
क्या आप जानते हैं शबरी जयंती 2026 कब है? यहां जानें तिथि, पूजा-विधि, व्रत नियम, माता शबरी की भक्ति का महत्व और इस दिन किए जाने वाले शुभ कार्य — सब कुछ एक ही जगह!
शबरी जयंती भक्त शबरी की निष्कलंक भक्ति और समर्पण का प्रतीक पर्व है। इस दिन माता शबरी के त्याग, सेवा और प्रभु श्रीराम के प्रति अटूट विश्वास को स्मरण किया जाता है। शबरी जयंती सच्ची भक्ति, विनम्रता और प्रेम का संदेश देती है।
रामायण में हनुमान जी, जामवंत, केवट आदि कई ऐसे पात्र हैं, जो भगवान श्री राम के प्रति अपनी प्रगाढ़ भक्ति के लिए सदैव स्मरण किए जाते हैं। ऐसी ही एक पात्र हैं माता शबरी। दोस्तों, जब तक शबरी के जूठे बेर की चर्चा न हो, तब तक रामायण अधूरी है। श्री राम के प्रति उनकी भक्ति को याद करते हुए फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष शबरी जयंती 08 फरवरी, रविवार को मनाई जाएगी।
अधिकतर मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर श्री राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। तभी से इस दिन राम भक्त शबरी की स्मृति यात्रा निकालते हैं। शबरी श्री राम की अनन्य भक्त थीं। भगवान राम ने उनके जूठे बेर खाकर जनमानस को यही संदेश दिया कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं।
शबरी श्रीराम की परम भक्त थीं। उनका असली नाम श्रमणा था और वे भील समुदाय (शबर जाति) से संबंध रखती थीं, इसलिए उन्हें शबरी कहा जाने लगा। उनके पिता भीलों के मुखिया थे। जब उनका विवाह तय हुआ, तो शादी से पहले सैकड़ों जानवरों की बलि की तैयारी देख वे बहुत दुखी हुईं। उन्हें लगा कि यह पाप है - इसलिए विवाह से एक दिन पहले ही वे जंगल भाग गईं और दंडकारण्य वन पहुंच गईं। वहां मतंग ऋषि तपस्या करते थे। शबरी उनसे डरती थीं कि वे भील जाति की हैं, इसलिए उन्हें सेवा का अवसर नहीं मिलेगा। इसलिए वे छिपकर सुबह-सुबह आश्रम का रास्ता साफ़ करतीं, कांटे हटातीं और रेत बिछा देतीं।
एक दिन ऋषि मतंग ने उन्हें देख लिया और उनकी सेवा भाव से प्रसन्न होकर उन्हें अपने आश्रम में स्थान दे दिया। मृत्यु से पहले मतंग ऋषि ने कहा - शबरी, भगवान श्रीराम तुमसे मिलने अवश्य आएंगे। इसके बाद शबरी हर दिन राम की प्रतीक्षा करतीं। वे रोज मीठे बेर चुनतीं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई बेर खट्टा न हो, पहले खुद चख लेतीं। सालों बाद जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण दंडकारण्य पहुंचे, तो शबरी ने उन्हें पहचान लिया। वे दौड़कर आईं, राम के पैर धोए और प्रेमपूर्वक अपने जूठे बेर अर्पित किए।
भगवान राम ने प्रेमपूर्वक वे बेर खाए और कहा- भक्ति में भाव ही सबसे बड़ा है। लक्ष्मण ने शर्म के कारण वे बेर नहीं खाए। कहा जाता है कि राम-रावण युद्ध में जब लक्ष्मण मूर्छित हुए, तो उन्हीं बेरों से बनी संजीवनी बूटी ने उन्हें जीवन दिया।
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