क्या आप जानना चाहते हैं ज्येष्ठ गौरी पूजा 2025 की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि? यहां पाएं संपूर्ण जानकारी और जानें माता गौरी की कृपा पाने के आसान उपाय।
ज्येष्ठ गौरी पूजा में माता गौरी की आराधना की जाती है, जो सौंदर्य, समृद्धि और शुभता की प्रतीक हैं। भक्तजन इस दिन व्रत, पूजा और भोग अर्पित करते हैं। माना जाता है कि इससे परिवार में सुख-शांति और मंगल की प्राप्ति होती है।
ज्येष्ठ गौरी पूजा 'भाद्रपद मास' के 'शुक्ल पक्ष' की 'अष्टमी तिथि' को की जाती है। ये पूजा गणेश चतुर्थी के दो दिन बाद गौरी आह्वान के साथ शुरू होती है, और तीन दिन तक चलती है। इस दिन स्त्रियां माता गौरी की उपासना करती हैं, और उनसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती है। ज्येष्ठ गौरी पूजा का पर्व विशेष रूप से मराठी समुदाय द्वारा, यानि महाराष्ट्र और कर्नाटक में मनाया जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:08 ए एम से 04:53 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:30 ए एम से 05:39 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:32 ए एम से 12:23 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:04 पी एम से 02:55 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:17 पी एम से 06:40 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:17 पी एम से 07:25 पी एम तक |
अमृत काल | 10:13 ए एम से 11:58 ए एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:35 पी एम से 12:21 ए एम, सितम्बर 02 तक |
रवि योग | 07:55 पी एम से 05:39 ए एम, सितम्बर 02 तक |
ज्येष्ठ गौरी पूजा महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के दौरान आता है और इसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ मनाती हैं। मान्यता है कि माता गौरी, जो देवी पार्वती का स्वरूप मानी जाती हैं, इस दिन अपने मायके आती हैं और तीन दिनों तक घर में निवास करती हैं।
पहले दिन गौरी आवाहन, दूसरे दिन पूजन, और तीसरे दिन विसर्जन किया जाता है। यह पूजा मुख्य रूप से सौभाग्य, सुख-समृद्धि और परिवार की मंगलकामना के लिए की जाती है।
माता गौरी को प्रसन्न करने के लिए निम्न उपाय करें:
श्रद्धा और शुद्धता से पूजा: पूजा से पहले घर की सफाई करें और स्वयं स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। श्रृंगार का विशेष महत्व: माता को 16 श्रृंगार की वस्तुएँ जैसे चूड़ी, बिंदी, साड़ी, सिंदूर, फूल आदि अर्पित करें। मिठाई और नैवेद्य अर्पित करें: खासकर नारियल, पूरनपोली, फल और विशेष प्रसाद माता को अर्पित करें। मंत्र जाप करें: “ॐ गौर्यै नमः” का 108 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दान और सेवा करें: गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और श्रृंगार सामग्री का दान करें। पति की लंबी आयु की प्रार्थना करें: विवाहित महिलाएँ विशेष रूप से अपने पति की आयु और परिवार के सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
अखंड सौभाग्य की कामना करने वाली स्त्रियों के लिए ज्येष्ठ गौरी पूजन व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ये पर्व ज्येष्ठ नक्षत्र के दौरान आता है, इसी कारण इसे 'ज्येष्ठ गौरी व्रत' के रूप में जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार असुरों के अत्याचार से त्रस्त होकर सभी स्त्रियां श्री महालक्ष्मी माता गौरी की शरण में गईं, और अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगीं। विनती सुनकर माता ने असुरों का संहार करके शरणागत स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया। इसी कारण आज भी ये व्रत बहुत श्रद्धा के साथ किया जाता है।
माता गौरी का पूजन और व्रत करने वाली स्त्रियां सदा सौभाग्यवती रहती हैं। यह व्रत स्त्री के दांपत्य जीवन में प्रेम और विश्वास बनाए रखता है। माना जाता है कि माता के आशीर्वाद से पति-पत्नी के रिश्ते में कभी दरार नहीं आती, और विपरीत परिस्थितियों में भी दांपत्य जीवन सुरक्षित रहता है।
इस पावन अवसर पर ब्राह्मणों को चावल, अनाज, फल और वस्त्र दान करने का विशेष महत्व है। दान करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है।
जो भक्त सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ इस दिन माता गौरी का पूजन करते हैं, माता उनकी सारी पीड़ाओं को हर लेती हैं। जीवन में आ रही कठिनाइयों, मानसिक तनाव और पारिवारिक कलह का समाधान आसानी से मिलने लगता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये भी कहा जाता है कि इस व्रत का पालन करने से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। माता गौरी की कृपा से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दरिद्रता दूर होती है। व्यापार और नौकरी के क्षेत्र में भी सकारात्मक बदलाव आते हैं।
यदि किसी व्यक्ति की कोई विशेष मनोकामना हो, चाहे वह संतान सुख की हो, विवाह में आने वाली रुकावट दूर करने की, घर में सुख-शांति बनाए रखने की, या जीवन में किसी बड़े लक्ष्य को पाने की, तो ज्येष्ठ गौरी पूजा का व्रत करने से वह मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है। माता के आशीर्वाद से कार्यों में आने वाली बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
उपवास रखें: महिलाएँ इस दिन उपवास रखती हैं और पूजा के बाद ही भोजन करती हैं। कुमकुम और हल्दी का अर्पण: माता गौरी को हल्दी और कुमकुम चढ़ाना शुभ माना जाता है। कलश स्थापना: पूजा के समय जल से भरा कलश स्थापित करें और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। संकल्प मंत्र पढ़ें: संकल्प लेकर माता गौरी की पूजा करने से पुण्य फल मिलता है। सुहाग सामग्री का आदान-प्रदान: महिलाएँ एक-दूसरे को श्रृंगार की वस्तुएँ देती हैं, जिसे शुभ माना जाता है। गौरी गीत और मंगलगान: पूजा के समय महिलाएँ पारंपरिक गीत गाती हैं, जो इस पर्व की विशेषता है।
तो यह थी ज्येष्ठ गौरी पूजा से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत सफल हो, और माता ज्येष्ठ गौरी की कृपा से आपका घर धन-धान्य सुख शांति से परिपूर्ण रहे। व्रत त्यौहारों व अन्य धार्मिक जानकारियां लगातार पाते रहने के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
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