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गोवत्स द्वादशी 2025

क्या आप जानते हैं गोवत्स द्वादशी 2025 की सही तिथि और शुभ मुहूर्त? जानें पूजा विधि और कथा के बारे में यहाँ!

गोवत्स द्वादशी (बछ बारस) के बारे में

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गौमाता को समर्पित है इसलिए इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाता है। कई क्षेत्रों में यह वसु बारस या नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाई जाती है। आज इस लेख में हम आपको गोवत्स द्वादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराएँगे।

गोवत्स द्वादशी कब है?

  • गोवत्स द्वादशी 17 अक्टूबर, 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी।
  • प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त - 05:29 पी एम से 07:59 पी एम तक
  • अवधि - 02 घण्टे 30 मिनट्स
  • द्वादशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 17, 2025 को 11:12 ए एम बजे से
  • द्वादशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 18, 2025 को 12:18 पी एम बजे तक

शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:18 ए एम से 05:07 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:43 ए एम से 05:57 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:20 ए एम से 12:06 पी एम

विजय मुहूर्त

01:38 पी एम से 02:24 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:29 पी एम से 05:54 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:29 पी एम से 06:44 पी एम

अमृत काल

11:26 ए एम से 01:07 पी एम

निशिता मुहूर्त

11:18 पी एम से 12:08 ए एम, अक्टूबर 18

क्या है गोवत्स द्वादशी?

गोवत्स द्वादशी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गोमाता (गाय) और उनके बछड़े की पूजा की जाती है। गोवत्स का अर्थ होता है — ‘गाय का बछड़ा’। इसलिए इस तिथि को नन्दिनी व्रत या बाछ बारस के नाम से भी जाना जाता है।

गोवत्स द्वादशी का यह पर्व गाय की महिमा को समर्पित है, जो भारतीय संस्कृति में मातृ स्वरूप और समस्त देवताओं का निवास स्थान मानी गई है।

क्यों मनाते हैं गोवत्स द्वादशी?

गोवत्स द्वादशी व्रत को मुख्य रूप से माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं श्रद्धापूर्वक गोमाता और बछड़े की पूजा करती हैं, उन्हें संतान की रक्षा, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही, जो स्त्रियाँ संतान की प्राप्ति की अभिलाषा रखती हैं, वे भी यह व्रत करती हैं।

शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गाय की सेवा, पूजन और व्रत करने से गाय के प्रति किए गए अज्ञानजन्य अपराधों और पापों से मुक्ति मिलती है।

गोवत्स द्वादशी महत्व

माताएं इस व्रत को अपनी संतान की लम्बी आयु और उनके संरक्षण के लिए रखती हैं। जो महिलाएं संतान-प्राप्ति का सुख को भोगना चाहती हैं, वे इस दिन गोमाता और बछड़े की पूजा करती हैं, और इस दिन विधिपूर्वक व्रत का पालन करती हैं। इस व्रत और पूजन करने से अज्ञानतावश गाय पर किए अत्याचारों के पाप से भी मुक्ति मिलती है।

हिन्दू संस्कृति में गौ अर्थात गाय कि महत्ता को इस बात से समझा जा सकता है, कि गाय में हर देवी-देवताओं का वास माना जाता है, इसीलिए गाय पूजनीय होती है। इस तरह गोवत्स द्वादशी गोमाता से मिलने वाले अनेक लाभों के लिए उनको आभार व्यक्त करने का शुभ अवसर है।

गोवत्स द्वादशी व्रत की पूजन सामग्री

गोवत्स द्वादशी के दिन पूजा करने के लिए कुछ विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है। पूजा में शुद्धता और श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण होती है। पूजन के लिए निम्न सामग्री तैयार करें —

  • साफ पानी (गाय-बछड़े को स्नान कराने हेतु)
  • नए वस्त्र या कपड़ा
  • फूलों की माला
  • कुमकुम, हल्दी, अक्षत (चावल)
  • बाजरा या मूंग (तिलक हेतु)
  • हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने
  • गुड़, मीठी रोटी
  • दीपक, घी या तेल, रूई की बत्ती
  • पूजन थाली, जल का कलश
  • धूप, अगरबत्ती
  • नैवेद्य हेतु फल व मिठाई

गोवत्स द्वादशी पर कैसे करें पूजा?

इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद निम्न विधि से पूजा करें —

गाय और बछड़े को स्नान कराएं: उन्हें शुद्ध जल से स्नान करवाएं और नए वस्त्र या कपड़े से सजाएं।

सजावट और तिलक: गाय और बछड़े के गले में फूलों की माला पहनाएं तथा उनके माथे पर कुमकुम, हल्दी और बाजरे या मूंग से तिलक करें।

भोजन अर्पण करें: उन्हें श्रद्धा से हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने, गुड़ और मीठी रोटी खिलाएं।

आरती और क्षमा प्रार्थना: दीपक जलाकर गाय की आरती करें और स्नेहपूर्वक उनके चरण स्पर्श करते हुए क्षमा याचना करें।

प्रतिकात्मक पूजा का विधान: यदि घर में गाय या बछड़ा न हो, तो आस-पास की किसी गाय की पूजा करें। और यदि यह भी संभव न हो, तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की प्रतीकात्मक प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करना शुभ माना जाता है।

गोवत्स द्वादशी पूजा विधि और नियम

  • इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं सवेरे स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से स्नान करवाएं, उन्हें पूर्ण रूप से सजाएं, और दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाएं।
  • दोनों को फूलों की माला पहनाकर उनके माथे पर कुमकुम हल्दी और बाजरे से तिलक लगाएं।
  • यदि आपके पास बाजरा नहीं है, तो अक्षत या मूंग भी उपयोग कर सकती हैं।
  • गऊ माता और बछड़े को हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने व मीठी रोटी एवं गुड़ आदि श्रद्धा से खिलाएं।
  • गाय की आरती उतारें। अब गाय और बछड़े को सहलाएं, उनसे क्षमा याचना करते हुए उनकी परिक्रमा करें।
  • यदि आपके घर में गाय और बछड़े न हों, तो घर के आस-पास घूमने वाले गाय व बछड़े की पूजा कर सकते हैं।
  • यदि यह भी संभव न हों तो शुद्ध गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की प्रतीकात्मक प्रतिमा बनाकर, उसकी पूजा करने का भी विधान है।
  • इस दिन महिलाएं सिर्फ बिना कटे हुए कंद-मूल, फल और बाजरे से बना खाना आदि ग्रहण करती हैं।
  • इस दिन महिलाएं चाकू से कटा हुआ कुछ नहीं पकाती, और न ही ग्रहण करती हैं।
  • इस दिन गेहूं से बने खाद्य को भी ग्रहण नहीं किया जाता है।
  • साथ ही इस दिन गाय के दूध से बनी हर चीज का सेवन वर्जित माना जाता है।

गोवत्स द्वादशी व्रत के नियम

गोवत्स द्वादशी व्रत में पालन किए जाने वाले कुछ नियम और आचरण इस प्रकार हैं —

  • इस दिन कटे हुए फल या सब्जियाँ न खाएं। केवल बिना कटे फल, कंद-मूल और बाजरे से बने भोजन का सेवन करें।
  • गेहूं से बने भोजन का सेवन वर्जित माना गया है।
  • इस दिन गाय के दूध, दही, घी या किसी भी दुग्ध पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • व्रत के दौरान दिनभर संयम, सत्य और अहिंसा का पालन करें।
  • पूजा के बाद संध्या समय गाय की पुनः आरती करें और उन्हें आभार स्वरूप चारा अर्पित करें।

गोवत्स द्वादशी के लाभ

गोवत्स द्वादशी व्रत का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत गहरा है। यह व्रत व्यक्ति को करुणा, कृतज्ञता और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करता है। आइए जानते हैं इस पावन व्रत से मिलने वाले प्रमुख लाभ —

1. संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि

  • इस दिन गोमाता और उनके बछड़े की पूजा करने से संतान की आयु लंबी होती है और उसे हर प्रकार के संकट से सुरक्षा प्राप्त होती है। जो माताएं सच्चे मन से यह व्रत करती हैं, उनके बच्चों का जीवन सुखमय और समृद्ध होता है।

2. संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

  • जिन महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती, उनके लिए यह व्रत अत्यंत शुभ माना गया है। श्रद्धा और विधि-विधान से गोवत्स द्वादशी का व्रत रखने पर देवी गौमाता की कृपा से संतान प्राप्ति होती है।

3. पापों से मुक्ति और आत्मशुद्धि

  • गोवत्स द्वादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति अपने जीवन में जाने-अनजाने हुए गोहत्या या गौ-अनादर के पापों से मुक्त होता है। यह व्रत आत्मशुद्धि और पुण्य प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

4. गौ-सेवा और धर्म-संवर्धन का पुण्य

  • गाय की पूजा और सेवा से व्यक्ति को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में कहा गया है — “गावो विश्वस्य मातरः”, अर्थात गाय संपूर्ण सृष्टि की माता है। उनकी सेवा करने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

5. जीवन में समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति

  • गोवत्स द्वादशी के दिन गोमाता को चारा, अन्न, या वस्त्र अर्पित करने से घर में धन, अन्न और आरोग्य का वास होता है। इस दिन किया गया दान व्यक्ति के जीवन में समृद्धि के द्वार खोलता है।

6. आध्यात्मिक लाभ और मोक्ष प्राप्ति

  • शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत का पालन करता है, वह मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त करता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है। यह व्रत आत्मा को शुद्ध कर उसे ईश्वर से जोड़ने का माध्यम बनता है।

गोवत्स द्वादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि गौमाता के प्रति कृतज्ञता और धर्म-संवर्धन का पर्व है। इस दिन का संकल्प व्यक्ति को करुणा, आस्था और पुण्य के मार्ग पर ले जाता है, जिससे उसके जीवन में हर दिशा में मंगल फल की प्राप्ति होती है।

गोवत्स द्वादशी पर किए जाने वाले उपाय

गोवत्स द्वादशी के दिन किए गए छोटे-छोटे उपाय जीवन में बड़े परिवर्तन लाने की शक्ति रखते हैं। इस दिन गोमाता और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं इस पावन दिन के कुछ प्रमुख शुभ उपाय...

1. गाय को हरा चारा और गुड़ खिलाएं

  • इस दिन गाय को हरा चारा, गुड़ या मीठी रोटी खिलाने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है और माता लक्ष्मी का वास बना रहता है।
  • फल – दरिद्रता दूर होती है और आर्थिक स्थिति में सुधार आता है।

2. गाय की परिक्रमा कर मनोकामना मांगे

  • गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की सात बार परिक्रमा करें और अपनी मनोकामना मांगे।
  • फल – संतान-सुख, पारिवारिक शांति और इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

3. गाय को तिलक लगाकर आरती करें

  • गाय और बछड़े को कुमकुम, हल्दी व अक्षत से तिलक लगाकर आरती करें।
  • फल – घर में शुभता, सौभाग्य और रोगों से मुक्ति मिलती है।

4. गोमाता को वस्त्र या चारा दान करें

  • यदि संभव हो तो गोशाला में चारा, गुड़, कपड़ा या गौसेवा के लिए कुछ धन अर्पित करें।
  • फल – यह दान कई जन्मों के पापों को मिटा देता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

5. तुलसी के पास दीपक जलाएं

  • शाम के समय तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु और गोमाता का ध्यान करें।
  • फल – वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

6. ‘गौत्राय नमः’ या ‘गौमाता नमः’ का जाप करें

  • इस दिन “ॐ गौमातायै नमः” या “ॐ नमो गोविंदाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • फल – मन की अशांति दूर होती है और जीवन में सुख, शांति और स्थिरता आती है।

7. गाय के खुरों की धूल माथे पर लगाएं

  • शास्त्रों में कहा गया है कि गाय के चरणों की धूल लगाना अत्यंत शुभ होता है।
  • फल – इससे सभी प्रकार के ग्रहदोष शांत होते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

गोवत्स द्वादशी पर क्या करें

गोवत्स द्वादशी का दिन गोमाता और उनके बछड़े की पूजा के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। इस दिन की गई पूजा, सेवा और दान से जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है। आइए जानते हैं इस दिन किए जाने वाले शुभ कार्य —

1. प्रातःकाल स्नान और व्रत संकल्प करें

  • सुबह स्नान के बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनें और संतान की दीर्घायु, परिवार की सुख-समृद्धि तथा पापों से मुक्ति की कामना के साथ व्रत का संकल्प लें।

2. गाय और बछड़े की पूजा करें

  • गाय और बछड़े को स्नान करवाकर, फूलों की माला पहनाएँ, माथे पर कुमकुम-हल्दी का तिलक लगाएँ और हरे चारे, गुड़, मीठी रोटी से पूजन करें।

3. गोसेवा करें या गौशाला जाएँ

  • यदि संभव हो तो किसी गौशाला में जाकर गायों की सेवा करें, उन्हें चारा खिलाएँ या गौसेवा हेतु दान दें।

4. गंगा जल या पवित्र जल से स्नान करें

  • इस दिन स्नान के समय गंगाजल या तुलसी पत्र डालें। यह शरीर और मन दोनों को पवित्र बनाता है।

5. तुलसी और भगवान विष्णु की आराधना करें

  • गोवत्स द्वादशी के दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता की भी पूजा करनी चाहिए। इससे पुण्यफल अनेक गुना बढ़ जाता है।

6. गाय के चरणों की धूल माथे पर लगाएँ

  • गाय के खुरों की मिट्टी या धूल को माथे पर लगाने से सौभाग्य और पापों से मुक्ति का वरदान मिलता है।

गोवत्स द्वादशी के दिन क्या न करें

जिस प्रकार इस दिन कुछ कार्य शुभ माने जाते हैं, उसी प्रकार कुछ कार्य निषेध भी बताए गए हैं। इन वर्जनाओं का पालन करने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है

1. गाय या उसके बछड़े को कष्ट न पहुँचाएँ

  • इस दिन किसी भी गाय को मारना, भगाना या उन्हें कष्ट देना अत्यंत पाप माना गया है। ऐसा करने से व्रत का पुण्य नष्ट हो जाता है।

2. गाय के दूध या उससे बने पदार्थों का सेवन न करें

  • गोवत्स द्वादशी के दिन गाय का दूध, दही, घी या पनीर जैसी वस्तुएँ वर्जित मानी गई हैं। इस दिन इन्हें न खाएँ, बल्कि गाय को अर्पित करें।

3. चाकू से कटी वस्तुएँ न खाएँ

  • इस दिन बिना काटे हुए फल, कंद-मूल या बाजरे से बने भोजन का सेवन करें। चाकू से कटा या गेहूं से बना अन्न नहीं खाना चाहिए।

4. असत्य, क्रोध और अपशब्दों से बचें

  • इस दिन मन, वाणी और कर्म को पवित्र रखें। किसी से झगड़ा या कटु वचन न बोलें।

5. संध्या के समय दीपक न बुझाएँ

  • शाम के समय घर और तुलसी के पास दीपक जलाकर रखें। उसे बुझाना अशुभ माना जाता है।

गोवत्स द्वादशी की कथा

किसी समय में एक राजा हुआ करता था, जिसकी दो रानियां थी - सीता और गीता। उस राजा के पास एक भैंस और एक गाय थी। रानी सीता को भैंस अतिप्रिय थी, जबकि रानी गीता गाय को बहुत दुलार करती थी। कुछ समय बाद गाय को एक बछड़ा हुआ। एक दिन ईर्ष्यावश भैंस ने रानी सीता को गाय और उसके बछड़े के विरुद्ध कुछ बातें कही, जिनपर रानी ने विश्वास कर लिया और क्रोध में आकर बछड़े को मार दिया और उसे गेहूं के खेत में दबा दिया।

संध्या समय जब राजा भोजन करने बैठा तो उसे अपने महल में चारों ओर केवल मांस और खून दिखाई देने लगा। राजा को परोसा हुआ भोजन भी मलीन हो गया और पूरे राज्य में खून की वर्षा होने लगी। राजा कुछ समझ पाते, उससे पहले ही एक आकाशवाणी हुई, जिससे राजा को रानी सीता की करतूत का पता चला।

राजा ने दुखी मन से उस आकाशवाणी से इस समस्या का हल पूछा। आकाशवाणी से आवाज आई कि कल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से और गाय और बछड़े की पूजा करने से वह मृत बछड़ा जीवित हो जाएगा और आपको इस पाप से भी मुक्ति मिले जाएगी।

राजा ने ऐसा ही किया, जिससे वह बछड़ा जीवित हो गया। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में हर वर्ष गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजन करने की घोषणा की। मान्यताओं के अनुसार तब से यह पूजा और व्रत किया जा रहा है।

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Published by Sri Mandir·October 8, 2025

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