दुर्भाग्य, बुरी शक्तियों और नकारात्मकता से सुरक्षा के लिए काली चौदस तीन सिद्धपीठ विशेष माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ
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काली चौदस तीन सिद्धपीठ विशेष

माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ

दुर्भाग्य, बुरी शक्तियों और नकारात्मकता से सुरक्षा के लिए
temple venue
शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, कालीमठ मंदिर, शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर, कोलकत्ता, रुद्रप्रयाग, वीरभूम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड
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दुर्भाग्य, बुरी शक्तियों और नकारात्मकता से सुरक्षा के लिए काली चौदस तीन सिद्धपीठ विशेष माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ

सनातन धर्म में काली चौदस का विशेष महत्व है। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन काली चौदस मनाई जाती है। इसे छोटी दिवाली और नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। यह दिन मां काली को समर्पित है और इस दिन की उनकी पूजा शुभ मानी जाती है। कहा जाता है कि काली चौदस पर मां काली की उपासना करने से वह जल्दी प्रसन्न होती है। पौराणिक कथानुसार रक्तबीज नामक एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे यह वरदान प्राप्त था कि उसके खून की हर बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो सकता था। देवता उसे हराने में असमर्थ थे क्योंकि जब भी उसे घायल करते, उसका खून जमीन पर गिरते ही और राक्षस पैदा हो जाते। इससे रक्तबीज को हराना लगभग असंभव हो गया था। इस संकट को समाप्त करने के लिए, माँ काली प्रकट हुईं और उन्होंने अपनी जीभ फैलाकर युद्धभूमि पर फैला दी, जिससे रक्त की कोई भी बूंद जमीन पर नहीं गिरी। इस तरह, उन्होंने रक्तबीज को पुनर्जन्म से रोक दिया और उसे पराजित किया। मान्यता है कि मां काली वह देवी है जो बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करती है। कहा जाता है कि मां काली की उपासना करने से देवी काली द्वारा दैवीय सुरक्षा प्राप्त होती है। इसलिए भक्त काली चौदस पर मां काली को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जिनमें से मां काली तंत्र युक्त हवन और रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ भी शामिल है।

काली तंत्र युक्त हवन एक अग्नि अनुष्ठान है, जिसमें मां काली को समर्पित मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्नि में आहुतियां दी जाती है। वहीं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ मां काली के उग्र और शक्तिशाली रूप की स्तुति है। मान्यता है कि काली चौदस पर इस अनुष्ठान को करने से देवी काली का दिव्य आशीष प्राप्त होता है। वहीं यदि यह अनुष्ठान किसी शक्तिपीठ में किया जाए तो यह कई गुना अधिक फलदायी हो सकता है। इसलिए काली चौदस के शुभ अवसर पर पहली बार देश के तीन सबसे बड़े सिद्धपीठों में माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ का आयोजन किया जा रहा है।

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर : कोलकाता में स्थित यह शक्तिपीठ मां काली का सबसे बड़ा मंदिर है। मान्यता है कि देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा इस स्थान पर गिरा था। मां काली को प्रसन्न करने के लिए यह सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक है, क्योंकि इस मंदिर में देवी काली की प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित है।

तंत्रपीठ कालीमठ मंदिर : मान्यताओं के अनुसार, रुद्रप्रयाग में स्थित तंत्रपीठ कालीमठ मंदिर में मां काली यंत्र जागृत रूप में विराजमान है। देवी भागवत और दुर्गा सप्तशती के अनुसार, रक्तबीज और शुंभ-निशुंभ जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, देवी भगवती अपने महाकाली रूप में इसी स्थान पर पहुंची थीं। माना जाता है कि यहां पूजा करने से मां काली शीघ्र ही प्रसन्न होती है।

शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर : पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि माता सती के अंगों में से आंख की पुतली यहां गिरी थी। बांग्ला में आंख की पुतली को तारा कहते हैं और इसलिए इस जगह का नाम तारापीठ पड़ा। यहां देवी काली अपने दूसरे स्वरूप अर्थात तारा देवी के रूप में विराजित हैं।

इसलिए श्री मंदिर के माध्यम से काली चौदस के शुभ अवसर पर पहली बार इन तीन सिद्धपीठों में होने वाली माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ में भाग लें और मां काली द्वारा दुर्भाग्य, बुरी शक्तियों और नकारात्मकता से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करें।

पूजा लाभ

puja benefits
दुर्भाग्य और बुरी शक्तियों से सुरक्षा के लिए
मां काली बुरी शक्तियों का विनाश करने वाली देवी के रूप में पूजनीय है। कहा जाता है कि जब-जब इस संसार में बुरी शक्तियों ने उत्पात मचाया है, तब-तब मां काली ने उनका नाश किया है। इसलिए मान्यता है कि काली चौदस के दिन इन पवित्र तीन सिद्धपीठों में माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ करने से मां काली द्वारा दुर्भाग्य और बुरी शक्तियों से सुरक्षा का दिव्य आशीष प्राप्त होता है।
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नकारात्मकता से सुरक्षा के लिए
नकारात्मकता विनाश का मुख्य कारण है। कहा जाता है कि यदि कड़ी मेहनत के बाद भी अगर आपको सफलता नहीं मिल रही है तो नकारात्मकता इसका मुख्य कारण हो सकती है। माना जाता है कि काली चौदस पर इन तीनों सिद्धपीठों में माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ करने से नकारात्मकता से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी काली की जो भक्त सच्चे दिल से आराधना करते हैं उनके जीवन में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाएं एवं बुरी शक्तियां टिक नहीं सकती हैं।
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बाधाओं से मुक्ति के लिए
मां काली वह देवी है, जो सभी प्रकार की बाधाओं को हर लेती है। इसी कारणवश भक्त मां काली को प्रसन्न करने के लिए कई दिव्य अनुष्ठान करते हैं। मान्यता है कि काली चौदस पर इन पवित्र शक्तिपीठों में होने वाली इस पूजा में भाग लेने से सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है और मां काली द्वारा दैवीय सुरक्षा प्राप्त होती है।

पूजा प्रक्रिया

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पूजा वीडियो एबं तीर्थ प्रसाद डिलीवरी

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शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर : कालीघाट मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जो देवी काली को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती के दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जिसके कारण यह स्थान शक्तिपीठों में शामिल हुआ। इस मंदिर में देवी काली की प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित है, जिसमें वह भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आती हैं, उनके गले और कमर में नरमुंडों की माला है, और उनकी स्वर्ण निर्मित जीभ से रक्त की बूंदें टपक रही हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1798 में सबॉर्नो रॉय चौधरी परिवार और बाबू कालीप्रसाद दत्तो के संरक्षण में शुरू हुआ और 1809 में पूरा हुआ। यह मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है, जहां दुर्गा पूजा और काली पूजा जैसे त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। कालीघाट में देवी की पूजा से भक्तों को डर, बुराई और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।

तंत्रपीठ कालीमठ मंदिर : रुद्रप्रयाग जिले में गुप्तकाशी से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित कालीमठ मंदिर मां काली को समर्पित एक पवित्र स्थल है, जहां देवी अपने भक्तों की रक्षा करती और बुरी शक्तियों का विनाश करती हैं। यह विशेष मंदिर इसलिए भी अनूठा है, क्योंकि यहां मां काली अपनी बहनों लक्ष्मी और सरस्वती के साथ विराजित हैं। मंदिर से आठ किलोमीटर ऊपर स्थित कालीशिला, एक दिव्य चट्टान है, जहां देवी-देवताओं ने शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज के आतंक से मुक्ति पाने के लिए मां भगवती की तपस्या की थी। मान्यता है कि यहां मां भगवती 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुईं और राक्षसों का वध किया। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि चांदी के श्रीयंत्र से ढके एक कुंड की पूजा होती है, जिसे वर्ष में केवल शारदीय नवरात्र की अष्टमी पर खोला जाता है। पूजा की यह विशेष विधि आधी रात को होती है और इसमें सिर्फ मुख्य पुजारी ही उपस्थित होते हैं।

शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर : पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां तारा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय तब हुई जब भगवान शिव ने निकले हुए विष का पान किया और उनके शरीर में अत्यधिक जलन और पीड़ा होने लगी। इस पीड़ा को शांत करने के लिए मां काली ने तारा का स्वरूप धारण कर शिव जी को स्तनपान कराया, जिससे उनकी जलन शांत हुई। तारा देवी को मां काली का ही दूसरा स्वरूप माना जाता है। पश्चिम बंगाल स्थित श्री तारापीठ मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख स्थल है, जहां मां तारा अपने सौम्य रूप में विराजमान हैं। पुराणों के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की आंख की पुतली गिरी थी, जिसे बांग्ला में तारा कहा जाता है। यहां पूजा करने से भक्तों के जीवन की आपदाएं दूर होती हैं।

रिव्यूज़ और रेटिंग

जानिए प्रिय भक्तों का श्री मंदिर के बारे में क्या कहना है!
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अच्युतम नायर

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पुरी
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शिवराज डोभी

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मुकुल राज

लखनऊ

भक्तों का अनुभव

जिन भक्तों ने हमारे साथ पूजा बुक की उनका अनुभव जाने
तीश मोड़

तीश मोड़

17 February, 2025

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बहुत ही अतुलनीय कार्य है आपका भगवन आपको ऐसे ही कार्य करने की ताक़त दे


Ramesh Tripathi

Ramesh Tripathi

17 February, 2025

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Hame vishwas hai ki Puja poorn vishwas aur aastha se hui hogi avm hame Prabhu ka Aasirwad prapt hoga apne pariwar ke liye.Jai Bholenath sahai rehna Hamesha.🙏🏽🕉️🌼


S JAREENA BEGUM

S JAREENA BEGUM

16 February, 2025

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Namaste guruji ap ku bhuth,bahut, dhanyawad guruji,, ap ki sevaiya acche hai Ghar bhite Puja karwana, bhuth bhuth accha hai ,,meri mano kamna Puri hone baad mai mai ap se spark karungi

हमारे पिछले पूजा अनुभव के झलक

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महाशिवरात्रि 4 प्रहर अभिषेक
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