
संधि पूजा 2025 की तिथि और समय, शुभ मुहूर्त और विधि जानें।
शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर संधि पूजा का विशेष महत्व होता है। ये पूजा चण्ड मुंड नामक राक्षसों का संहार कर संसार का कल्याण करने वाली माता चामुंडा को समर्पित है। संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के प्रारंभ होने के 24 मिनट बाद तक की अवधि में की जाती है। चूंकि यह दो तिथियों का मेल है, इसलिए इसे संधि पूजा कहा जाता है।
नवरात्रि उत्सव के समय सन्धि पूजा का विशेष महत्व होता है। सन्धि पूजा अष्टमी तिथि की समाप्ति तथा नवमी तिथि के आरम्भ होने के समय बिन्दु पर की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, इसी मुहूर्त में देवी चामुण्डा, चण्ड एवं मुण्ड नामक राक्षसों का वध करने हेतु प्रकट हुयी थीं।
शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर संधि पूजा का विशेष महत्व होता है। जैसे सूर्य के अस्त होते समय दिन और रात के बीच के समय को संध्याकाल कहते हैं, उसी तरह जब एक तिथि समाप्त होकर दूसरी प्रारंभ हो रही होती है, तो उस काल को संधि कहते हैं। वहीं जब नवमी और अष्टमी के समय का मिलन हो रहा हो, तो इस काल में संधि पूजा की जाती है।
सन्धि पूजा, दो घटी तक चलती है, जो लगभग 48 मिनट का समय होता है। सन्धि पूजा का मुहूर्त दिन में किसी भी समय पड़ सकता है और सन्धि पूजा मात्र उसी समय सम्पन्न की जाती है। संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के प्रारंभ होने के 24 मिनट बाद तक की अवधि में की जाती है। चूंकि यह दो तिथियों का मेल है, इसलिए इसे संधि पूजा कहा जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:13 ए एम से 05:01 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:37 ए एम से 05:50 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:24 ए एम से 12:12 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:47 पी एम से 02:35 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:46 पी एम से 06:10 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:46 पी एम से 06:58 पी एम |
अमृत काल | 02:56 ए एम, अक्टूबर 01 से 04:40 ए एम, अक्टूबर 01 |
निशिता मुहूर्त | 11:24 पी एम से 12:12 ए एम, अक्टूबर 01 |
धार्मिक मान्यता के अनुसार, संधि काल में किया गया हवन और पूजा शीघ्र फलदायी होती है। मान्यता है कि इस समय देवी महागौरी की आराधना करने से भक्तों को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं और उन्हें आरोग्य, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही कारण है कि हर वर्ष शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर संधि पूजा की जाती है।
संधि काल का समय दुर्गा पूजा और हवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों में संधि पूजा से संबंधित एक कथा का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार माता चामुंडा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान चंड और मुंड नामक दो राक्षसों ने माता चामुंडा पर पीछे से हमला किया। इस आघात से माता का चेहरा क्रोध से नीला हो गया और उन्होंने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। जिस समय उनका वध हुआ, वह संधि काल का समय था। यह मुहूर्त अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है, क्योंकि इसी समय मां दुर्गा ने अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग कर चंड और मुंड का संहार किया था।
जो लोग शत्रुओं से परेशान हैं, उन्हें संधि काल के दौरान माता चामुंडा के सम्मुख 108 दीपक जलाना चाहिए। इससे प्रसन्न होकर माता अपने भक्त के शत्रुओं का विनाश करती हैं।
संधि काल के दौरान माता चामुंडा की पूरी आस्था से की गई आराधना बहुत प्रभावशाली होती है। मान्यता है कि इससे जातक को पारिवारिक जीवन में सुख शांति मिलती है, साथ ही संतान सुख भी प्राप्त होता है।
मान्यता है जो लोग किसी कारणवश संधि पूजा में शामिल नहीं हो पाते हैं, लेकिन पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं, माता चामुंडा उनपर भी अपनी कृपा बनाए रखती हैं। इसलिए संधि पूजा के बाद अपने परिजनों में प्रसाद ज़रूर बांटें।
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