क्या आप जीवन में शक्ति, सौभाग्य और दिव्यता की कामना करते हैं? मीनाक्षी स्तुति से पाएं देवी मीनाक्षी का आशीर्वाद – जानिए इसका पाठ और चमत्कारी लाभ।
मीनाक्षी स्तुति देवी मीनाक्षी को समर्पित एक पावन स्तुति है, जो शक्ति, सौंदर्य और करुणा की प्रतीक हैं। इस स्तुति के माध्यम से भक्त उन्हें नमन करते हैं और जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि तथा शांति की कामना करते हैं।
मीनाक्षी माता हिंदू धर्म में देवी पार्वती का एक विशेष रूप मानी जाती हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु के मदुरै शहर में बड़े भाव और श्रद्धा के साथ की जाती है। वे मीनाक्षी अम्मन मंदिर की मुख्य देवी हैं, जो मदुरै में स्थित है। यह मंदिर भारत के सबसे सुंदर, प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मीनाक्षी माता को मदुरै की रक्षक देवी माना जाता है।
उन्हें एक शक्तिशाली और करुणामयी माता के रूप में पूजा जाता है। वे भगवान शिव के सुंदर रूप सुंदरेश्वर की पत्नी हैं, और भगवान विष्णु के अवतार अघगर की बहन भी मानी जाती हैं। माना जाता है कि जो लोग सच्चे मन से मीनाक्षी माता की पूजा करते हैं, उन्हें शक्ति, बुद्धि, साहस और पारिवारिक सुख प्राप्त होता है।
अद्राक्षं बहुभाग्यतो गुरुवरैः सम्पूज्यमानां मुदा
पुल्लन्मल्लिमुखप्रसूननिवहैर्हालास्यनाथप्रियाम् ।
वीणावेणुमृदङ्गवाद्यमुदितामेणाङ्क बिम्बाननां
काणादादिसमस्तशास्त्रमतिताम् शोणाधरां श्यामलाम् ॥
मातङ्गकुम्भविजयीस्तनभारभुग्न
मध्यां मदारुणविलोचनवश्यकान्ताम् ।
ताम्राधरस्फुरितहासविधूततार
राजप्रवालसुषुमां भज मीननेत्राम् ॥
आपादमस्तकदयारसपूरपूर्णां
शापायुधोत्तमसमर्चितपादपद्माम् ।
चापयितेक्षुममलीमसचित्ततायै
नीपाटविविहर्णां भज मीननेत्रम् ॥
कन्दर्प वैर्यपि यया सविलास हास
नेत्रावलोकन वशीकृत मानसोऽभूत् ।
तां सर्वदा सकल मोहन रूप वेषां
मोहान्धकार हरणां भज मीननेत्राम् ॥
अद्यापि यत्पुरगतः सकलोऽपि जन्तुः
क्षुत्तृड् व्यथा विरहितः प्रसुवेव बालः ।
सम्पोश्यते करुणया भजकार्ति हन्त्रीं
भक्त्याऽन्वहं तां हृदय भज मीननेत्राम् ॥
हालास्यनाथ दयिते करुणा पयोधे
बालं विलोल मनसं करुणैक पात्रम् ।
वीक्षस्व मां लघु दयार्मिल दृष्टपादैर्-
मातर्न मेऽस्ति भुवने गतिरन्द्रा त्वम् ॥
श्रुत्युक्त कर्म निवहाकरणाद्विशुद्धिः
चित्तस्य नास्ति मम चञ्चलता निवृत्तैः ।
कुर्यां किमम्ब मनसा सकलाघ शान्त्यैः
मातस्तवदङ्घ्रि भजनं सततं दयस्व ॥
त्वद्रूपदेशिकवरैः सततं विभाव्यं
चिद्रूपमादि निधनन्तर हीनमम्ब ।
भद्रावहं प्रणमतां सकलाघ हन्तृ
त्वद्रूपमेव मम हृत्कमले विभातु ॥
॥ इति श्री जगद्गुरु शृङ्गगिरि चन्द्रशेखरभारतिस्वामिगळ् विरचितं मीनाक्षीस्तुतिः सम्पूर्णम् ॥
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