महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती कब है
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महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती कब है

क्या आप जानते हैं महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती 2026 कब है? यहां जानें तिथि, उनके जीवन और शिक्षाओं का महत्व, आर्य समाज की स्थापना और इस दिन किए जाने वाले धार्मिक एवं सामाजिक कार्य — सब कुछ एक ही जगह!

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती के बारे में

भारत की महान विभूतियों में महर्षि दयानंद सरस्वती का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने न केवल हिंदू समाज को नई दिशा दी बल्कि सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और रूढ़ियों के विरुद्ध सशक्त आंदोलन चलाया। उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने शिक्षा, सामाजिक सुधार और राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत किया। हर वर्ष उनकी जयंती उनके विचारों को याद करने के उद्देश्य से मनाई जाती है।

2026 में महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती कब है?

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को हुआ था। इसलिए 2026 में उनकी जयंती 12 फरवरी, गुरुवार के दिन मनाई जाएगी।

इस दिन पूरे भारत में आर्य समाज के मंदिरों, गुरुकुलों और शैक्षणिक संस्थानों में विशेष कार्यक्रम होते हैं। वेद पाठ, यज्ञ, सत्संग और सामाजिक सेवा के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती का महत्व

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती दयानंद जी के उन विचारों और सिद्धांतों को याद करने का अवसर है जिन्होंने भारतीय समाज में आधुनिकता की नींव रखी। इस दिन को मनाने के कई प्रमुख महत्व हैं:

महत्व:

  • महर्षि दयानंद ने समाज में फैली कुरीतियों सती प्रथा, बाल विवाह, जातिगत भेदभाव, मूर्ति पूजा और अंधविश्वासके विरुद्ध आवाज उठाई।
  • उन्होंने शिक्षा को सबके लिए अनिवार्य बताया और लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया।
  • उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने समाज में सुधार लाने का प्रण लिया।
  • आर्य समाज ने स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रवाद को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • यह दिन उनके त्याग, संघर्ष और समाज को दी गई अमूल्य शिक्षा को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है।

महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के मोरबी में हुआ। उनका मूल नाम मूलशंकर तिवारी था। उनके पिता करशनजी तिवारी एक प्रतिष्ठित कर अधिकारी थे और धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे।

बचपन और धार्मिक वातावरण

बाल्यकाल से ही मूलशंकर धार्मिक वातावरण में पले-बढ़े। वे बचपन से ही आध्यात्मिक और जिज्ञासु प्रकृति के थे। पूजा-पाठ देखते थे, पर उनके मन में कई सवाल उठते थे कि क्या ईश्वर मूर्ति में है? अगर ईश्वर सर्वव्यापी है, तो उसे किसी विशेष स्थान या वस्तु में क्यों खोजा जाता है?

परिवार से दूरी और सत्य की खोज

15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने परिवार को छोड़ दिया और ज्ञान तथा सत्य की खोज में निकल पड़े। उन्होंने हिमालय की यात्रा की, कई योगियों और विद्वानों से मुलाकात की और गहन साधना की। इसी मार्ग में उन्हें स्वामी विरजानंद का सान्निध्य प्राप्त हुआ, जो एक महान वेदज्ञ आचार्य थे। महर्षि दयानंद ने अपने गुरु से वेदों का गहन अध्ययन किया और सत्य के प्रचार का संकल्प लिया।

आर्य समाज की स्थापना

1875 में उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वेदों के ज्ञान को पुनर्जीवित करना था। उन्होंने मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और कुरीतियों का विरोध किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ भारतीय समाज को नई जागृति देने वाला ग्रंथ माना जाता है।

निधन

30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में महर्षि दयानंद का निधन हुआ। परंतु उनके विचार, सिद्धांत और आंदोलन आज भी जीवित हैं और लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

आर्य समाज की स्थापना और उद्देश्य

महर्षि दयानंद ने 10 अप्रैल 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य वेदों के सत्य ज्ञान को जनता तक पहुँचाना था।

आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य

  • सत्य का प्रचार करना और असत्य का नाश करना ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’।
  • शिक्षा को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाना, विशेषकर महिलाओं और वंचित वर्गों तक।
  • जाति प्रथा, छुआछूत और सामाजिक असमानता को समाप्त करना।
  • वेदों की सत्ता और उनके सत्य सिद्धांतों को स्थापित करना।
  • समाज में नैतिकता, समानता, भाईचारा और राष्ट्रभक्ति को बढ़ावा देना।
  • यज्ञ, सत्संग, संस्कार और अनुशासन के माध्यम से जीवन को शुद्ध बनाना।
  • अनाथ सेवा, महिलाओं का सशक्तीकरण, और समाज सुधार के विभिन्न आंदोलन।
  • आर्य समाज ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़ा योगदान दिया। स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय जैसे महान नेता आर्य समाज से प्रेरित थे

महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रमुख उपदेश

महर्षि दयानंद के उपदेश सरल, स्पष्ट और समाज सुधार की दिशा में प्रेरक थे। उनके कुछ प्रमुख उपदेश:

वेदों की ओर लौटो

  • उनका मानना था कि वेदों में ही जीवन का सच्चा और वैज्ञानिक ज्ञान है और भारत की प्रगति वेदों पर आधारित होगी।

मूर्तिपूजा का विरोध

  • उन्होंने कहा कि ईश्वर निराकार है, इसलिए उसकी पूजा किसी रूप, वस्तु या मूर्ति में करना उचित नहीं।

समानता और जाति उन्मूलन

  • उन्होंने जन्म आधारित जाति व्यवस्था को गलत बताया।
  • उनका मानना था कि योग्यता और कर्म ही व्यक्ति की वास्तविक जाति है।

महिला शिक्षा का समर्थन

  • उन्होंने महिलाओं को शिक्षा, सम्मान और समान अधिकार देने की बात कही। बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया।

सच्चाई, ब्रह्मचर्य और अनुशासन

  • उनका जीवन सच्चाई, ब्रह्मचर्य और अनुशासन का प्रत्यक्ष उदाहरण था। उन्होंने कहा कि सत्य का मार्ग कठिन होता है, परंतु वही सर्वोच्च है।

राष्ट्रभक्ति और समाज सेवा

  • दयानन्द सरस्वती जी के अनुसार देश सेवा, समाज सेवा और मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।

धर्म का असली अर्थ

  • उन्होंने कहा था कि धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं, बल्कि सत्य, नैतिकता और सदाचार है।

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती पर क्या करें

इस दिन उनके उपदेशों पर चलना सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। जयंती पर करने योग्य कुछ कार्य:

वेद मंत्रों का पाठ और यज्ञ

आर्य समाज मंदिरों में यज्ञ और वेद पाठ का आयोजन होता है। आप भी इसमें भाग ले सकते हैं।

सत्यार्थ प्रकाश या अन्य ग्रंथों का अध्ययन

उनकी लिखी हुई पुस्तकें पढ़ने से उनके विचार समझ में आते हैं।

सामाजिक सेवा

अन्याय, असमानता और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाकर उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया जा सकता है।

बच्चों और जरूरतमंदों को शिक्षा में सहायता

महर्षि दयानंद शिक्षा को सर्वोच्च मानते थे। इस दिन किसी जरूरतमंद को किताबें, स्टेशनरी या पढ़ाई में सहायता देना श्रेष्ठ कार्य है।

आर्य समाज के कार्यक्रमों में भाग लेना

भजन, सत्संग, प्रवचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम उनकी जयंती पर विशेष रूप से आयोजित किए जाते हैं।

व्यसनों से दूर रहने का संकल्प

महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने नशे और बुरी आदतों से दूर रहने की शिक्षा दी। इस दिन इन आदतों से दूरी बनाने का संकल्प लिया जा सकता है।

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती के दिन क्या न करें?

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती का उद्देश्य है कि हम उनके बताए मार्ग का सम्मान करें। इस दिन खासतौर पर कुछ बातों से बचना चाहिए।

अंधविश्वास या कुरीतियों में शामिल न हों

उन्होंने तर्क और सत्य के आधार पर जीवन जीने की बात कही, इसलिए अंधविश्वास से दूर रहें।

व्यर्थ का दिखावा न करें

महर्षि दयानंद सरस्वती जी का मानना था कि धर्म का सार दिखावा नहीं, बल्कि व्यक्ति का आचरण है।

दूसरों के प्रति अपमानजनक व्यवहार न करें

उनके अनुसार हर मनुष्य समान है, इसलिए जाति, धर्म, भाषा या स्थिति के अनुसार भेदभाव न करें।

अनैतिक कार्यों से दूर रहें

महर्षि दयानंद सरस्वती अनैतिक कार्यों का विरोध करते थे, इसलिए इस दिन नशा व क्रोध न करें।

समय व्यर्थ न करें

उनकी शिक्षा अनुशासन और कर्म पर आधारित थी। इसलिए फ़ालतू कार्यों में समय व्यर्थ करने से बचें।

महर्षि दयानंद सरस्वती एक महान योगी, समाज सुधारक और राष्ट्रप्रेमी थे। उनके द्वारा दिया गया संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 19वीं सदी में था। समाज के सुधार, शिक्षा के प्रसार, महिलाओं के उत्थान और अंधविश्वासों के खिलाफ संघर्ष में उनका योगदान अविस्मरणीय है।

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Published by Sri Mandir·December 22, 2025

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