श्रीकृष्ण को क्या चढ़ाएं जिससे हर मनोकामना हो पूरी? जानिए उनकी प्रिय चीजें और पूजा का सही तरीका जिससे वे जल्दी होते हैं प्रसन्न।
वेदों, उपनिषदों और पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशिष्ट वस्तुएँ अर्पित की जाती हैं जो न केवल उन्हें प्रिय हैं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक अर्थ भी रखती हैं। श्रीकृष्ण की पूजा में अर्पण की गई वस्तुएं भक्त की भावना, समर्पण और प्रेम का प्रतीक होती हैं। नीचे शास्त्रों के आधार पर यह बताया गया है कि श्रीकृष्ण को क्या अर्पित करें जिससे वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं और कृपा बरसाते हैं।
तुलसी पत्र- श्रीकृष्ण की प्रियतम अर्पण
तुलसी पत्र श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। पुराणों में तुलसी को विष्णु की पत्नी कहा गया है और श्रीकृष्ण विष्णु जी के ही अवतार हैं। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है। यह पत्र प्रेम, समर्पण और पवित्रता का प्रतीक है। भक्त जब तुलसी पत्र अर्पित करता है, तो वह भगवान को अपनी संपूर्ण श्रद्धा समर्पित करता है। तुलसी से जुड़ा हर अर्पण श्रीकृष्ण को तुरंत आकर्षित करता है और भक्त को भक्ति, सुख और शुद्धि प्रदान करता है। तुलसी के बिना किया गया कोई भी भोग या पूजन शास्त्रों के अनुसार फलहीन माना गया है।
माखन और मिश्री- बालरूप में प्रिय भोग
श्रीकृष्ण के बालरूप को माखन और मिश्री विशेष रूप से प्रिय हैं। यह भोग उनकी बचपन की लीलाओं से जुड़ा हुआ है, जिसमें वे चोरी से माखन खाते थे और गोपियों को प्रेमपूर्वक चिढ़ाते थे। यह अर्पण न केवल परंपरा है, बल्कि उसमें भक्त का प्रेम, स्नेह और बालभाव भी समाहित होता है। माखन-मिश्री श्रीकृष्ण के वात्सल्य भाव को जगाता है और उनकी कृपा को सहज रूप से प्राप्त करने का माध्यम बनता है। जो भी भक्त इस भोग को श्रद्धा से अर्पित करता है, उसे भगवान का सच्चा सान्निध्य प्राप्त होता है।
पीले वस्त्र- साक्षात श्रीहरि का रंग
श्रीकृष्ण को “पीतांबरधारी” कहा गया है, और पीला रंग उनके दिव्य स्वरूप का प्रतीक है। यह रंग शुद्धता, प्रकाश, ज्ञान और शुभता का प्रतिनिधित्व करता है। पुराणों में कहा गया है कि विष्णु और उनके अवतारों को पीला वस्त्र अत्यंत प्रिय होता है। श्रीकृष्ण को पीले वस्त्र अर्पित करना भक्त के समर्पण और सौम्यता को दर्शाता है। यह अर्पण मन में सात्त्विकता, स्थिरता और शुभ कर्मों की प्रेरणा देता है।
पंचामृत- पंचतत्त्व का समर्पण
पंचामृत, जो दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बना होता है, श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाने वाला दिव्य अमृत है। यह पाँचों तत्त्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—का प्रतीक है। पंचामृत से अभिषेक करना शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह अर्पण भक्त के संपूर्ण समर्पण और आंतरिक पवित्रता को दर्शाता है। शास्त्रों में यह कहा गया है कि पंचामृत से स्नान कराना भगवान को दिव्यता और आनंद प्रदान करता है और भक्त को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
बांसुरी या मोरपंख- लीलाओं का प्रतीक अर्पण
बांसुरी और मोरपंख श्रीकृष्ण की लीलाओं के अभिन्न प्रतीक हैं। बांसुरी उनके माधुर्य, प्रेम और संगीतपूर्ण चेतना को दर्शाती है, जबकि मोरपंख श्रीकृष्ण के सौंदर्य और स्वाभाविक दिव्यता का प्रतीक है। इन्हें भगवान के विग्रह पर अर्पित करना उनके लीलामय स्वरूप से जुड़ने का संकेत है। मोरपंख मस्तष्क पर सजाया जाता है जो ज्ञान, कला और आंतरिक जागरण का प्रतीक है। यह अर्पण भक्त के मन में आनंद, रचनात्मकता और ईश्वरीय सौंदर्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न करता है।
फल और पंचमेवा- सात्त्विक अर्पण
श्रीकृष्ण को फल और सूखे मेवे जैसे काजू, बादाम, किशमिश, नारियल आदि अर्पित करना शास्त्रों में सात्त्विक अर्पण के रूप में वर्णित है। यह प्रकृति से प्राप्त शुद्ध भोग है जो शरीर और आत्मा दोनों को संतुलित करता है। फल प्रतीक हैं श्रद्धा, ताजगी और जीवनदायिनी ऊर्जा के; जबकि पंचमेवा वैभव और समृद्धि के प्रतीक हैं। जब यह अर्पण श्रद्धा से किया जाता है, तो श्रीकृष्ण उसे प्रेमपूर्वक स्वीकार करते हैं और भक्त को संतुलन, समृद्धि और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
शंखजल व चरणामृत- शक्ति और शुद्धता का प्रवाह
शंख में जल भरकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करना विष्णु पूजा का अत्यंत पवित्र अंग है। शंख को समुद्र का पुत्र माना गया है और उसका जल पवित्रता व रक्षा का प्रतीक है। चरणामृत, जो अभिषेक के बाद प्राप्त होता है, उसमें भगवान का स्पर्श और दिव्यता समाहित होती है। इसे ग्रहण करना आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने जैसा है। शंखजल और चरणामृत जीवन के दोषों को दूर कर मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं। ये अर्पण भगवान के संरक्षण और शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव कराते हैं।
तुलसी पत्र, माखन-मिश्री, पीले वस्त्र, पंचामृत, मोरपंख, फल-मेवे और चरणामृत जैसे अर्पण श्रीकृष्ण के विभिन्न स्वरूपों और लीलाओं से जुड़ने का माध्यम हैं। जब कोई भक्त इन्हें श्रद्धा, प्रेम और समर्पण भाव से अर्पित करता है, तो वह भगवान के सान्निध्य और कृपा को सहज रूप से प्राप्त करता है।
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