बहुला चतुर्थी हिन्दू धर्म में गौ माता की पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जो विशेषकर श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। 2025 में यह व्रत कब है, कैसे मनाया जाता है, क्या करना चाहिए और कौन-से नियमों का पालन करना होता है
बहुला चतुर्थी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से गाय की पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखकर संतान की सुख-समृद्धि और पारिवारिक कल्याण की कामना करती हैं
हिंदू धर्म में पशुओं को भी पूजनीय स्थान दिया गया है, खास तौर पर गाय की पूजा को शास्त्रों में बेहद शुभ माना गया है। गौ माता को समर्पित, बहुला चतुर्थी के पर्व पर इस लेख में हम जानेंगे कि बहुला चतुर्थी कब है और इसका महत्व क्या है?
बहुला चतुर्थी (बोल चौथ) 12 अगस्त, 2025, मंगलवार को (भाद्रपद, कृष्ण पक्ष तृतीया)
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:23 ए एम से 05:06 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:44 ए एम से 05:49 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:59 ए एम से 12:52 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:38 पी एम से 03:31 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 07:03 पी एम से 07:25 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:03 पी एम से 08:08 पी एम तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 11:52 ए एम से 05:49 ए एम, 13 अगस्त तक |
निशिता मुहूर्त | 12:05 ए एम, अगस्त 13 से 12:48 ए एम, 13 अगस्त तक |
अब हम आपको इसके महत्व से संबंधित जानकारी देंगे और बताएंगे कि क्यों यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।
बहुला चतुर्थी के दिन गौ माता की पूजा विशेष रूप से की जाती है। हमारे हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र जीव माना गया है और ऐसी मान्यता है, कि जो व्यक्ति गौ माता की सच्चे मन से सेवा व पूजा करता ,है उस पर आने वाली सभी प्रकार के कष्टों को गौ माता हर लेती हैं। गाय से मिलने वाला दूध और यहां तक की उसका गोबर भी बेहद लाभकारी माना गया है।
यह त्यौहार विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है और इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गौमाता का पूजन भी किया जाता है। इस दिन, विशेष रूप से विवाहित स्त्रियां, नहा-धोकर पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से, बहुला चतुर्थी व्रत की आराधना आरम्भ करती हैं और इस व्रत को विधि पूर्वक पूर्ण करती हैं।
अंत में, आरती करने के बाद, भगवान का आशीष प्राप्त कर अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। इस व्रत को रखने से, सभी तनाव व कष्टों से मुक्ति मिलती है और संतान, व सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
कुछ जगहों पर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन महिलाएं, अपने बच्चों की खुशहाली, लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुम्हार की मिट्टी से बने हुए, भगवान शिव और माता पार्वती, कार्तिकेय जी, भगवान गणेश और गौ माता की प्रतिमा बनवाकर पूरे विधि विधान के साथ, पूजा-अर्चना भी करती हैं।
बहुला चतुर्थी के अवसर पर हम सभी पशुओं के प्रति अपने प्रेम और कृतज्ञता की भावना को प्रकट करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहुला चतुर्थी का पर्व क्यों मनाया जाता हैं और इस पर्व को मनाने की प्रथा किस प्रकार शुरू हुई? इससे संबंधित गाय और शेर की कहानी बेहद प्रचलित है, आज हम आपको इसी कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।
एक बार नंद बाबा की गौशाला में श्रीकृष्ण जी को बहुला नामक एक गाय से बेहद लगाव हो जाता है। उस गाय का छोटा बछड़ा भी गौशाला में उसके साथ रहता था। श्री कृष्ण अपना अधिकतर समय इसी बहुला नामक गाय के साथ ही बिताते थे।
एक दिन भगवान कृष्ण बहुला की परीक्षा लेने के लिए शेर का रूप धारण करते हैं और उसका शिकार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। तभी बहुला प्रार्थना करते हुए कहती है कि, "आप अभी मेरा शिकार न करें, मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है, मुझे उसे दूध पिलाना है। मैं उसे दूध पिलाकर वापस लौट कर आउंगी, तब आप मेरा शिकार कर लेना।”
ऐसा कहकर, वह बहुत मुश्किल से वापस घर आने की अनुमति लेती है। नन्द जी की गौशाला आने के बाद बहुला अपने बछड़े को खूब प्यार दुलार कर करती है और फिर दूध पिलाकर वापस उसी शेर के पास चली जाती है। अपने वचन के मुताबिक वह शेर से कहती है, कि "अब मेरा शिकार करके, आप अपनी भूख मिटा लो।”
तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आकर बहुला से कहते हैं, कि "बहुला, आज तुम अपनी इस परीक्षा में सफल हुई। मैं तुम्हें वचन देता हूं, कि भादों की कृष्ण चतुर्थी, बहुला चतुर्थी के रूप में जानी जाएगी और इस दिन लोग तुम्हारी पूजा-अर्चना एक माता के रूप में करेंगे।
तभी से जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं, और साथ ही उसे सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है। इस दिन, गौ माता की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना की जाती है। क्योंकि जिस प्रकार माता अपने बच्चे को दूध पिलाकर उनका पालन पोषण करती हैं, ठीक उसी तरह गौ माता भी मनुष्यों का पालन पोषण और रक्षा करती हैं।
यह व्रत रखने से सभी मानसिक और शारीरिक रोग एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, संतान और सुख-संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। हम आशा करते हैं, कि भगवान श्री कृष्ण बहुला के भांति ही, आप सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर उनकी रक्षा करें। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई, तो ऐसी ही रोचक कथाओं को जानने के लिए, बने रहिये श्री मंदिर के साथ।
Did you like this article?
जानिए कांवड़ यात्रा 2025 की तिथि, महत्व और नियम। शिव भक्त गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं, जानें इसकी पूरी जानकारी।
हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी 2025 में कब मनाई जाएगी? जानिए शुभ तिथि, चंद्रदर्शन मुहूर्त, हेरम्ब गणेश की पूजा विधि, व्रत कथा और इस पर्व का धार्मिक महत्व।
2025 में महा संकष्टी चतुर्थी कब मनाई जाएगी? जानिए इसकी तिथि, चंद्रदर्शन का समय, व्रत विधि, भगवान गणेश की पूजा से जुड़ी मान्यताएं और व्रत कथा का महत्व।