पितृ तुष्टि कारक
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पितृ तुष्टि कारक

पितृ तुष्टि कारक क्यों महत्वपूर्ण है? जानें इसके उपाय, महत्व और श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की कृपा पाने का रहस्य।

पितृ तुष्टि कारक के बारे में

पितृ तुष्टि कारक स्तोत्र का पाठ पितरों की प्रसन्नता और उनकी आत्मिक शांति के लिए किया जाता है। इसे मुख्य रूप से अमावस्या, श्राद्ध पक्ष और पितृपक्ष के दिनों में पढ़ा जाता है। इसके द्वारा पितर संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृ तुष्टि कारक स्तोत्र का पाठ करना पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद पाने का एक उत्तम साधन माना जाता है। इसे खासतौर पर अमावस्या, श्राद्ध पक्ष और पितृपक्ष में किया जाता है।

पितृ तुष्टि कारक स्तोत्र

ॐ नमः पितृभ्यः स्वधाभ्यः स्वाहा।

ॐ पितृदेवताभ्यः नमः।

ॐ प्रेतदेवताभ्यः नमः।

ॐ स्वधा नमः स्वधा।

ॐ सर्वेभ्यः पितृभ्यः स्वधा नमः।

ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

ॐ अन्नं पितृभ्यो नमः।

ॐ जलं पितृभ्यो नमः।

ॐ तृप्तिं पितृभ्यो नमः।

ॐ आशीर्वादं पितृभ्यो नमः॥

अथ पितृस्तोत्रम्

श्लोक 1

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

भावार्थ: जो पितर अदृश्य होते हुए भी सबके पूजनीय हैं, तेजस्वी, ध्यानमग्न और दिव्य दृष्टि से संपन्न हैं, उन पितरों को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 2

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।

भावार्थ: जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षि और अन्य महापुरुषों के भी मार्गदर्शक हैं तथा सबकी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं, उन पितरों को मैं नमन करता हूँ।

श्लोक 3

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।

भावार्थ: जो मनु आदि महान राजर्षियों, सूर्य और चन्द्रमा तक के भी नायक हैं, उन पितरों को मैं भूमि और जल के भीतर भी प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 4

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

भावार्थ: नक्षत्रों, ग्रहों, अग्नि, वायु, आकाश, आकाशीय लोकों और पृथ्वी के भी अधिपति जो पितर हैं, मैं उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ और उनका आशीर्वाद चाहता हूँ।

श्लोक 5

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।

भावार्थ: जो देवर्षियों के जन्मदाता हैं, समस्त लोकों द्वारा वंदित हैं और अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 6

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

भावार्थ: प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण और योगेश्वर रूप में प्रतिष्ठित पितरों को मैं श्रद्धा से नमन करता हूँ।

श्लोक 7

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

भावार्थ: सातों लोकों में विद्यमान सात पितृगणों को प्रणाम है। साथ ही योगदृष्टि वाले जगत्पिता स्वयम्भू ब्रह्माजी को भी नमन है।

श्लोक 8

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

भावार्थ: चन्द्रमा पर आधारित और योगस्वरूप धारण करने वाले पितृगणों को मैं नमन करता हूँ। साथ ही समस्त सृष्टि के पिता सोमदेव को भी प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 9

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।

भावार्थ: अग्निस्वरूप अन्य पितरों को भी मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत अग्नि और सोम से ही व्याप्त है।

श्लोक 10

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।

भावार्थ: जो पितर तेजस्वरूप हैं, जो सूर्य, चन्द्र और अग्नि के रूप में प्रकट होते हैं, जो जगत् और ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सभी योगी पितरों को मैं एकाग्रचित्त होकर बार-बार नमन करता हूँ। वे स्वधाभोजी पितर हम पर सदैव प्रसन्न रहें और आशीर्वाद प्रदान करें।

पितृ स्तोत्र का महत्व

हिन्दू धर्म में यह विश्वास है कि हमारे पूर्वज हमें देखते हैं और हमारे जीवन पर उनका गहरा प्रभाव रहता है। जिस प्रकार देवताओं को प्रसन्न करने के लिए स्तोत्रों का पाठ किया जाता है, उसी प्रकार पितरों की शांति और संतुष्टि के लिए पितृ स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।

  • पूर्वजों की तृप्ति और शांति: इस स्तोत्र के माध्यम से पूर्वजों की आत्मा को शांति और संतोष प्राप्त होता है। जब पितर तृप्त होते हैं तो वे संतानों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं।
  • पितृदोष का निवारण: जन्मकुंडली में पितृदोष होने से व्यक्ति को अनेक कठिनाइयाँ आती हैं, जैसे कार्य में बाधा, आर्थिक संकट, पारिवारिक अशांति इत्यादि। पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ इस दोष को कम करने और इसके दुष्प्रभावों से मुक्ति पाने का सरल उपाय है।
  • पारिवारिक सुख-समृद्धि: पितरों का आशीर्वाद मिलने से परिवार में संपन्नता, धन-धान्य की वृद्धि और समग्र सुख-शांति बनी रहती है।
  • स्वास्थ्य और दीर्घायु का वरदान: मान्यता है कि जब पितर प्रसन्न होते हैं तो वे संतान को अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं।
  • आपसी मेल-जोल और सामंजस्य: परिवार में अक्सर छोटे-मोटे विवाद या मनमुटाव हो जाते हैं। पितृ स्तोत्र का पाठ घर के वातावरण को शुद्ध और शांत करता है, जिससे सदस्यों के बीच प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ती है।
  • आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति: इस स्तोत्र का जप केवल पितरों को ही नहीं, साधक को भी आत्मिक बल और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। यह साधक के मन को शांत कर नकारात्मक विचारों से दूर रखता है।
  • मनोकामना की पूर्ति: पितरों की कृपा से व्यक्ति की अधूरी इच्छाएँ पूरी होने लगती हैं और प्रयासों में सफलता प्राप्त होती है।

पितृ तुष्टि कारक स्तोत्र के लाभ

1. पितरों की प्रसन्नता और आशीर्वाद: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से पूर्वज संतुष्ट होते हैं। जब पितर प्रसन्न रहते हैं तो वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर जीवन में सुरक्षा, स्थिरता और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

2. पितृदोष से मुक्ति: यदि किसी की जन्मकुंडली में पितृदोष है तो यह स्तोत्र उसके प्रभाव को कम करने में सहायक माना जाता है। इससे पारिवारिक जीवन में आ रही बाधाएँ और अचानक होने वाली परेशानियाँ धीरे-धीरे कम हो जाती हैं।

3. घर-परिवार में शांति और सद्भाव: इस स्तोत्र का पाठ वातावरण को सकारात्मक बनाता है। इससे घर में कलह-क्लेश दूर होकर आपसी प्रेम, सामंजस्य और समझ बढ़ती है।

4. सुख-समृद्धि की प्राप्ति: पितरों की कृपा से जीवन में सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। धन-धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में सम्पन्नता आती है।

5. स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद: ऐसा विश्वास है कि जब पितर प्रसन्न होते हैं तो परिवार के सदस्यों को अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है।

6. मनोकामनाओं की सिद्धि: श्रद्धा और नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की अधूरी इच्छाएँ पूरी होने लगती हैं और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

7. आध्यात्मिक शांति और आत्मबल: स्तोत्र का जप मन को शांति और एकाग्रता प्रदान करता है। इससे साधक में आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति का विकास होता है।

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Published by Sri Mandir·August 26, 2025

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