image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

हयग्रीव जयंती 2025

भगवान हयग्रीव को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। जानिए 2025 में हयग्रीव जयंती की तिथि, पूजन विधि और इस दिन का धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व।

हयग्रीव जयंती के बारे में

हयग्रीव जयंती भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की जयंती है, जिसे भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन भगवान हयग्रीव की पूजा ज्ञान, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति के लिए की जाती है। आइये जानते हैं इसके बारे में...

हयग्रीव जयंती कब है? जानें पूजा मुहूर्त

नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। भगवान विष्णु के प्रमुख 24 अवतारों में से 'हयग्रीव' भी एक अवतार हैं। हयग्रीव जयंती हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को, यानि रक्षा बंधन के दिन मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने 'हयग्रीव अवतार' लिया था।

चलिए जानते हैं कि हयग्रीव जयंती कब है?

हयग्रीव जयंती- 08 अगस्त, शुक्रवार (श्रावण, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा)

  • पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 08, 2025 को 02:12 पी एम बजे से
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 09, 2025 को 01:24 पी एम बजे तक
  • हयग्रीव जयंती पूजा मुहूर्त- 04:27 पी एम से 07:07 पी एम मिनट तक रहेगा।
  • इसकी कुल अवधि - 02 घण्टे 40 मिनट्स की होगी।

हयग्रीव जयंती के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:21 ए एम से 05:04 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:43 ए एम से 05:46 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

07:07 पी एम से 07:28 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

07:07 पी एम से 08:11 पी एम तक

अमृत काल

07:57 ए एम से 09:35 ए एम तक

निशिता मुहूर्त

12:05 ए एम, अगस्त 09 से 12:48 ए एम, अगस्त 09 तक

विशेष योग

मुहूर्त 

समय

रवि योग

05:46 ए एम से 02:28 पी एम तक

सर्वार्थ सिद्धि योग

02:28 पी एम से 05:47 ए एम, अगस्त 09 तक

भक्तों, भगवान हयग्रीव का स्वरूप अद्भुत है उनका सिर घोड़े का है, और शरीर मनुष्य का है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यह अवतार राक्षसों द्वारा चुराए गए सभी वेदों की रक्षा के लिए लिया था, और इन वेदों को ब्रह्मा जी को देकर पुन: स्थापित कराया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान हयग्रीव की पूजा करने से मनुष्य के ज्ञान व सम्मान में वृद्धि होती है।

हयग्रीव भगवान कौन हैं?

भगवान हयग्रीव, श्रीविष्णु के एक दिव्य अवतार हैं जिनका स्वरूप अश्वमुख यानी घोड़े के मुख वाला है। वे ज्ञान, बुद्धि, वेद और विद्या के देवता माने जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जब दैत्य मधु और कैटभ ने वेदों को चुराकर पाताल में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने हयग्रीव रूप में अवतार लेकर वेदों की रक्षा की थी। हयग्रीव को विशेष रूप से विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, और आध्यात्मिक साधकों द्वारा पूजनीय माना जाता है।

क्या है हयग्रीव जयंती?

हयग्रीव जयंती भगवान हयग्रीव के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को आता है और दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और कर्नाटक में बड़े श्रद्धा से मनाया जाता है। इसे वेदों की रक्षा और ज्ञान की विजय के प्रतीक दिवस के रूप में देखा जाता है।

क्यों मनाते हैं हयग्रीव जयंती?

हयग्रीव जयंती इस स्मृति के रूप में मनाई जाती है कि कैसे भगवान ने अज्ञान, भ्रम और असुरता पर विजय पाकर वेदों को पुनः प्राप्त किया। यह दिन विशेष रूप से विद्या, विवेक, स्मरण शक्ति और आध्यात्मिक जागरण की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। विद्यार्थियों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।

हयग्रीव जयंती का महत्व

  • वेदों की रक्षा की प्रेरणा
  • ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक दिन
  • साधकों व विद्यार्थियों के लिए विशेष दिन
  • आध्यात्मिकता में उन्नति का अवसर
  • श्रीविष्णु के दुर्लभ रूप की आराधना

हयग्रीव जयंती कैसे मनाएं? जानें हयग्रीव जयंती की पूजा विधि

हयग्रीव जयंती पर भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन की जाने वाली पूजा अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है। इस दिन पूजा-पाठ करके आप भगवान हयग्रीव की कृपा पा सकते हैं।

  • हयग्रीव जयंती के दिन प्रातःकाल उठकर, स्नान तथा नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं।
  • फिर इसके पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब पूजा स्थल पर पूर्व दिशा व उत्तर दिशा की ओर मुख कर के आसन ग्रहण करें।
  • फिर सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा को गंगाजल से साफ करके उन्हें वस्त्र अर्पित करें।
  • अब गणपति जी को गंध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत आदि चढ़ाएं ।
  • इसके बाद अब भगवान श्री हयग्रीव जी का पूजन करें। इसके लिए सबसे पहले हयग्रीव जी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं।
  • फिर उनकी प्रतिमा पर पुष्प माला पहनाएं और
  • ॐ नमो भगवते आत्मविशोधनाय नमः॥
  • ॐ वागीश्वर्यै विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥
  • मंत्र का उच्चारण करते हुए, उनका तिलक करें।
  • इसके पश्चात, आप उन्हें धूप, दीप, अक्षत, मौसमी फल, भोग समेत संपूर्ण पूजा सामग्री अर्पित करें।
  • आपको बता दें, इस दिन विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • अंत में भगवान का ध्यान करते हुए प्रभु की आरती उतारें और किसी भी भूल के लिए क्षमा याचना करें।
  • पूजा संपूर्ण होने के बाद प्रसाद अवश्य वितरित करें।

हम उम्मीद करते हैं, कि आपकी भगवान विष्णु के अवतार हयग्रीव जी की पूजा फलीभूत हो और आपकी समस्त मनोकामनाएं पूरी हों।

हयग्रीव जयंती के मंत्र

share
"ॐ ह्रीं हयग्रीवाय नमः"

अन्य स्तोत्र

  • हयग्रीव स्तोत्रम्, विष्णु सहस्रनाम, श्री हयग्रीव गायत्री मंत्र
  • "ॐ वद वद वाग्वादिनी स्वाहा" (विद्या प्राप्ति हेतु)

हयग्रीव जयंती मनाने के लाभ

  • बुद्धि, ज्ञान और स्मरण शक्ति की वृद्धि
  • पढ़ाई में एकाग्रता
  • आध्यात्मिक उन्नति
  • छात्रों के लिए परीक्षा में सफलता
  • जीवन में स्पष्टता और दिशा

हयग्रीव जयंती पर क्या करें?

  • व्रत रखें और सात्विक भोजन करें
  • ध्यान और मंत्र जाप करें
  • विद्यार्थियों को उपहार दें, उन्हें आशीर्वाद दें
  • पुस्तकें या वेद ग्रंथों का अध्ययन करें
  • गुरु का सम्मान करें और आशीर्वाद लें

हयग्रीव जयंती पर क्या नहीं करना चाहिए?

  • तामसिक भोजन (मांस, लहसुन, प्याज) से बचें
  • झूठ, क्रोध और कलह न करें
  • अपवित्रता या असावधानी से पूजा न करें
  • शोरगुल और अशांति से दूर रहें
  • आलस्य और व्यर्थ कार्यों से बचें

भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार की पौराणिक कथा

आइए आज आपको भगवान विष्णु के उस अवतार के बारे में बताते हैं, जिन्होंने शत्रु के संहार के लिए शत्रु के समान ही रूप धारण किया था। उनके इस अवतार का नाम, हयग्रीव था और यह अवतार, उन्होंने इसी नाम के एक दैत्य के संहार हेतु लिया था। इस अवतार की सम्पूर्ण कथा के बारे में जानने के लिए, यह लेख अंत तक अवश्य पढ़ें -

भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की यह रोचक कथा, माँ लक्ष्मी के अभिशाप के साथ भी जुड़ी हुई है। कथानुसार, एक बार माँ लक्ष्मी के सौन्दर्य को देख, श्रीहरि मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। परंतु लक्ष्मी जी को लगा, कि उनके स्वामी उनकी हंसी उड़ा रहे हैं। इस बात से वह बहुत आहत हुईं और उन्होंने भगवन को अभिशाप दे दिया, कि उनका सिर धड़ से अलग हो जाए। लेकिन यह अभिशाप भी, प्रभु की माया का ही एक अंग मात्र था।

कालांतर में पृथ्वी पर हयग्रीव नामक एक दैत्य की उत्पत्ति हुई, जिसका धड़ मनुष्य का और सिर घोड़े का था। माँ भगवती का एकनिष्ठ भक्त होने के कारण, उसने सरस्वती नदी के तट पर जाकर निराहार और निर्जला रहते हुए, उनकी खूब तपस्या की। माँ भगवती, हयग्रीव की तपस्या से प्रसन्न हुईं और उसे वर मांगने को कहा। पहले तो दैत्य ने उनसे अमरत्व का वर मांगा, परंतु जब देवी ने उसे यह वर देने से मना कर दिया, तब उसने देवी से कहा, “हे देवी! आप कम से कम मुझे यह वरदान दें, कि मेरी मृत्यु मेरे जैसे किसी के हाथों ही हो। कोई पूर्ण शरीर मेरी मृत्यु का कारण ना बने।” तब देवी भगवती ने उसे यह वरदान दे दिया।

बस फिर क्या था, हयग्रीव को तो जैसे अब किसी का डर ही नहीं था, क्योंकि उसके जैसे किसी दूसरे का जन्म, अब तक नहीं हुआ था। उसने प्रजापति ब्रह्मा से वेद छीन लिए और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। देखते ही देखते, पूरी सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा, लेकिन कोई भी उस हयग्रीव को परास्त करने में सक्षम नहीं हुआ। तब सभी देवताओं को लगा, कि अब तो सिर्फ श्रीहरि ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। यह सोचकर, वह सभी विष्णु की शरण में जा पहुँचे। परंतु भगवान विष्णु उस समय अपने धनुष की प्रत्यंचा पर सिर टिकाये, अपनी योगनिद्रा में थे। तब प्रजापति ब्रह्मा ने वम्री नामक एक कीड़े को उत्पन्न किया, ताकि वह प्रभु को जाग्रत कर सके।

परंतु हुआ कुछ और ही। जैसे ही वम्री ने धनुष की प्रत्यंचा काटी, एक अद्भुत सी ध्वनि हुई और सहसा, भगवान विष्णु का सिर धड़ से अलग हो गया। इस विचित्र घटना के साक्षी बने देवताओं ने, तब माँ भगवती की आराधना की,

जिन्होंने प्रकट होकर उन सभी से शांत होने को कहा। माँ भगवती ने कहा, “देवों! यह सब श्रीहरि की ही माया है। आप सब चिंतित ना होकर, श्रीहरि के धड़ पर एक घोड़े का सिर लगा दें। इससे भगवान का हयग्रीव अवतार होगा, जो दैत्य हयग्रीव का अंत करेगा।” यह कहकर, मां भगवती अन्तर्धान हो गईं और उसी क्षण, ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का सिर, विष्णु के धड़ के साथ जोड़ दिया।

इस प्रकार भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की उत्पत्ति हुई। इसके बाद, दैत्य हयग्रीव के साथ उनका भीषण युद्ध चला। अंत में प्रभु के हयग्रीव अवतार ने दैत्य हयग्रीव का संहार कर, पृथ्वी को उसके अत्याचारों से सदैव के लिए मुक्त कर दिया। उन्होंने प्रजापति को वेद भी लौटा दिए और मुनियों की शांति से यज्ञ करने की विनती भी पूर्ण की। तभी से भगवान हयग्रीव को पूजा जाने लगा।

भगवान हयग्रीव को, बुद्धि का देवता भी कहा जाता है। भगवान विष्णु के इस अवतार में उनका स्वरूप, अत्यंत अद्भुत है। इसमें उनका पूरा धड़, जहाँ एक मनुष्य का है, तो वहीं सिर एक घोड़े का है।

तो यह थी भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की कथा, आशा करते हैं आपको यह कथा अच्छी लगी होगी। ऐसी ही और भी रोचक कथाओं के बारे में जानने के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।

divider
Published by Sri Mandir·July 28, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook