
क्या आप जानते हैं पोंगल 2026 कब है? जानिए इस पवित्र फसल पर्व की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और इसे मनाने की पारंपरिक विधि से जुड़ी पूरी जानकारी – सब कुछ एक ही जगह!
पोंगल दक्षिण भारत का प्रमुख फसल पर्व है, जो सूर्यदेव को समर्पित होता है। यह चार दिन तक मनाया जाता है—भोगी, सूर्य पोंगल, मट्टू पोंगल और काणुम पोंगल। इस दिन नए अनाज से पोंगल व्यंजन बनाया जाता है।
साल 2026 में पोंगल त्यौहार 14 जनवरी, बुधवार को को मनाया जाएगा। यह पर्व सूर्य देवता को समर्पित होता है और दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पोंगल का त्योहार चार दिनों तक चलता है, और हर दिन का अपना अलग महत्व व नाम होता है, जैसे भोगी पांडिगई, थाई पोंगल, मट्टू पोंगल और कानुम पोंगल।
पोंगल चार दिनों तक चलने वाला एक पर्व है। हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे मकर संक्रांति भी कहा जाता है। इसी के साथ ही उत्तरायण काल का आरंभ होता है। आइए जानें चारों दिनों के बारे में विस्तार से -
भोगी पोंगल पोंगल पर्व का पहला दिन होता है। यह दिन वर्ष के पुराने दुख, नकारात्मकता और अनुपयोगी वस्तुओं को दूर करने का प्रतीक माना जाता है। इस दिन घरों की सफाई की जाती है और पुराने सामान को जलाकर ‘भोगी मंथा’ किया जाता है, जो एक तरह से जीवन में नए आरंभ का प्रतीक है। लोग अपने घरों को रंगोली (कोलम) से सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और घर के बाहर गोबर से पोंगल का प्रतीक चिन्ह बनाया जाता है। यह दिन इंद्र देव को समर्पित होता है, जिनसे वर्षा और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
यह पोंगल का मुख्य दिन होता है और इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। सुबह जल्दी स्नान कर, लोग सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और फिर नया चावल, गुड़ और दूध मिलाकर मिट्टी के बर्तन में खीर पकाते हैं। इस दिन सूर्य देव को गन्ना, नारियल, केला और हल्दी की गांठ का भोग लगाया जाता है।
इस दिन का महत्व खासतौर पर किसानों के लिए होता है। यह दिन गाय और बैल (मट्टू) को समर्पित है, जो खेती में किसानों के सबसे बड़े साथी माने जाते हैं। इस दिन बैलों को स्नान कराकर, उनकी सींगों को रंगा जाता है, और गले में फूल-मालाएं पहनाई जाती हैं। उन्हें विशेष भोजन दिया जाता है। गांवों में इस दिन ‘जल्लिकट्टू’ नामक पारंपरिक खेल आयोजित किया जाता है, जिसमें लोग सांडों को पकड़ने की प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। यह खेल साहस और परंपरा का प्रतीक है।
पोंगल का आखिरी दिन परिवार और रिश्तों को समर्पित होता है। ‘काणुम’ का अर्थ होता है ‘देखना’ या ‘मिलना’। इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और प्रियजनों से मिलने जाते हैं, पिकनिक मनाते हैं, भोजन बांटते हैं और एक-दूसरे के प्रति प्रेम व्यक्त करते हैं। लोग घर की दहलीज़ पर केले के पत्ते पर भोजन परोसते हैं और पक्षियों को दान स्वरूप भोजन खिलाते हैं। इसे ‘कणुपिडी’ रिवाज़ कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और समृद्धि की प्रार्थना भी करती हैं।
पोंगल से पहले घरों की अच्छे से सफाई की जाती है और नए कपड़े, बर्तन खरीदे जाते हैं। दरवाज़े पर आम के पत्तों और केले के पत्तों की तोरण लगाई जाती है।
घर के आंगन में रंग-बिरंगी कोलम (रंगोली) बनाई जाती है। यह शुभता और समृद्धि का प्रतीक होती है।
मिट्टी के बर्तन में चावल, दूध और गुड़ डालकर लकड़ी के चूल्हे पर पोंगल बनाया जाता है। इसे पकाते समय जब दूध उबलता है, तो “पोंगलो पोंगल” कहा जाता है।
पोंगल तैयार होने के बाद उसे केले के पत्ते पर परोसा जाता है और सूर्य देव को समर्पित किया जाता है। साथ ही किसान अपनी फसलों और मवेशियों के प्रति आभार जताते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग लोकनृत्य और पारंपरिक खेलों का आयोजन करते हैं। शहरों में भी लोग एक-दूसरे को पोंगल की शुभकामनाएं देकर खुशी मनाते हैं।
पोंगल का संबंध प्रकृति और कृषि दोनों से है। यह किसानों की मेहनत और धरती माता के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है।
सूर्य देव को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना गया है। इस दिन सूर्य की विशेष उपासना कर वर्ष भर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
पोंगल केवल फसल का त्योहार नहीं, बल्कि यह परिवार और समाज को जोड़ने वाला पर्व है। लोग अपने प्रियजनों के साथ समय बिताते हैं, जिससे सामाजिक रिश्ते और मजबूत होते हैं।
पोंगल हमें यह सिखाता है कि जैसे फसल उगाने के लिए मेहनत, धैर्य और समय चाहिए, वैसे ही जीवन में सफलता के लिए निरंतर प्रयास और कार्य के प्रति श्रद्धा आवश्यक है।
पोंगल तमिल समुदाय के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उत्तर भारत में दीवाली या उत्तरायण। यह त्योहार उनकी परंपरा, भाषा और संस्कृति को दर्शाता है।
पोंगल के दौरान गन्ने को शुभ माना जाता है। यह मिठास, समृद्धि और दीर्घायु का प्रतीक है।
पोंगल हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने की सीख देता है खेत, जानवर, जल और सूर्य सभी का सम्मान इस त्यौहार का मूल भाव है।
पोंगल केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है। यह हमें सिखाता है कि कृतज्ञता, मेहनत, प्रकृति और परिवार यही जीवन के स्तंभ हैं। हमारी कामना है कि ये पोंगल पर्व हर घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली लाए।
Did you like this article?
सफला एकादशी 2025: जानें कब है, शुभ मुहूर्त, पूजा सामग्री और व्रत विधि की पूरी जानकारी। पाएं आध्यात्मिक लाभ और व्रत का महत्व।
मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि की सम्पूर्ण जानकारी। जानें मासिक कृष्ण जन्माष्टमी कब है और इस दिन पूजा का महत्व।
कालाष्टमी पूजा 2025: इस विशेष दिन पर कालभैरव की पूजा कर पाएं सुख, समृद्धि और शांति। कालाष्टमी तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त की पूरी जानकारी।