शबरी जयंती कब है
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शबरी जयंती कब है?

क्या आप जानते हैं शबरी जयंती 2026 कब है? यहां जानें तिथि, पूजा-विधि, व्रत नियम, माता शबरी की भक्ति का महत्व और इस दिन किए जाने वाले शुभ कार्य — सब कुछ एक ही जगह!

शबरी जयंती के बारे में

शबरी जयंती भक्त शबरी की निष्कलंक भक्ति और समर्पण का प्रतीक पर्व है। इस दिन माता शबरी के त्याग, सेवा और प्रभु श्रीराम के प्रति अटूट विश्वास को स्मरण किया जाता है। शबरी जयंती सच्ची भक्ति, विनम्रता और प्रेम का संदेश देती है।

शबरी जयंती कब है 2026 में

रामायण में हनुमान जी, जामवंत, केवट आदि कई ऐसे पात्र हैं, जो भगवान श्री राम के प्रति अपनी प्रगाढ़ भक्ति के लिए सदैव स्मरण किए जाते हैं। ऐसी ही एक पात्र हैं माता शबरी। दोस्तों, जब तक शबरी के जूठे बेर की चर्चा न हो, तब तक रामायण अधूरी है। श्री राम के प्रति उनकी भक्ति को याद करते हुए फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष शबरी जयंती 08 फरवरी, रविवार को मनाई जाएगी।

  • सप्तमी तिथि 08 फरवरी को 02:54 AM पर प्रारंभ होगी।
  • सप्तमी तिथि का समापन 09 फरवरी को 05:01 AM पर होगा।

शबरी जयंती शुभ मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त - 05:21 ए एम से 06:13 ए एम
  • प्रातः सन्ध्या - 05:47 ए एम से 07:05 ए एम
  • अभिजित मुहूर्त - 12:13 पी एम से 12:57 पी एम
  • विजय मुहूर्त - 02:26 पी एम से 03:10 पी एम
  • गोधूलि मुहूर्त - 06:03 पी एम से 06:29 पी एम
  • सायाह्न सन्ध्या - 06:06 पी एम से 07:24 पी एम
  • अमृत काल - 07:18 पी एम से 09:04 पी एम
  • निशिता मुहूर्त - 12:09 ए एम, फरवरी 09 से 01:01 ए एम, 09 फरवरी
  • रवि योग - 07:05 ए एम से 05:02 ए एम, 09 फरवरी

शबरी जयंती का महत्व

अधिकतर मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर श्री राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। तभी से इस दिन राम भक्त शबरी की स्मृति यात्रा निकालते हैं। शबरी श्री राम की अनन्य भक्त थीं। भगवान राम ने उनके जूठे बेर खाकर जनमानस को यही संदेश दिया कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं।

माता शबरी की कथा

शबरी श्रीराम की परम भक्त थीं। उनका असली नाम श्रमणा था और वे भील समुदाय (शबर जाति) से संबंध रखती थीं, इसलिए उन्हें शबरी कहा जाने लगा। उनके पिता भीलों के मुखिया थे। जब उनका विवाह तय हुआ, तो शादी से पहले सैकड़ों जानवरों की बलि की तैयारी देख वे बहुत दुखी हुईं। उन्हें लगा कि यह पाप है - इसलिए विवाह से एक दिन पहले ही वे जंगल भाग गईं और दंडकारण्य वन पहुंच गईं। वहां मतंग ऋषि तपस्या करते थे। शबरी उनसे डरती थीं कि वे भील जाति की हैं, इसलिए उन्हें सेवा का अवसर नहीं मिलेगा। इसलिए वे छिपकर सुबह-सुबह आश्रम का रास्ता साफ़ करतीं, कांटे हटातीं और रेत बिछा देतीं।

एक दिन ऋषि मतंग ने उन्हें देख लिया और उनकी सेवा भाव से प्रसन्न होकर उन्हें अपने आश्रम में स्थान दे दिया। मृत्यु से पहले मतंग ऋषि ने कहा - शबरी, भगवान श्रीराम तुमसे मिलने अवश्य आएंगे। इसके बाद शबरी हर दिन राम की प्रतीक्षा करतीं। वे रोज मीठे बेर चुनतीं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई बेर खट्टा न हो, पहले खुद चख लेतीं। सालों बाद जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण दंडकारण्य पहुंचे, तो शबरी ने उन्हें पहचान लिया। वे दौड़कर आईं, राम के पैर धोए और प्रेमपूर्वक अपने जूठे बेर अर्पित किए।

भगवान राम ने प्रेमपूर्वक वे बेर खाए और कहा- भक्ति में भाव ही सबसे बड़ा है। लक्ष्मण ने शर्म के कारण वे बेर नहीं खाए। कहा जाता है कि राम-रावण युद्ध में जब लक्ष्मण मूर्छित हुए, तो उन्हीं बेरों से बनी संजीवनी बूटी ने उन्हें जीवन दिया।

शबरी जयंती की पूजा विधि

  • प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान श्रीराम व माता शबरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • दीप जलाकर पूजा शुरू करें और यह संकल्प लें कि मैं माता शबरी की भक्ति और श्रीराम के प्रति उनकी निष्ठा को स्मरण करते हुए यह पूजा कर रही/रहा हूं।
  • पूजन सामग्री- फूल (विशेषकर गुलाब और कमल), धूप, दीप, अगरबत्ती, रोली, चावल, अक्षत, तुलसी दल, फल और मिष्ठान (विशेषकर बेर, क्योंकि शबरी माता ने भगवान राम को बेर खिलाए थे)
  • भगवान श्रीराम और माता शबरी का ध्यान करें।
  • “ॐ नमो भगवते रामचन्द्राय नमः” और “ॐ नमः शबरी माते नमः” मंत्र का जाप करें।
  • फूल, फल और बेर अर्पित करें।
  • भगवान को जल, अक्षत, पुष्प, धूप और दीप अर्पित करें।
  • शबरी माता की कथा पढ़ें या सुनें – इसमें बताया गया है कि कैसे उन्होंने वर्षों तक भगवान राम के दर्शन के लिए तप किया।
  • अंत में आरती करें – श्रीरामचंद्र कृपालु भज मन…”, “जय माता शबरी भक्ति स्वरूपा…” (यदि उपलब्ध हो)
  • पूजा के बाद प्रसाद में बेर, फल और गुड़ चढ़ाएं।
  • इसे भक्तों में बाँटें और खुद भी ग्रहण करें।

शबरी जयंती पर क्या करें

  • प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ, हल्के रंग के वस्त्र पहनें।
  • ईश्वर और माता शबरी के प्रति भक्ति भाव से दिन की शुरुआत करें।
  • पूजा स्थल पर श्रीराम और माता शबरी का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
  • दीपक जलाकर, पुष्प, अक्षत, धूप और फल अर्पित करें।
  • विशेष रूप से बेर के फल अर्पित करें, क्योंकि माता शबरी ने भगवान राम को बेर खिलाए थे।
  • “रामायण” के अरण्यकांड में शबरी माता का वर्णन आता है।
  • उस प्रसंग को सुनना या पढ़ना इस दिन अत्यंत शुभ होता है।
  • “ॐ नमो भगवते रामचन्द्राय नमः” या “जय माता शबरी” मंत्र का जप करें।
  • भक्ति भाव से भजन करें - इससे मन में शांति और श्रद्धा का भाव बढ़ता है।
  • इस दिन जरूरतमंदों को भोजन, फल, अन्न, वस्त्र या दान देना अत्यंत शुभ होता है।
  • किसी भूखे व्यक्ति या पशु को भोजन कराना भी पुण्यफल देता है।
  • भक्त प्रायः इस दिन फलाहार या निर्जला व्रत रखते हैं।
  • दिनभर ईश्वर भक्ति और मनन में समय बिताना शुभ माना गया है।

शबरी जयंती के दिन क्या न करें

  • शबरी माता ने सादा जीवन और सच्ची भक्ति से भगवान को पाया।
  • इसलिए इस दिन किसी प्रकार का दिखावा, झूठ या अहंकार नहीं रखना चाहिए।
  • यह दिन पूर्णतया सात्त्विक और पवित्र माना गया है।
  • किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन या नशा करना निषेध है।
  • माता शबरी ने सभी में भगवान का रूप देखा था।
  • इसलिए इस दिन किसी व्यक्ति, जाति या गरीब का अपमान न करें।
  • यह दिन शांति, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
  • इस दिन घर में झगड़ा या नकारात्मक बातें करने से बचें।
  • क्योंकि माता शबरी ने बेर से भगवान की सेवा की थी, इसलिए इस दिन बेर को व्यर्थ न फेंके या अनादर न करें।
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Published by Sri Mandir·December 22, 2025

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