आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि की कृपा प्राप्त करने हेतु पढ़ें श्रद्धापूर्वक धन्वंतरि चालीसा। इसके पाठ से जीवन में आता है निरोगता, संतुलन और मानसिक शांति।
धन्वंतरि चालीसा भगवान धन्वंतरि की स्तुति है, जो आयुर्वेद के देवता और स्वास्थ्य के संरक्षक माने जाते हैं। इसे श्रद्धा से पढ़ने पर रोगों से मुक्ति, अच्छी सेहत और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा होती है। वे आयुर्वेद के जनक और देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में उनका स्थान 12वाँ है। उन्होंने अनेक जड़ी-बूटियों का अध्ययन कर यह बताया कि कौन-सी औषधि किस रोग में उपयोगी है और उसके लाभ-हानि क्या हैं। धन्वंतरि चालीसा एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, जिसमें उनके दिव्य स्वरूप, चमत्कारी उपचार शक्ति और अमृतमयी कृपा का वर्णन है। इसका नियमित पाठ न केवल शारीरिक और मानसिक रोगों से राहत देता है, बल्कि जीवन में स्वास्थ्य, संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा भी लाता है। यह चालीसा आरोग्य और आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने का एक प्रभावशाली माध्यम है।
धनतेरस को माँ लक्ष्मी के आगमन के साथ-साथ भगवान धन्वंतरि के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि उनकी पूजा करने से व्यक्ति को निरोगी शरीर, मानसिक शांति और दीर्घायु प्राप्त होती है। भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने के लिए अनेक स्तोत्र, आरतियाँ और चालीसाएँ रची गई हैं। इनमें से धन्वंतरि चालीसा एक अत्यंत प्रभावशाली भक्तिपाठ है। इसका नियमित पाठ करने से न केवल आरोग्यता प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में धन, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का भी वास होता है। विशेषकर धनतेरस के दिन इसका पाठ करने से सालभर धन-धान्य की कमी नहीं होती हैं।
II दोहा II
करूं वंदना गुरू चरण रज,
ह्रदय राखी श्री राम।
मातृ पितृ चरण नमन करूँ,
प्रभु कीर्ति करूँ बखान II
तव कीर्ति आदि अनंत है,
विष्णुअवतार भिषक महान।
हृदय में आकर विराजिए,
जय धन्वंतरि भगवान II
II चौपाई II
जय धनवंतरि जय रोगारी।
सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी II
तुम्हारी महिमा सब जन गावें।
सकल साधुजन हिय हरषावे II
शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना।
तुम्हरी कृपा से सब जग जाना II
कथा अनोखी सुनी प्रकाशा।
वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा II
कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा।
दीन्हा सब देवन को श्रापा II
श्री हीन भये सब तबहि।
दर दर भटके हुए दरिद्र हि II
सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका।
ब्रह्म विलोकत भये हुँ अशोका II
परम पिता ने युक्ति विचारी।
सकल समीप गए त्रिपुरारी II
उमापति संग सकल पधारे।
रमा पति के चरण पखारे II
आपकी माया आप ही जाने।
सकल बद्धकर खड़े पयाने II
इक उपाय है आप हि बोले।
सकल औषध सिंधु में घोंले II
क्षीर सिंधु में औषध डारी।
तनिक हंसे प्रभु लीला धारी II
मंदराचल की मथानी बनाई।
दानवो से अगुवाई कराई II
देव जनो को पीछे लगाया।
तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया II
मंथन हुआ भयंकर भारी।
तब जन्मे प्रभु लीलाधारी II
अंश अवतार तब आप ही लीन्हा।
धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा II
सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया।
स्तवन सब देवों ने गाया II
अमृत कलश लिए एक भुजा।
आयुर्वेद औषध कर दूजा II
जन्म कथा है बड़ी निराली।
सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी II
सकल देवन को दीन्ही कान्ति।
अमर वैभव से मिटी अशांति II
कल्पवृक्ष के आप है सहोदर।
जीव जंतु के आप है सहचर II
तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा।
सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा II
देव भिषक अश्विनी कुमारा।
स्तुति करत सब भिषक परिवारा II
धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा।
आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा II
तुम्हरी कृपा से धन्व राजा।
बना तपस्वी नर भू राजा II
तनय बन धन्व घर आये।
अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये II
सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये।
कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये II
आठ अंग में किया विभाजन।
विविध रूप में गावें सज्जन II
अथर्व वेद से विग्रह कीन्हा।
आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा II
काय ,बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा।
शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा II
माधव निदान, चरक चिकित्सा।
कश्यप बाल , शल्य सुश्रुता II
जय अष्टांग जय चरक संहिता।
जय माधव जय सुश्रुत संहिता II
आप है सब रोगों के शत्रु।
उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु II
सकल औषध में है व्यापी।
भिषक मित्र आतुर के साथी II
विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञान।
सकल औषध ज्ञान बखानि II
भारद्वाज ऋषि ने भी गाया।
सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया II
काय चिकित्सा बनी एक शाखा।
जग में फहरी शल्य पताका II
कौशिक कुल में जन्मा दासा।
भिषकवर नाम वेद प्रकाशा II
धन्वंतरि का लिखा चालीसा।
नित्य गावे होवे वाजी सा II
जो कोई इसको नित्य ध्यावे।
बल वैभव सम्पन्न तन पावें II
II दोहा II
रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ। जरा व्याधि मद लोभ मोह , हरण करो भिषक नाथ II
II इति श्री धन्वंतरि चालीसा सम्पूर्ण II
पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
एक शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें।
भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या चित्र के समक्ष पाठ करें।
भगवान धन्वंतरि जी को जल, पुष्प, हल्दी आदि अर्पित करें।
यदि संभव हो, तो नियमित रूप से चालीसा का पाठ करें।
पाठ के दौरान मन में श्रद्धा और पूर्ण समर्पण रखें। केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि भावनाओं से जुड़कर पाठ करें।
स्वास्थ्य और आरोग्यता की भावना के साथ प्रार्थना करें।
पाठ के समय सात्विक आहार और संयमित जीवनशैली अपनाने का प्रयास करें।
गुरुवार या रविवार जैसे विशेष दिनों पर पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है।
भगवान धन्वंतरि की पूजा और चालीसा का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
नियमित पाठ से शरीर की इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) मजबूत होती है, जिससे शरीर प्राकृतिक रूप से बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनता है।
धन्वंतरि चालीसा का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को बार-बार होने वाली बीमारियों और संक्रमणों से बचाव होता है।
भगवान धन्वंतरि जी कृपा से जीवन में समृद्धि, आर्थिक स्थिरता और सफलता प्राप्त होती है।
चालीसा का पाठ मन को शांति प्रदान करता है और जीवन में सकारात्मकता, संतुलन और स्थिरता लाता है।
सच्चे मन से चालीसा पढ़ने से भगवान धन्वंतरि की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है, जो जीवनभर आरोग्यता और सुरक्षा प्रदान करती है।
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