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यमुना चालीसा

श्रीकृष्ण से जुड़ी और मोक्षदायिनी यमुना मैया की स्तुति करें श्रद्धापूर्वक यमुना चालीसा से। इसके पाठ से जीवन में आता है पवित्रता, आध्यात्मिक जागरूकता और सुख-शांति।

यमुना चालीसा के बारे में

माँ यमुना केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में एक जीवंत देवी के रूप में पूजी जाती हैं? उन्हें भगवान विष्णु की शरण में रहने वाली दिव्य शक्ति माना गया है। गोकुल, वृंदावन और श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण होते ही सबसे पहले यमुना माँ की छवि मन में उभरती है। उनकी पूजा से आध्यात्मिक चेतना, धार्मिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि भी प्रवेश करती है।

यमुना चालीसा क्या है?

यमुना चालीसा एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, जो माँ यमुना के दिव्य स्वरूप, उनकी महिमा और कृपा का गुणगान करती है। इसमें कुल 40 चौपाइयाँ होती हैं, जिन्हें श्रद्धा और भक्ति भाव से पढ़ने पर माँ यमुना का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह चालीसा उन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है जो माँ यमुना की भक्ति में पूर्ण विश्वास रखते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति, पवित्रता और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं। यमुना चालीसा का पाठ माँ यमुना के प्रति समर्पण और आस्था को प्रकट करने का माध्यम है, जिससे भक्त को मन की शुद्धता और भगवान की ओर से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है।

यमुना चालीसा का पाठ क्यों करें?

यमुना चालीसा का पाठ न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खोलता है, बल्कि यह जीवन में आने वाली नकारात्मक ऊर्जा, रोग, अशांति और दरिद्रता से भी रक्षा करता है। जो लोग मानसिक तनाव, कठिनाइयों या असफलताओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह चालीसा एक शक्तिशाली साधन है। इसके श्लोकों का श्रद्धा से किया गया पाठ व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करता है, और जीवन में सफलता व शांति लाने में सहायक होता है।

यमुना चालीसा

॥ दोहा ॥

प्रियसंग क्रीड़ा करत नित,

सुखनिधि वेद को सार ।

दरस परस ते पाप मिटे,

श्रीकृष्ण प्राण आधार ॥

यमुना पावन विमल सुजस,

भक्तिसकल रस खानि ।

शेष महेश वदंन करत,

महिमा न जाय बखानि ॥

पूजित सुरासुर मुकुन्द प्रिया,

सेवहि सकल नर-नार ।

प्रकटी मुक्ति हेतु जग,

सेवहि उतरहि पार ॥

बंदि चरण कर जोरी कहो,

सुनियों मातु पुकार ।

भक्ति चरण चित्त देई के,

कीजै भव ते पार ॥

॥ चौपाई ॥

जै जै जै यमुना महारानी ।

जय कालिन्दि कृष्ण पटरानी ॥१॥

रूप अनूप शोभा छवि न्यारी ।

माधव-प्रिया ब्रज शोभा भारी ॥२॥

भुवन बसी घोर तप कीन्हा ।

पूर्ण मनोरथ मुरारी कीन्हा ॥३॥

निज अर्धांगी तुम्ही अपनायों ।

सावँरो श्याम पति प्रिय पायो ॥४॥

रूप अलौकिक अद्भूत ज्योति ।

नीर रेणू दमकत ज्यूँ मोती ॥५॥

सूर्यसुता श्यामल सब अंगा ।

कोटिचन्द्र ध्युति कान्ति अभंगा ॥६॥

आश्रय ब्रजाधिश्वर लीन्हा ।

गोकुल बसी शुचि भक्तन कीन्हा ॥७॥

कृष्ण नन्द घर गोकुल आयों ।

चरण वन्दि करि दर्शन पायों ॥८॥

सोलह श्रृंगार भुज कंकण सोहे ।

कोटि काम लाजहि मन मोहें ॥९॥

कृष्णवेश नथ मोती राजत ।

नुपूर घुंघरू चरण में बाजत ॥१०॥

मणि माणक मुक्ता छवि नीकी ।

मोहनी रूप सब उपमा फिकी ॥११॥

मन्द चलहि प्रिय-प्रीतम प्यारी ।

रीझहि श्याम प्रिय प्रिया निहारी ॥१२॥

मोहन बस करि हृदय विराजत ।

बिनु प्रीतम क्षण चैन न पावत ॥१३॥

मुरलीधर जब मुरली बजावैं ।

संग केलि कर आनन्द पावैं ॥१४॥

मोर हंस कोकिल नित खेलत ।

जलखग कूजत मृदुबानी बोलत ॥१५॥

जा पर कृपा दृष्टि बरसावें ।

प्रेम को भेद सोई जन पावें ॥१६॥

नाम यमुना जब मुख पे आवें ।

सबहि अमगंल देखि टरि जावें ॥१७॥

भजे नाम यमुना अमृत रस ।

रहे साँवरो सदा ताहि बस ॥१८॥

करूणामयी सकल रसखानि ।

सुर नर मुनि बंदहि सब ज्ञानी ॥१९॥

भूतल प्रकटी अवतार जब लीन्हो ।

उध्दार सभी भक्तन को किन्हो ॥२०॥

शेष गिरा श्रुति पार न पावत ।

योगी जति मुनी ध्यान लगावत ॥२१॥

दंड प्रणाम जे आचमन करहि ।

नासहि अघ भवसिंधु तरहि ॥२२॥

भाव भक्ति से नीर न्हावें ।

देव सकल तेहि भाग्य सरावें ॥२३॥

करि ब्रज वास निरंतर ध्यावहि ।

परमानंद परम पद पावहि ॥२४॥

संत मुनिजन मज्जन करहि ।

नव भक्तिरस निज उर भरहि ॥२५॥

पूजा नेम चरण अनुरागी ।

होई अनुग्रह दरश बड़भागी ॥२६॥

दीपदान करि आरती करहि ।

अन्तर सुख मन निर्मल रहहि ॥२७॥

कीरति विशद विनय करी गावत ।

सिध्दि अलौकिक भक्ति पावत ॥२८॥

बड़े प्रेम श्रीयमुना पद गावें ।

मोहन सन्मुख सुनन को आवें ॥२९॥

आतुर होय शरणागत आवें ।

कृपाकरी ताहि बेगि अपनावें ॥३०॥

ममतामयी सब जानहि मन की ।

भव पीड़ा हरहि निज जन की ॥३१॥

शरण प्रतिपाल प्रिय कुंजेश्वरी ।

ब्रज उपमा प्रीतम प्राणेश्वरी ॥३२॥

श्रीजी यमुना कृपा जब होई ।

ब्रह्म सम्बन्ध जीव को होई ॥३३॥

पुष्टिमार्गी नित महिमा गावैं ।

कृष्ण चरण नित भक्ति दृढावैं ॥३४॥

नमो नमो श्री यमुने महारानी ।

नमो नमो श्रीपति पटरानी ॥३५॥

नमो नमो यमुने सुख करनी ।

नमो नमो यमुने दु: ख हरनी ॥३६॥

नमो कृष्णायैं सकल गुणखानी ।

श्रीहरिप्रिया निकुंज निवासिनी ॥३७॥

करूणामयी अब कृपा कीजैं ।

फदंकाटी मोहि शरण मे लीजैं ॥३८॥

जो यमुना चालिसा नित गावैं ।

कृपा प्रसाद ते सब सुख पावैं ॥३९॥

ज्ञान भक्ति धन कीर्ति पावहि ।

अंत समय श्रीधाम ते जावहि ॥४०॥

॥ दोहा ॥

भज चरन चित सुख करन,

हरन त्रिविध भव त्रास ।

भक्ति पाई आनंद रमन,

कृपा दृष्टि ब्रज वास ॥

यमुना चालिसा नित नेम ते,

पाठ करे मन लाय ।

कृष्ण चरण रति भक्ति दृढ,

भव बाधा मिट जाय ॥

॥ इति श्री यमुना चालीसा संपूर्णम् ॥

पाठ की विधि और नियम

यमुना चालीसा का पाठ श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाए तो यह जीवन में समृद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। यह चालीसा रोग, संकट और विभिन्न समस्याओं से मुक्ति पाने में भी सहायक मानी जाती है।

  • पाठ प्रातःकाल या संध्या के शांत समय में करें, जब मन एकाग्र हो।

  • पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और माँ यमुना का ध्यान करें।

  • दीपक जलाकर माँ यमुना का ध्यान करें और उनके पूजन में तुलसी के पत्तों को अर्पित करें।

  • माँ यमुना के चित्र या प्रतीक के समक्ष दीपक, अगरबत्ती और पुष्प अर्पित करें।

  • फिर श्रद्धा भाव से चालीसा का पाठ करें, उच्चारण शुद्ध और मन एकाग्र रखें।

  • पाठ पूर्ण होने के बाद माँ यमुना की आरती करें और भक्ति भाव से प्रसाद सभी को बाँटें।

  • विशेष रूप से रविवार और पूर्णिमा के दिन यमुना चालीसा का पाठ करना अत्यधिक शुभ और फलदायी माना जाता है।

यमुना चालीसा के लाभ

यमुना चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

  • मन को शांति और स्थिरता मिलती है, जिससे तनाव दूर होता है।

  • स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में राहत मिलती है।

  • आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और संपन्नता बढ़ती है।

  • पारिवारिक रिश्तों में प्रेम, समझ और सामंजस्य बढ़ता है।

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Published by Sri Mandir·September 19, 2025

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