क्या आप जानते हैं नवरात्रि के नियम क्या हैं? जानिए व्रत, पूजा, भोजन और अन्य महत्वपूर्ण नियम आसान हिंदी में।
नवरात्रि हिंदू धर्म का एक बेहद खास और पवित्र त्योहार है। इस पर्व को साल में दो बार मनाया जाता है, जो चैत्र और शारदीय नवरात्रि के नाम से जानी जाती है। यह पर्व माँ दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना को पूरी तरह से समर्पित होता है। इन पवित्र नौ दिनों तक भक्त व्रत, पूजा और भक्ति करते हैं।
साल 2025 में शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक रहेगी। अंतिम दिन दुर्गा विसर्जन के साथ विजयादशमी का पर्व भी मनाया जाएगा। इस बार खास बात यह है कि नवरात्रि की तृतीया दो दिन यानी 24 और 25 सितंबर को होगी, जिससे इस साल की शारदीय नवरात्रि का महत्व और बढ़ गया है।
1. सात्त्विक भोजन और उपवास: इन दिनों में साधक उपवास रखते हैं और केवल फल, दूध, सूखे मेवे व सात्त्विक आहार ग्रहण करते हैं। मांसाहार, शराब, प्याज़ और लहसुन का सेवन पूरी तरह वर्जित माना गया है।
2. शुद्धता और स्वच्छता: पूरे घर और पूजास्थल को साफ रखना आवश्यक है। साथ ही, साधक को नहाकर स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए और मन को भी शांत व निर्मल रखना चाहिए।
3. अखंड दीप प्रज्वलन: माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने नौ दिनों तक अखंड ज्योत जलाना शुभ माना जाता है। यह देवी की अनंत शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
4. अनुशासन और संयम: नवरात्रि के दौरान क्रोध, झूठ, चुगली और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। साधक को पूरे नौ दिन संयमित और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए।
5. माँ दुर्गा की स्तुति और पाठ: नवरात्रि में भक्त रोज़ाना देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं। दुर्गा चालीसा, सप्तशती या अन्य स्तोत्रों का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
6. कन्या पूजन की परंपरा: अष्टमी या नवमी को छोटी कन्याओं को माँ दुर्गा का रूप मानकर पूजने की परंपरा है। उन्हें भोजन कराना और उपहार देना शुभ फल प्रदान करता है।
7. व्रत का समापन: नवमी या दशमी के दिन हवन और कन्या भोज के साथ व्रत का पारण किया जाता है। ऐसा करने से नवरात्रि की साधना पूर्ण मानी जाती है और देवी माँ का आशीर्वाद मिलता है।
1. आत्मिक और शारीरिक शुद्धि: नवरात्रि में नियमों का पालन करने से न सिर्फ शरीर हल्का और स्वस्थ रहता है, बल्कि मन भी पवित्र और शांत होता है। सात्त्विक आहार और अनुशासन जीवन को नई दिशा देते हैं।
2. घर और वातावरण में सकारात्मकता: पूजा, भजन और अखंड दीपक से पूरे वातावरण में शुभ ऊर्जा का प्रवाह होता है। इससे घर में शांति और सुख-समृद्धि का माहौल बनता है।
3. आंतरिक शक्ति का जागरण: इन नियमों से साधक अपने भीतर की शक्तियों को पहचानता है। देवी माँ की उपासना से साहस, आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
4. अनुशासन और संयम का अभ्यास: व्रत और साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने आचरण और व्यवहार को नियंत्रित करना सीखता है। यह जीवन में धैर्य और संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
5. आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग: माँ दुर्गा की भक्ति और नवरात्रि के नियम व्यक्ति को अध्यात्म के करीब लाते हैं। इससे मन एकाग्र होता है और साधक को ईश्वरीय कृपा का अनुभव होता है।
1. अनाज और साधारण नमक से दूरी: व्रत के दिनों में गेहूँ, चावल, दाल और सामान्य नमक का सेवन नहीं किया जाता। इनके स्थान पर सेंधा नमक का उपयोग किया जाता है।
2. केवल सात्त्विक भोजन: प्याज़, लहसुन, मांसाहार और शराब व्रत में वर्जित माने जाते हैं। इस अवधि में केवल शुद्ध और सात्त्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए।
3. फल और दुग्ध पदार्थ का सेवन: फल, दूध, दही, पनीर, नारियल पानी आदि व्रतधारियों के लिए उत्तम माने जाते हैं। ये शरीर को हल्का रखते हुए ऊर्जा प्रदान करते हैं।
4. व्रत विशेष व्यंजन: कुट्टू और सिंघाड़े के आटे से बने व्यंजन, साबूदाना खिचड़ी, समा के चावल, शकरकंद और आलू की सब्ज़ी प्रायः व्रत में खाए जाते हैं।
5. हल्का और सीमित आहार: भोजन अधिक तैलीय या भारी नहीं होना चाहिए। कम मसाले और हल्के भोजन का सेवन व्रत की पवित्रता बनाए रखता है।
6. फलाहार और जल उपवास: कुछ लोग दिनभर फल, दूध या केवल जल लेकर व्रत करते हैं। यह साधना आत्मसंयम और मानसिक शक्ति को बढ़ाती है।
1. कलश स्थापना की परंपरा: कई क्षेत्रों में नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापित करने से होती है। मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं और उस पर नारियल व आम के पत्ते रखकर माँ दुर्गा का आह्वान किया जाता है।
2. गरबा और डांडिया नृत्य: गुजरात व राजस्थान में नवरात्रि का मुख्य आकर्षण गरबा और डांडिया होता है, जिसे भक्तजन माँ अम्बा की आराधना और आनंद के लिए करते हैं।
3. रामलीला व रावण दहन: उत्तर भारत में इस समय रामलीला का मंचन किया जाता है और दशहरे के दिन रावण दहन कर धर्म की विजय का संदेश दिया जाता है।
4. कन्या पूजन की परंपरा: उत्तर भारत और नेपाल में नवमी के दिन छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनका पूजन, भोजन और सम्मान किया जाता है।
5. दुर्गा पूजा उत्सव: पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में नवरात्रि को दुर्गा पूजा के रूप में बड़े भव्य तरीके से मनाया जाता है, जहाँ विशाल प्रतिमाएँ स्थापित कर पूजा और विसर्जन किया जाता है।
6. उपवास और प्रसाद: दक्षिण भारत के कई स्थानों पर लोग नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और देवी को विशेष भोग अर्पित करते हैं।
7. गोलू सजाने की परंपरा: तमिलनाडु और कर्नाटक में नवरात्रि पर घरों में 'गोलू' सजाया जाता है, जिसमें देवी-देवताओं और संस्कृति से जुड़े दृश्य मूर्तियों के माध्यम से प्रदर्शित किए जाते हैं।
1. मानसिक संतुलन: व्रत और साधना से मन शांत होता है और नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण मिलता है।
2. शारीरिक स्वास्थ्य: हल्का व सात्त्विक भोजन शरीर को डिटॉक्स करता है और पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है।
3. आध्यात्मिक उन्नति: मंत्र जाप और भक्ति से आत्मबल बढ़ता है और ईश्वर से जुड़ाव गहरा होता है।
4. अनुशासन का विकास: व्रत के नियम पालन से जीवन में संयम और नियमितता आती है।
5. सकारात्मक वातावरण: पूजा, दान और सेवा से घर-परिवार में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
निष्कर्ष:
नवरात्रि माँ दुर्गा और उनकी नौ शक्तियों की आराधना का पर्व है। यह सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और नई ऊर्जा पाने का अवसर भी है। इन दिनों में मन, वाणी और कर्म को पवित्र रखकर साधक देवी माँ से जुड़ाव महसूस करता है। यह उत्सव हमें बताता है कि अंत में अच्छाई और सच्चाई की ही जीत होती है। व्रत और पूजा से व्यक्ति के भीतर संयम, धैर्य और भक्ति की भावना गहरी होती है।
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