जानें माँ कूष्मांडा के पूजन विधि और मंत्र के लाभ।
मां कूष्मांडा, मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक है, जिनकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है। मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की निर्माता कहा जाता है। मां कूष्मांडा को सृष्टि की आदि स्वरूपा यानी आदिशक्ति कहते हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग मिट जाते हैं। मां के इस स्वरूप की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
मां कूष्मांडा के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र का महत्त्व अत्यधिक है। देवी कूष्मांडा मां दुर्गा के चौथे रूप में पूजित हैं। इनके बीज मंत्र का जाप करने से साधक को सुख, समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है।
मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:
अर्थ: इस मंत्र का अर्थ यह है कि "ज्ञान, शक्ति और माया स्वरूपिणी देवी को मेरा नमन है।" इस मंत्र के जाप से भक्त को देवी का आशीर्वाद, ज्ञान और आंतरिक शक्ति की प्राप्ति होती है।
मंत्र: सुरासम्पूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।
अर्थ: यह श्लोक माँ कूष्मांडा को समर्पित है और इस श्लोक के माध्यम से उनका ध्यान करते हुए उनकी कृपा का आह्वान किया है।
इसका अर्थ है कि जो देवी अपने हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश और रक्त से सिक्त माला धारण करती हैं, वे माँ कूष्मांडा हमें शुभ और कल्याणकारी आशीर्वाद प्रदान करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ: यह श्लोक माँ कूष्मांडा की महिमा का वर्णन करता है और उन्हें समर्पित है इस श्लोक के माध्यम से भक्त माँ कूष्मांडा से आशीर्वाद और कृपा की प्रार्थना करते हैं, और उन्हें सर्वव्यापी शक्ति के रूप में मानते हैं। यह श्लोक शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
मां कुष्मांडा के बीज मंत्रों का जाप एक माला यानी 108 बार करना चाहिए। मां कूष्माण्डा के बीज मंत्रों का जाप करने से आप जीवन में हमेशा उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। मां दुर्गा अपने कूष्मांडा स्वरूप में सात हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा धारण किए हुए हैं। मां के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना से सभी प्रकार के रोग और शारीरिक परेशानियां दूर होती है। मां कूष्मांडा अपने भक्तों की थोड़ी सी भक्ति से भी प्रसन्न हो जाती हैं, और यश-बल और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
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