बहुला चतुर्थी 2025: तिथि, व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व
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बहुला चतुर्थी 2025: तिथि, व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व

बहुला चतुर्थी हिन्दू धर्म में गौ माता की पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जो विशेषकर श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। 2025 में यह व्रत कब है, कैसे मनाया जाता है, क्या करना चाहिए और कौन-से नियमों का पालन करना होता है

बहुला चतुर्थी के बारे में

बहुला चतुर्थी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन विशेष रूप से गाय की पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखकर संतान की सुख-समृद्धि और पारिवारिक कल्याण की कामना करती हैं

कब है बहुला चतुर्थी? जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

हिंदू धर्म में पशुओं को भी पूजनीय स्थान दिया गया है, खास तौर पर गाय की पूजा को शास्त्रों में बेहद शुभ माना गया है। गौ माता को समर्पित, बहुला चतुर्थी के पर्व पर इस लेख में हम जानेंगे कि बहुला चतुर्थी कब है और इसका महत्व क्या है?

बहुला चतुर्थी 2025 का शुभ मुहूर्त व तिथि

बहुला चतुर्थी (बोल चौथ) 12 अगस्त, 2025, मंगलवार को (भाद्रपद, कृष्ण पक्ष तृतीया)

  • गोधुली पूजा मुहूर्त - 06:50 पी एम से 07:16 पी एम
  • अवधि - 00 घण्टे 26 मिनट्स
  • बोल चौथ के दिन चन्द्रोदय - 08:59 पी एम
  • चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 12, 2025 को 08:40 ए एम बजे से
  • चतुर्थी तिथि समाप्त - अगस्त 13, 2025 को 06:35 ए एम बजे तक

चलिए जानते हैं इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:23 ए एम से 05:06 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:44 ए एम से 05:49 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:59 ए एम से 12:52 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:38 पी एम से 03:31 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

07:03 पी एम से 07:25 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

07:03 पी एम से 08:08 पी एम तक

सर्वार्थ सिद्धि योग

11:52 ए एम से 05:49 ए एम, 13 अगस्त तक

निशिता मुहूर्त

12:05 ए एम, अगस्त 13 से 12:48 ए एम, 13 अगस्त तक

क्या है बहुला चौथ? क्यों मनाते हैं बहुला चतुर्थी?

  • बहुला चौथ, जिसे बहुला चतुर्थी भी कहते हैं, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
  • यह पर्व विशेष रूप से गाय की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दिन बहुला नामक एक पवित्र और धार्मिक गाय की कथा और पूजा के माध्यम से गौमाता की महिमा का गुणगान किया जाता है।
  • यह व्रत व्यक्ति को पुण्य, धार्मिक लाभ, और पशुधन की रक्षा प्रदान करता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है।

बहुला चतुर्थी का महत्व

  • यह पर्व गौ माता की महिमा को दर्शाता है।
  • इस दिन व्रत करने से पशुधन की वृद्धि और रोग-मुक्ति का आशीर्वाद मिलता है।
  • महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं।
  • यह पर्व हमें त्याग, करुणा और धर्मपालन की प्रेरणा देता है।
  • यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि वे स्वयं गौसेवा में रत रहते थे।

बहुला चतुर्थी पर किसकी पूजा होती है?

  • इस दिन मुख्य रूप से गौ माता की पूजा की जाती है।
  • साथ ही बहुला गाय की कथा सुनना अनिवार्य होता है।
  • कुछ स्थानों पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी गौमाता के साथ की जाती है।
  • पूजा में गाय को स्नान कराकर हल्दी, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप आदि अर्पित किए जाते हैं।
  • उन्हें मिठाई, चारा, हरा घास और फल अर्पित किए जाते हैं। =

बहुला चतुर्थी कहाँ मनाई जाती है?

  • यह पर्व विशेष रूप से गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर भारत के कुछ भागों में मनाया जाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में इसे बहुत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।
  • कई स्थानों पर गायों की झांकियां, विशेष गौपूजन आयोजन और बहुला गाय की कथा का वाचन होता है।
  • वृंदावन और मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों पर भी यह पर्व भक्तिभाव से मनाया जाता है।

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, शुद्ध वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
  • घर के मंदिर को स्वच्छ करके वहां भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • यदि घर या आस-पास गाय-बछड़े हों, तो उन्हें भी स्नान कराएं और ससम्मान पूजा स्थल के समीप लाएं।
  • भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता पर गंगाजल का छिड़काव करें।
  • उन्हें तिलक करें, पुष्प, धूप, दीप, कपूर, अक्षत, रोली, नैवेद्य व मिष्ठान्न अर्पित करें।
  • पूजा के दौरान 'गोवत्स द्वादशी' या 'बहुला गाय' की कथा अवश्य सुनें या सुनाएं।
  • आरती करें और परिवारजनों में प्रसाद वितरण करें।
  • शाम के समय गोधूलि बेला में गायों को हरा चारा खिलाएं और उनका पूजन करें।
  • दिनभर व्रत रखें और भगवान व गौमाता का मन ही मन स्मरण करें।

  • व्रती गेहूं से बनी चीजें न खाएं।
  • चाकू का प्रयोग न करें।
  • दिन भर सात्विक आहार या फलाहार से व्रत पूरा करें।
  • जितना हो सके, गायों की सेवा करें, उन्हें स्नेहपूर्वक स्पर्श करें।

बहुला चतुर्थी के धार्मिक अनुष्ठान

  • गौ माता की पूजा करना इस दिन का मुख्य अनुष्ठान है।
  • कुछ स्थानों पर गौवंश की झांकी सजाई जाती है और धार्मिक शोभायात्रा निकाली जाती है।
  • बहुला चतुर्थी के दिन गौ ग्रास देना, गायों को हरा चारा या गुड़-चना खिलाना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
  • गायों को पैर से नहीं मारना, उन पर क्रोध नहीं करना और उनकी सेवा करना इस दिन का धर्म है।
  • यदि कोई परिवार पशुपालक है तो वे इस दिन अपने समस्त पशुधन का पूजन करके उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
  • यह दिन गौ दान, भोजन दान, और धर्म-कर्म जैसे कार्यों के लिए अत्यंत शुभ होता है।
  • यह पूजा न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि यह हमें प्रकृति, पशुधन और भारतीय संस्कृति से जुड़ने का अवसर भी देती है।

बहुला चतुर्थी पूजा के दौरान किन बातों का ध्यान रखें?

  • पूजा से पहले शरीर और मन दोनों की शुद्धता आवश्यक है – ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
  • पूजा स्थान की सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  • गौ माता और उनके बछड़े को कोई कष्ट न पहुंचे, यह विशेष रूप से सुनिश्चित करें।
  • व्रती पूरे दिन सात्विकता और संयम का पालन करें – क्रोध, कटु वाणी और विवादों से बचें।
  • पूजा के दौरान चाकू या लोहे की वस्तुओं का प्रयोग वर्जित होता है।
  • गेहूं या उससे बनी किसी भी वस्तु का सेवन न करें।
  • पूजा में गंगाजल, ताजे फूल, दीप, धूप, अक्षत, रोली, तिलक और नैवेद्य आदि का ही प्रयोग करें।
  • गोधूलि बेला में पुनः गायों की पूजा करें और उन्हें हरा चारा या गुड़-चना खिलाएं।
  • यदि कथा का आयोजन हो रहा हो तो श्रद्धा से बहुला चतुर्थी व्रत कथा भी अवश्य सुनें या सुनाएं।

बहुला चतुर्थी मनाने के लाभ क्या हैं?

  • यह व्रत गौ माता की कृपा प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है।
  • व्रती को श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति में दया, सेवा और करूणा जैसे भावों का विकास होता है।
  • मान्यता है कि इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति, संतान सुख और समृद्धि बनी रहती है।
  • जिन लोगों की कुंडली में गौ हत्या या पशु-पाप का दोष होता है, उन्हें इस दिन विशेष रूप से प्रायश्चित रूप में यह व्रत करना चाहिए।
  • यह व्रत पशुपालन करने वालों के लिए भी गोधन की वृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।

बहुला चतुर्थी के दिन क्या-क्या करना चाहिए?

  • प्रातःकाल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  • गाय और बछड़े को स्नान करवाकर पूजा स्थल पर लाएं या घर के मंदिर में उनकी मूर्ति स्थापित करें।
  • भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की पूजा करें, नैवेद्य अर्पित करें और आरती करें।
  • गौ माता को हरा चारा, गुड़, या चना खिलाएं।
  • पूरे दिन सात्विक आहार या फलाहार पर रहें, संयम और श्रद्धा बनाए रखें।
  • गोधूलि बेला में पुनः पूजा करें और गायों को स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें।
  • यदि संभव हो तो गौशाला में दान या सेवा करें।
  • व्रत कथा का श्रवण करें और दूसरों को भी सुनाएं।

बहुला चतुर्थी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  • गाय या अन्य किसी पशु को चोट, कष्ट या अपशब्द न कहें।
  • मांसाहार, शराब, लहसुन-प्याज, तामसिक भोजन से पूर्ण परहेज रखें।
  • चाकू या लोहे के बर्तन का प्रयोग पूजा या भोग में न करें।
  • गेहूं या उससे बने पदार्थ न खाएं।
  • क्रोध, कटु शब्दों का प्रयोग, झूठ या छल-कपट जैसे व्यवहार से बचें।
  • घर या बाहर गायों को लात न मारें, उन्हें अनदेखा न करें – इस दिन उनका विशेष सम्मान करें।
  • पूजा अधूरी या बिना विधिपूर्वक किए छोड़ना उचित नहीं है।

अब हम आपको इसके महत्व से संबंधित जानकारी देंगे और बताएंगे कि क्यों यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बहुला चतुर्थी के दिन गौ माता की पूजा विशेष रूप से की जाती है। हमारे हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र जीव माना गया है और ऐसी मान्यता है, कि जो व्यक्ति गौ माता की सच्चे मन से सेवा व पूजा करता ,है उस पर आने वाली सभी प्रकार के कष्टों को गौ माता हर लेती हैं। गाय से मिलने वाला दूध और यहां तक की उसका गोबर भी बेहद लाभकारी माना गया है।

श्रीकृष्ण और गौमाता की पूजा का है विशेष महत्व

यह त्यौहार विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है और इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गौमाता का पूजन भी किया जाता है। इस दिन, विशेष रूप से विवाहित स्त्रियां, नहा-धोकर पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से, बहुला चतुर्थी व्रत की आराधना आरम्भ करती हैं और इस व्रत को विधि पूर्वक पूर्ण करती हैं।

अंत में, आरती करने के बाद, भगवान का आशीष प्राप्त कर अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। इस व्रत को रखने से, सभी तनाव व कष्टों से मुक्ति मिलती है और संतान, व सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव के पूरे परिवार की भी होती है पूजा

कुछ जगहों पर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन महिलाएं, अपने बच्चों की खुशहाली, लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुम्हार की मिट्टी से बने हुए, भगवान शिव और माता पार्वती, कार्तिकेय जी, भगवान गणेश और गौ माता की प्रतिमा बनवाकर पूरे विधि विधान के साथ, पूजा-अर्चना भी करती हैं।

जानिए क्या है बहुला चतुर्थी पर्व की कथा

बहुला चतुर्थी के अवसर पर हम सभी पशुओं के प्रति अपने प्रेम और कृतज्ञता की भावना को प्रकट करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहुला चतुर्थी का पर्व क्यों मनाया जाता हैं और इस पर्व को मनाने की प्रथा किस प्रकार शुरू हुई? इससे संबंधित गाय और शेर की कहानी बेहद प्रचलित है, आज हम आपको इसी कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।

एक बार नंद बाबा की गौशाला में श्रीकृष्ण जी को बहुला नामक एक गाय से बेहद लगाव हो जाता है। उस गाय का छोटा बछड़ा भी गौशाला में उसके साथ रहता था। श्री कृष्ण अपना अधिकतर समय इसी बहुला नामक गाय के साथ ही बिताते थे।

एक दिन भगवान कृष्ण बहुला की परीक्षा लेने के लिए शेर का रूप धारण करते हैं और उसका शिकार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। तभी बहुला प्रार्थना करते हुए कहती है कि, "आप अभी मेरा शिकार न करें, मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है, मुझे उसे दूध पिलाना है। मैं उसे दूध पिलाकर वापस लौट कर आउंगी, तब आप मेरा शिकार कर लेना।”

ऐसा कहकर, वह बहुत मुश्किल से वापस घर आने की अनुमति लेती है। नन्द जी की गौशाला आने के बाद बहुला अपने बछड़े को खूब प्यार दुलार कर करती है और फिर दूध पिलाकर वापस उसी शेर के पास चली जाती है। अपने वचन के मुताबिक वह शेर से कहती है, कि "अब मेरा शिकार करके, आप अपनी भूख मिटा लो।”

तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आकर बहुला से कहते हैं, कि "बहुला, आज तुम अपनी इस परीक्षा में सफल हुई। मैं तुम्हें वचन देता हूं, कि भादों की कृष्ण चतुर्थी, बहुला चतुर्थी के रूप में जानी जाएगी और इस दिन लोग तुम्हारी पूजा-अर्चना एक माता के रूप में करेंगे।

तभी से जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं, और साथ ही उसे सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है। इस दिन, गौ माता की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना की जाती है। क्योंकि जिस प्रकार माता अपने बच्चे को दूध पिलाकर उनका पालन पोषण करती हैं, ठीक उसी तरह गौ माता भी मनुष्यों का पालन पोषण और रक्षा करती हैं।

यह व्रत रखने से सभी मानसिक और शारीरिक रोग एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, संतान और सुख-संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। हम आशा करते हैं, कि भगवान श्री कृष्ण बहुला के भांति ही, आप सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर उनकी रक्षा करें। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई, तो ऐसी ही रोचक कथाओं को जानने के लिए, बने रहिये श्री मंदिर के साथ।

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Published by Sri Mandir·August 1, 2025

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