वैशाख पूर्णिमा 2025 कब है?
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वैशाख पूर्णिमा 2025 कब है?

जानिए वैशाख पूर्णिमा 2025 की तारीख, इस दिन का आध्यात्मिक महत्व, पूजन की विधि और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के उपाय।

वैशाख पूर्णिमा के बारे में

वैशाख पूर्णिमा, हिंदू पंचांग के वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला एक पवित्र पर्व है। इस दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा की जाती है। स्नान, दान और व्रत का विशेष महत्व होता है। आइये जानते हैं इसके बारे में...

वैशाख पूर्णिमा 2025

नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। वैशाख पूर्णिमा भगवान विष्णु के सत्यनारायण अवतार और देवी लक्ष्मी को समर्पित तिथि है। आज इस वीडियो में हम आपको बताएंगे मई माह में आने वाली इस शुभ तिथि, इस दिन के शुभ मुहूर्त और पंचांग के बारे में

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा कहा जाता है। हमारे पुराणों में इस दिन व्रत रखने, तीर्थ यात्रा करने और जरुरतमंदों को दान देने को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है।

चलिए जानें वर्ष 2025 में यह पूर्णिमा कब आने वाली है

  • वैशाख पूर्णिमा सोमवार, मई 12, 2025 को
  • शुक्ल पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय - 06:52 पी एम
  • पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - मई 11, 2025 को 08:01 पी एम बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त - मई 12, 2025 को 10:25 पी एम बजे

दोस्तों! वैशाख पूर्णिमा सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र स्नान करने से आपको अनेक तीर्थों की यात्रा का पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन कई लोग भगवान सत्यनारायण को प्रसन्न करने के लिए व्रत करते हैं और सत्यनारायण की कथा भी करवाते हैं।

वैशाख पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त

मुहूर्तसमय
ब्रह्म मुहूर्त 04:04 ए एम से 04:46 ए एम तक
प्रातः सन्ध्या 04:25 ए एम से 05:28 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त 11:46 ए एम से 12:40 पी एम तक
विजय मुहूर्त 02:28 पी एम से 03:22 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त 06:57 पी एम से 07:18 पी एम तक
सायाह्न सन्ध्या 06:58 पी एम से 08:01 पी एम तक
अमृत काल 11:18 पी एम से 01:05 ए एम, तक (13 मई)
निशिता मुहूर्त 11:52 पी एम से 12:34 ए एम, तक (13 मई)
रवि योग  05:28 ए एम से 06:17 ए एम तक

तो इस यह थी वैशाख पूर्णिमा की तिथि और इस दिन शुभ मुहूर्त की जानकारी।

क्या है वैशाख पूर्णिमा? जानें महत्व

नमस्कार दोस्तों! श्री मंदिर पर आपका स्वागत है।

वैशाख माह में आने वाली पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन कई लोग विधि-विधान से श्री सत्यनारायण भगवान की आराधना करते हैं, एवं उनको समर्पित व्रत रखते हैं।

चलिए जानते हैं,

  • वैशाख पूर्णिमा क्या है?
  • वैशाख पूर्णिमा का महत्व क्या है?

वैशाख पूर्णिमा क्या है?

हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास वर्ष का द्वितीय माह होता है और इस मास के अंतिम दिन को वैशाख पूर्णिमा कहा जाता है। ये दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन तथागत गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसीलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

वैशाख पूर्णिमा का महत्व क्या है?

  • वैशाख पूर्णिमा की तिथि भगवान सत्यनारायण को समर्पित होती है। इसलिए इस दिन पर सुबह स्नान करने के बाद भगवान सत्यनारायण की पूजा करने का विधान है। इस दिन माता लक्ष्मी की भी विधिवत् पूजा की जाती है।
  • अधिकांश लोग इस दिन व्रत रखते हैं, और श्री सत्यनारायण भगवान की कथा भी सुनते हैं। ऐसा करने से भगवान लक्ष्मीनारायण की कृपा परिवार पर बनी रहती है।
  • वैशाख पूर्णिमा के दिन किया गया व्रत-उपवास, पूजा-पाठ और स्नान-दान मनुष्य को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। - यदि आप किसी कारण वश व्रत न भी कर पाएं तो भी अन्न दान अवश्य करें। वैशाख पूर्णिमा पर किया गया छोटा दान भी मनुष्य को अक्षय पुण्य प्रदान करता है।
  • ऐसी मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा पर रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने से घर में धन-संपदा वृद्धि होती है।

वैशाख पूर्णिमा की पूजा विधि

हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस तिथि पर स्नान-दान, विष्णु पूजा और पितरों को तर्पण देने का विधान है। मान्यता है इस पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान करने और विधिवत पूजा-अर्चना करने से जातक को कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।

जानें पूर्णिमा की पूजा की तैयारी और इसकी विधि के बारे में विस्तार से

पूजा से पहले किए जाने वाले कार्य

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं।
  • पूर्णिमा के दिन वैसे तो गंगा स्नान का विशेष महत्व है, लेकिन अगर ये संभव नहीं है तो आप किसी पवित्र जलाशय या नदी में स्नान कर सकते हैं। अगर ये भी संभव न हो तो, घर में ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
  • प्रातःकाल में स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें, और व्रत का संकल्प लें।
  • पूर्णिमा पर की जाने वाली भगवान विष्णु की पूजा विधि=
  • पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा का विशेष महत्व है।
  • इसके लिए पूर्व दिशा में एक चौकी स्थापित कर लें और चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं।
  • चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उस स्थान को शुद्ध कर लें।
  • अब चौकी पर अक्षत के कुछ दाने आसन के रूप में डालें, और भगवान विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर के साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर लें।
  • कलश में रखें जल को एक फूल की सहायता से लेकर स्नान के रूप में एक-एक करके सभी देवों पर छिड़कें।
  • इसके पश्चात् चौकी के दायीं ओर अर्थात आपके बायीं ओर एक दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए आचमन कर अपनी आंतरिक शुद्धि करें।
  • सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करें। उन्हें हल्दी-रोली से तिलक करें। फिर उन्हें जनेऊ, लाल पुष्प और दूर्वा अर्पित करें।
  • अब श्री हरि को हल्दी-चंदन का तिलक लगाएं और लक्ष्मी माता को कुमकुम-हल्दी का तिलक करें।
  • सभी प्रतिमाओं को अक्षत अर्पित करें।
  • इसके पश्चात् विष्णु भगवान को जनेऊ चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं और पुष्प माला पहनाएं।
  • माँ लक्ष्मी को भी कमल का फूल, पुष्प माला, मौली और सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
  • इसके पश्चात् चौकी पर धूप जलाएं।
  • अब भोग में भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी को पंचामृत, पंजीरी, केला व अन्य फल और मिठाई का भोग लगाएं, इसमें तुलसी पत्र अवश्य रखें।
  • भगवान गणेश जी को भी मिठाई और फल अर्पित करें। इन्हें तुलसी दल अर्पित न करें।
  • भोग के साथ भगवान को दक्षिणा भी अर्पित करें।
  • अब वैशाख पूर्णिमा की कथा पढ़ें, यह कथा आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है।
  • आप इस दिन श्री सत्यनारायण भगवान की कथा भी पढ़ या सुन सकते हैं।
  • इसके पश्चात् भगवान विष्णु की आरती उतारें।
  • अंत में हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर भगवान से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें और अक्षत व पुष्प को भगवान के चरणों में छोड़ दें।
  • इसके पश्चात् अगर आप व्रत रख रहे हैं तो स्वयं फलाहार ग्रहण करें और परिवारजनों में प्रसाद वितरित कर दें।

इस प्रकार आप इस दिन को अत्यधिक शुभ एवं लाभकारी बना सकते हैं, ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आप श्री मंदिर से जुड़े रहें।

पूर्णिमा में क्यों महत्वपूर्ण है स्नान - दान

नमस्कार भक्तों, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है

पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से बहुत ही विशेष तिथि मानी जाती है। इस दिन किया गया स्नान और दान बहुत ही फलदायक और मनुष्य को मोक्ष दिलाने वाला होता है।

तो चलिए आज पूर्णिमा पर स्नान और दान के महत्व और इसके लाभ के बारे में विस्तार से जानते हैं -

  • सबसे पहले बात करते हैं स्नान की: हिन्दू धर्म में तीर्थ स्नान को बहुत ही शुभ माना जाता है। और पूर्णिमा तिथि पर किया गया गंगा स्नान तो जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। इस तिथि पर जो जातक गंगा स्नान करते हैं, उनपर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।

  • स्नान से जुड़े सरल उपाय: अगर आप पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान नहीं कर सकते, तो किसी अन्य पवित्र नदी या घाट के किनारे जाकर स्नान करके पुण्यफल की प्राप्ति कर सकते हैं। और यदि ये भी संभव ना हो, तो अपने घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य अवश्य दें, इससे आपको तीर्थ स्नान के बराबर का पुण्यफल प्राप्त होगा।

  • लाभ: पूर्णिमा पर पवित्र स्नान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। आपको बुरे कर्मो से मुक्ति मिलती है, जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, और मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

  • दान: अब बात करें पूर्णिमा पर दान के महत्व की, तो इस दिन किए गए दान से असंख्य पुण्य मिलते हैं। विशेषकर अगर ये दान आप दीन-दुखियों को देते हैं, तो दीनबंधु कहलाने वाले भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं, साथ ही आपको किसी ज़रूरतमंद का आशीर्वाद भी मिल जाता है। इसलिए पूर्णिमा तिथि पर वस्त्र, अन्न, घी, गुड़ और फल का दान अवश्य करें।

  • सरल उपाय: पूर्णिमा तिथि पर आप किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को उसकी आवश्यकता की कोई भी वस्तु दान में दे सकते हैं।

  • लाभ: पूर्णिमा पर किये गए दान से जहां किसी ग़रीब का भला होगा, वहीं आपको मोह से मुक्ति मिलेगी। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विशेष आशीर्वाद से आपके घर में धन-धान्य और सुख-शांति बनी रहेगी।

पूर्णिमा की पूजा विधि, कथा, और लाभ से संबंधित जानकारियां भी 'श्री मंदिर' पर उपलब्ध हैं, आप उन्हें भी ज़रूर देखें। हम आशा करते हैं कि आपको इस पावन पूर्णिमा का सम्पूर्ण फल मिले।

पूर्णिमा के पांच विशेष लाभ

नमस्कार भक्तों, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है।

पूर्णिमा एक ऐसी पावन तिथि है, जिस दिन जातक स्नान-दान, जप-तप आदि धार्मिक कार्य करके अपने पिछले सभी पापों के प्रभाव को नष्ट कर सकते हैं, साथ ही आने वाले जीवन को सुख-समृद्धि से भर सकते हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे अद्भुत लाभ हैं, जो आपको पूर्णिमा तिथि पर मिलते हैं, चलिए उनके बारे में जानते हैं।

पहला लाभ- सुख-सौभाग्य व संतान का सुख

पूर्णिमा पर किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को दान देने से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, और जातक को अपनी कृपा का पात्र बनाकर उन्हें सुख-सौभाग्य, धन-संतान आदि का सुख प्रदान करते हैं।

दूसरा लाभ- धन-धान्य से भर जाएगा भंडार

इस दिन गंगा नदी तट पर दीप दान करने से देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं, और अपने आशीर्वाद स्वरूप, भक्तों का भंडार धन-धान्य से भर देती हैं।

तीसरा लाभ- असाध्य रोगों से मिलेगा छुटकारा

पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष नष्ट होता है, और चंद्र देव को खीर का भोग अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे आर्थिक तंगी व असाध्य रोगों से छुटकारा मिलता है।

चौथा लाभ- दूर होगा बुरी आत्माओं का प्रभाव

माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और आस-पास की बुरी आत्माओं का प्रभाव दूर हो जाता है।

पांचवां लाभ- मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

पूर्णिमा तिथि पर पितरों की शांति के लिए गंगा घाट पर तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी और फल आदि का दान कर तर्पण करने से उनका आशीर्वाद मिलता है, और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

तो दोस्तों, ये थे इस पूर्णिमा तिथि पर मिलने वाले कुछ विशेष लाभ। पूर्णिमा व्रतकथा, पूजा विधि व अन्य जानकारियां भी आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध हैं, उन्हें भी अवश्य देखें, ताकि आप विधि-विधान से स्नान-दान और पूजा करके इस पावन तिथि का संपूर्ण पुण्यफल प्राप्त कर सकें। धन्यवाद।

पूर्णिमा व्रत की पावन कथा

भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है, सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का अत्यंत महत्व है। इनमें से पूर्णिमा अत्यंत फलदाई मानी जाती है। इस दिन व्रत रखने व वैशाख पूर्णिमा की कथा सुनने का विशेष महत्व है।

तो चलिए, इस पावन कथा रसपान करते हैं।

पौराणिक कथा में वर्णन मिलता है कि किसी नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी रूपवती, पतिव्रता और सर्वगुण संपन्न थी। बस दुख था तो सिर्फ़ इस बात का, कि उनकी कोई संतान नहीं थी। यही कारण था, कि वो दोनों बहुत चिंतित रहते थे। एक बार उस नगर में एक महात्मा आए। वो नगर के सभी लोगों से दान लेते थे, लेकिन धनेश्वर की पत्नी जब भी उन्हें दान देने जाती, तो वो उसे लेने से मना कर देते थे। एक दिन धनेश्वर ने उन महात्मा के पास जाकर पूछा- हे महात्मन्! आप नगर के सभी लोगों से दान लेते हैं, लेकिन मेरी पत्नी के हाथ का दान क्यों नहीं स्वीकार करते? हमसे अगर कोई भूल हुई हो तो हम ब्राह्मण दंपत्ति आपसे क्षमा याचना करते हैं।

महात्मा बोले- नहीं विप्र! तुम तो बहुत ही विनम्र और हमेशा आदर-सत्कार करने वाले ब्राह्मण हो! तुमसे भूल तो कदापि नहीं हो सकती। महात्मा की बात सुनकर, धनेश्वर हाथ जोड़कर बोला- हे मुनिवर! फिर आख़िर क्या कारण है? कृपया हमें उससे अवगत कराएं। इसपर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे कोई संतान नहीं है। और जो दंपत्ति निःसंतान हो, उसके हाथ से भिक्षा लेना, अधम या पापी के हाथ से भिक्षा ग्रहण करने के समान है! तुम्हारे द्वारा दिया गया दान लेने के कारण मेरा पतन हो जायेगा! बस यही कारण है, कि मैं तुम दंपत्ति से दान स्वीकार नहीं करता।

महात्मा के ये वचन सुनकर, धनेश्वर उनके चरणों में गिर पड़ा, और विनती करते हुए बोला- हे महात्मन्! संतान ना होना ही तो हम पति-पत्नी के जीवन की सबसे बड़ी निराशा है। यदि संतान प्राप्ति का कोई उपाय हो, तो बताने की कृपा करें मुनिवर! ब्राह्मण का दुःख देखकर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे इस कष्ट का एक निवारण अवश्य है! तुम 16 दिनों तक श्रद्धापूर्वक काली माता की पूजा करो! मां प्रसन्न होंगी, तो उनकी कृपा से अवश्य तुम्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी! इतना सुनकर धनेश्वर बहुत ख़ुश हुआ। उसने कृतज्ञतापूर्वक महात्मा का आभार प्रकट किया और घर आकर पत्नी को सारी बात बताई। पति-पत्नी को महात्मा के द्वारा बताए गए उपाय से आशा की एक किरण दिखाई दी, और धनेश्वर मां काली की उपासना के लिए वन चला गया।

ब्राह्मण ने पूरे 16 दिन तक काली माता की पूजा की और उपवास रखा। उसकी भक्ति देखकर और विनती सुनकर मां ब्राह्मण के सपने में आईं, और बोलीं- हे धनेश्वर! तू निराश मत हो! मैं तुझे संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान देती हूं! लेकिन 16 साल की अल्पायु में ही तेरे पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। काली माता ने कहा- यदि तुम पति-पत्नी विधिपूर्वक 32 पूर्णिमासी का व्रत करोगे, तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो जायेगी। प्रातःकाल जब तुम उठोगे, तो तुम्हें यहां आम का एक वृक्ष दिखाई देगा। उस पेड़ से एक फल तोड़ना, और ले जाकर अपनी पत्नी को खिला देना। शिव जी की कृपा से तुम्हारी पत्नी गर्भवती हो जाएगी। इतना कहकर माता अंतर्ध्यान हो गईं।

प्रातःकाल जब धनेश्वर उठा, तो उसे आम का वृक्ष दिखा, जिसपर बहुत ही सुंदर फल लगे थे। वो काली मां के कहे अनुसार फल तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ने लगा। उसने कई बार प्रयास किया लेकिन फिर भी फल तोड़ने में असफल रहा। तभी उसने विघ्नहर्ता गणेश भगवान का सुमिरन किया, और गणपति की कृपा से इस बार वो वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़ लाया। धनेश्वर ने अपनी पत्नी को वो फल दिया, जिसे खाकर वो कुछ समय बाद गर्भवती हो गई।

दंपत्ति काली मां के निर्देश के अनुसार हर पूर्णिमा पर दीप जलाते रहे। कुछ दिन बाद भगवान शिव की कृपा हुई, और ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने देवीदास रखा। जब पुत्र 16 वर्ष का होने को हुआ, तो माता-पिता को चिंता होने लगी कि इस वर्ष उसकी मृत्यु निश्चित है। दंपत्ति ने देवीदास के मामा को बुलाया, और कहा- तुम देवीदास को विद्या अध्ययन के लिए काशी ले जाओ, और एक वर्ष बाद वापस आना। दंपत्ति पूरी आस्था के साथ पूर्णिमासी का व्रत कर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करते रहे।

इधर काशी प्रस्थान के बाद मामा भांजे एक गांव से गुज़र रहे थे। वहां एक कन्या का विवाह हो रहा था, परंतु विवाह होने से पूर्व ही उसका वर अंधा हो गया। तभी वर के पिता ने देवीदास को देखा, और मामा से कहा- तुम अपना भांजा कुछ समय के लिए हमें दे दो। विवाह संपन्न हो जाए, उसके बाद ले जाना। ये सुनकर मामा ने कहा- यदि मेरा भांजा ये विवाह करेगा, तो कन्यादान में मिले धन आदि पर हमारा अधिकार होगा। वर के पिता ने मामा की बात स्वीकार कर ली और देवीदास के साथ कन्या का विवाह संपन्न हो गया।

इसके पश्चात् देवीदास पत्नी के साथ भोजन करने बैठा, लेकिन उसने उस थाल को हाथ नहीं लगाया। ये देखकर पत्नी बोली- स्वामी! आप भोजन क्यों नहीं कर रहे हैं? आपके चेहरे पर ये उदासी कैसी? तब देवीदास ने सारी बात बताई। यह सुनकर कन्या बोली- स्वामी मैंने अग्नि को साक्षी मानकर आपके साथ फेरे लिए हैं, अब मैं आपके अलावा किसी और को अपना पति स्वीकार नहीं करूंगी। पत्नी की बात सुनकर देवीदास ने कहा- ऐसा मत कहो! मैं अल्पायु हूं! कुछ ही दिन में 16 वर्ष की आयु होते ही मेरी मृत्यु निश्चित है। लेकिन पत्नी ने कहा, जो भी उसके भाग्य में लिखा होगा, वो उसे स्वीकार है।

देवीदास के बहुत कहने पर भी जब वो नहीं मानी, तो देवीदास ने उसे एक अंगूठी दी, और कहा- मैं विद्या अध्ययन के लिए काशी जा रहा हूं। लेकिन तुम मेरे जीवन-मरण के बारे में जानने के लिए एक पुष्प वाटिका तैयार करो! उसमें भांति-भांति के पुष्प लगाओ, और और उन्हें जल से सींचती रहो! यदि वाटिका हरी भरी रहे, पुष्प खिले रहें, तो समझना कि मैं जीवित हूं! और जब ये वाटिका सूख जाए, तो मान लेना कि मेरी मृत्यु हो चुकी है। इतना कहकर देवीदास काशी चला गया।

प्रातःकाल जब कन्या ने दूसरे वर को देखा, तो बोली- ये मेरा पति नहीं है! मेरा पति काशी पढ़ने गया है। यदि इसके साथ मेरा विवाह हुआ है, तो बताए कि रात्रि में मेरे और इसके बीच क्या बातें हुईं थी, और इसने मुझे क्या दिया था? ये सुनकर वर बोला मुझे कुछ नहीं पता, और पिता-पुत्र लज्जित होकर चले गए।

उधर एक दिन प्रातःकाल एक सर्प देवीदास को डसने के लिए आया, लेकिन उसके माता पिता द्वारा किए जाने वाले पूर्णिमा व्रत के प्रभाव के कारण वो उसे डस नहीं पाया। तत्पश्चात् काल स्वयं वहां आए और उसके शरीर से प्राण निकालने लगे। देवीदास मूर्छित होकर गिर पड़ा। तभी वहां माता पार्वती और शिव जी आए। देवीदास को मूर्छित देखकर देवी पार्वती बोलीं- हे स्वामी! देवीदास की माता ने 32 पूर्णिमा का व्रत रखा था! उसके फलस्वरूप कृपया आप इसे जीवनदान दें! माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने देवीदास को पुनः जीवित कर दिया।

इधर देवीदास की पत्नी ने देखा कि पुष्प वाटिका में एक भी पुष्प नहीं रहा। वो जान गई की उसके पति की मृत्यु हो चुकी है, और रोने लगी। तभी उसने देखा कि वाटिका पुनः हरी-भरी हो गई है। ये देखकर वो बहुत प्रसन्न हुई। उसे पता चल गया कि देवीदास को प्राणदान मिल चुका है। जैसे ही देवीदास 16 वर्ष का हुआ, मामा भांजा काशी से वापस चल पड़े। रास्ते में जब वो कन्या के घर गए, तो उसने देवीदास को पहचान लिया और अत्यंत प्रसन्न हुई। धनेश्वर और उसकी पत्नी भी पुत्र को जीवित पाकर हर्ष से भर गए।

तभी से ऐसी मान्यता है, कि पूर्णिमा तिथि पर व्रत रखने एवं इस कथा का पाठ करने या श्रवण करने से सदैव भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है, समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, साथ ही संतानहीन दंपत्ति को ये व्रत रखने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

तो भक्तों, ये थी वैशाख पूर्णिमा की पावन कथा। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत सफल हो, और संपूर्ण फल मिले। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' ऐप पर।

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Published by Sri Mandir·May 2, 2025

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