क्या आप जानते हैं पितृ पक्ष में गंगा स्नान का महत्व क्या है? जानें गंगा स्नान की विधि, धार्मिक मान्यता और पितरों को प्रसन्न करने में इसके लाभ।
पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए तर्पण और दान करने का विधान है। पुराणों में बताया गया है कि पितृ पक्ष में किए गए पुण्यकर्मों का विशेष फल मिलता है। गंगा नदी हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र मानी गई है। कहते हैं कि गंगा के पवित्र जल से स्नान करने से व्यक्ति की आत्मा और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं। ऐसे में पितृ पक्ष में गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है।
गंगा स्नान का महत्व पितृ पक्ष में और भी अधिक बढ़ जाता है। पुराणों व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा गया है कि पितृ पक्ष के दिनों में गंगा में स्नान करने से हमारे पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि जब हम श्रद्धा से गंगा स्नान करते हैं और तर्पण करते हैं, तो पूर्वज प्रसन्न होकर हमारे जीवन की बाधाओं को दूर करते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं।
गंगा का जल न केवल हमारे शरीर को शुद्ध करता है बल्कि यह हमारे मन और आत्मा को भी पवित्र करता है। मान्यता है कि इस समय किए गए स्नान, तर्पण और मंत्रों के जाप से हमारे पितर संतुष्ट होते हैं और वे अपने वंशजों के लिए सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं।
गंगा स्नान के लिए सुबह का समय सबसे उत्तम माना गया है। सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने से शरीर और मन दोनों पवित्र होते हैं। शास्त्रों में इसे ‘स्नानकाल’ कहा गया है। सुबह के समय स्नान करने से पुण्य फल अधिक मिलता है और पितरों की आत्मा को शीघ्र शांति प्राप्त होती है।
स्नान करके साफ वस्त्र पहनें। इस समय केवल शारीरिक शुद्धि ही नहीं, मन की शुद्धि भी आवश्यक है। स्नान के समय ध्यान और एकाग्रता बनाए रखना शुभ माना गया है। ध्यान रहे कि मन में किसी प्रकार के नकारात्मक भाव, क्रोध या ईर्ष्या न हो। क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि मानसिक शुद्धि के बिना स्नान का पुण्य कम होता है।
गंगा स्नान के समय “ॐ पितृभ्यः नमः” या अन्य पितृ मंत्रों का उच्चारण करना आवश्यक है। मंत्र का जाप करते समय माता गंगा व पितरों के प्रति पूर्ण श्रद्धा का भाव होना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि बिना मंत्र उच्चारण के तर्पण और स्नान का प्रभाव अधूरा माना जाता है।
स्नान के बाद तर्पण करना पितृ पक्ष का मुख्य कर्म है। तर्पण में गंगा जल, तिल, अक्षत आदि सामग्री का प्रयोग किया जाता है। तर्पण करते समय पूर्वजों का स्मरण कर उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की जाती है। मान्यता है इससे हमारे पितृ संतुष्ट होते हैं, और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
स्नान और तर्पण के बाद दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में अन्न, वस्त्र, तिल, चावल या अन्य सामग्री का दान करना फलदाई माना गया है। पुराणों में कहा गया है कि दान और तर्पण के प्रभाव से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
गंगा स्नान और तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गंगा में स्नान करने से जातक को भी पुण्य प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में यह स्नान अधिक फलदायी माना गया है।
पितृ पक्ष में गंगा स्नान करने से जातक के साथ पूर्वजों द्वारा भी किए गए जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं।
गंगा स्नान करके पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण करने वाले जातक की आने वाली सभी पीढ़ियों को सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कभी-कभी किसी कारण से पितृ पक्ष में गंगा स्नान संभव नहीं होता। ऐसे समय में शास्त्रों में विकल्प दिए गए हैं। यदि आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा सकते, तो घर पर स्नान व तर्पण वाले जल में गंगा जल मिश्रित करके माता गंगा का आह्वान करें। गंगा जल मिले हुए जल से स्नान व तर्पण करना गंगा स्नान के समान ही प्रभावशाली माना गया है। इसके अलावा, तिल, अक्षत, अन्न, वस्त्र आदि का दान करके पितरों का स्मरण और पितृ मंत्रों का जाप करने का भी विशेष महत्व है। आप ये सभी उपाय करके पितृ पक्ष में अपने पितरों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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