समस्त प्राणियों के माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।6।।
आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि विश्वेश्वरी शर्वरी । स्वर्गद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 7 ॥
अर्थ- मां अन्नपूर्णा आप भगवान शिवके तीनों भावों (सत्त्व, रज, तम) को प्रादुर्भूत करनेवाली हैं। आप केसर के समान आभावाली हैं, आप गंगा, यमुना और सरस्वती–इन तीनों नदियों की लहरों के रूप में विद्यमान हैं। आप विभिन्न रूपों में नित्य अभिव्यक्त होनेवाली हैं। मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।7।।
देवी सर्वविचित्र-रत्नरुचिता दाक्षायिणी सुन्दरी वामा-स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी । भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 8 ॥
अर्थ- मां अन्नपूर्णा आप राजा दक्ष की सुन्दर पुत्री हैं, आप माता के रूप में अपने वाम और स्वादमय पयोधरसे प्रिय सम्पादन करनेवाली हैं, आप सौभाग्य की माहेश्वरी हैं, आप भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करनेवाली और सदा उनका कल्याण करनेवाली हैं। मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।8।।
चन्द्रार्कानल-कोटिकोटि-सदृशी चन्द्रांशु-बिम्बाधरी चन्द्रार्काग्नि-समान-कुण्डल-धरी चन्द्रार्क-वर्णेश्वरी माला-पुस्तक-पाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 9 ॥
अर्थ- हे मां अन्नपूर्णा आप कोटि-कोटि चन्द्र-सूर्य-अग्नि के समान जाज्वल्यमान हैं, आप चन्द्र किरणों के समान और बिम्बाफल के समान रक्त-वर्णक अधरोष्ठवाली हैं, चन्द्र-सूर्य तथा अग्नि के समान प्रकाशमान केश धारण करनेवाली हैं। मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।9।।
क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता कृपासागरी सर्वानन्दकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी । दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 10 ॥
अर्थ- हे मां अन्नपूर्णा संकट के समय में अपने भक्तों की रक्षा करती है। आप मातृस्वरूपा हैं, आप कृपासमुद्र हैं, आप साक्षात् मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं। आप अपने भक्तों को महान् अभय प्रदान करती हैं। आप सदा कल्याण करनेवाली हैं। आप भगवान् विश्वनाथका ऐश्वर्य धारण करनेवाली हैं। यज्ञ का विध्वंस करके आप दक्ष को रुलानेवाली हैं, आप रोग से मुक्त करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा आश्रय देनेवाली हैं। आप भवगती अन्नपूर्णा हैं, मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।10।।
अन्नपूर्णे सादापूर्णे शङ्कर-प्राणवल्लभे । ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थं बिक्बिं देहि च पार्वती ॥ 11 ॥
अर्थ- हे मां अन्नपूर्णा आप सारे वैभवों से सदा परिपूर्ण रहने वाली हैं। आप भगवान् शंकर की प्राणप्रिया हैं। हे मां पार्वती ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के लिये मुझे भिक्षा प्रदान करें ।।
माता च पार्वतीदेवी पितादेवो महेश्वरः । बान्धवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ 12 ॥
अर्थ- हे मां अन्नपूर्णा आप मेरी माता है, भगवान् महेश्वर मेरे पिता हैं। सभी शिव भक्त मेरे बन्धु– बान्धव हैं और तीनों लोक मेरा अपना ही देश है। यह भावना सदा मेरे मन में बनी रहे। ।।12।।
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