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संतान गोपाल स्तोत्रम् | Santan Gopal Stotram

क्या आप संतान गोपाल स्तोत्रम् के महत्व और इसके पाठ से प्राप्त होने वाले फल के बारे में जानना चाहते हैं? यह दिव्य स्तोत्र संतान सुख की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। यहाँ पढ़ें संतान गोपाल स्तोत्र से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी सरल शब्दों में।

संतान गोपाल स्तोत्रम् के बारे में

संतान गोपाल स्तोत्रम् भगवान श्रीकृष्ण के संतान गोपाल स्वरूप की स्तुति में रचित एक पवित्र स्तोत्र है। इसका पाठ विशेष रूप से संतान प्राप्ति, गर्भ-सुरक्षा और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है। श्रद्धा और विश्वास से इसका जप करने पर माता-पिता को मानसिक शांति, आशा और दिव्य आशीर्वाद मिलता है।

संतान गोपाल स्तोत्र (Santan Gopal Stotra)

संतान गोपाल स्तोत्र भगवान कृष्ण को समर्पित स्त्रोत है। संतान प्राप्ति के लिए इस स्त्रोत का पाठ किया जाता है। इस स्त्रोत के नियमित पाठ से सुयोग्य संतान की प्राप्त होती है। यदि किसी दंपत्ति को संतान प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों उन्हें स्त्रोत का पाठ जरूर करना चाहिए। यह शक्तिशाली स्त्रोत यदि नियमित रूप से किया जाए तो यह कभी भी निष्फल नहीं होता है।

संतान गोपाल स्तोत्र का महत्व

संतान गोपाल स्तोत्र संतान प्राप्ति हेतु बहुत अधिक महत्त्व रखता है। ऐसे दंपत्ति जिनकी शादी हो गयी हो लेकिन कई वर्ष होने के बाद भी कोई संतान नहीं हो पा रही हो। यहाँ तक कि डॉक्टर के पास जाने पर भी कोई फायदा नहीं हो रहा हो। वह हर कोशिश करके परेशान हो गए हों। तो उन्हें इस स्त्रोत का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। यह स्त्रोत बहुत फलदायी रहता है।

संतान गोपाल स्तोत्र पढ़ने के फायदे

यह स्त्रोत बहुत ही प्रभावशाली स्त्रोत है। निःसंतान दम्पति को इस स्त्रोत का नित्य पाठ करना बहुत ही फलदायी सिद्ध होता है। इसे करने से संतान की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए जो भी बाधाएं आ रही है वह भी दूर हो जाती है। साथ ही मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। यदि कोई दम्पति इस स्त्रोत का पाठ नियमित रूप से करते हैं तो उस दंपत्ति की संतान पर कोई भी बुरी शक्ति नहीं आती है। यह स्त्रोत संतान के भविष्य को उज्जवल बनाने में मदद करता है। विद्या और करियर में आने वाली परेशानियां भी दूर हो जाती है।

संतान गोपाल स्तोत्र

श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् ।

सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥1॥

नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम् ।

यशोदांकगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥2॥

अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।

नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥3॥

गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् ।

पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुंगवम् ॥4॥

पुत्रकामेष्टिफलदं कंजाक्षं कमलापतिम् ।

देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥5॥

पद्मापते पद्मनेत्र पद्मनाभ जनार्दन ।

देहि में तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥6॥

यशोदांकगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।

अस्माकं पुत्रलाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥7॥

श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिहरणाच्युत ।

गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन॥8॥

भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद ।

देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥9॥

रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।

भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गत: ॥10॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:॥11॥

वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:॥12॥

कंजाक्ष कमलानाथ परकारुरुणिकोत्तम ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:॥13॥

लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥14॥

कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा ।

नमामि पुत्रलाभार्थं सुखदाय बुधाय ते ॥15॥

राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे ।

तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे॥16॥

अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ॥17॥

श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक ।

देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥18॥

अस्माकं पुत्रसम्प्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन ।

रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ॥19॥

वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव ।

पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो ॥20॥

डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव ।

भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ॥21॥

नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।

कमलानाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ॥22॥

अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।

सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ॥23॥

यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनम् ।

वन्देsहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ॥24॥

नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो ।

रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ॥25॥

पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव।

अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ॥ 26॥

गोपालडिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते ।

अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ॥27॥

मद्वांछितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत ।

मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ॥28॥

याचेsहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसम्पदम्।

भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ॥29॥

आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् ।

अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ॥30॥

वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् ।

अस्माकं पुत्रसम्प्राप्त्यै सदा गोविन्दच्युतम् ॥31॥

ऊँकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् ।

कलींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ॥32॥

वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत ।

देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ॥33॥

राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो ।

समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ॥34॥

अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते ।

देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ॥35॥

नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन ।

देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥36॥

दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत ।

गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ॥37॥

यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत ।

देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ॥38॥

अस्माकं वांछितं देहि देहि पुत्रं रमापते ।

भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ॥39॥

रमाहृदयसम्भार सत्यभामामन:प्रिय ।

देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥40॥

चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव ।

अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ॥41॥

कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित ।

देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ॥42॥

देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते ।

समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ॥43॥

भक्तमन्दार गम्भीर शंकराच्युत माधव ।

देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ॥44॥

श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन ।

भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो ॥45॥

जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे ।

वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ॥46॥

श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:॥47॥

दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥48॥

गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥49॥

श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन ।

मत्पुत्रफलसिद्धयर्थं भजामि त्वां जनार्दन ॥50॥

स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखाम्बुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलांगम् ।

स्पृशन्तमन्यस्तनमंगुलीभि- र्वन्दे यशोदांकगतं मुकुन्दम् ॥51॥

याचेsहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥52॥

अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते ।

शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित ॥53॥

वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम ।

कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित ॥54॥

कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दन ।

मह्यं च पुत्रसंतानं दातव्यं भवता हरे ॥55॥

वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत ।

देहि मे तनयं राम कौसल्याप्रियनन्दन ॥56॥

पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव ।

देहि मे तनयं सीताप्राणनायक राघव ॥57॥

कंजाक्ष कृष्ण देवेन्द्रमण्डित मुनिवन्दित ।

लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा ॥58॥

देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन ।

सीतानायक कंजाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद ॥59॥

विभीषणस्य या लंका प्रदत्ता भवता पुरा ।

अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव ॥60॥

भवदीयपदाम्भोजे चिन्तयामि निरन्तरम् ।

देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव ॥61॥

राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद ।

देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित ॥62॥

राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे ।

भाग्यवत्पुत्रसंतानं दशरथात्मज श्रीपते ॥63॥

देवकीगर्भसंजात यशोदाप्रियनन्दन ।

देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव ॥64॥

कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शंकर ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥65॥

गोपबालमहाधन्य गोविन्दाच्युत माधव ।

देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥66॥

दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोsयं दिशतु दिशतु शीघ्रं भाग्यवत्पुत्रलाभम् ।

दिशति दिशतु श्रीशो राघवो रामचन्द्रो दिशतु दिशतु पुत्रं वंशविस्तारहेतो: ॥67॥

दीयतां वासुदेवेन तनयो मत्प्रिय: सुत: ।

कुमारो नन्दन: सीतानायकेन सदा मम ॥68॥

राम राघव गोविन्द देवकीसुत माधव ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥69॥

वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गत:॥ 70॥

ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गत: ॥71॥

चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गत: ॥72॥

विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा ।

देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो ॥73॥

नमामि त्वां पद्मनेत्र सुतलाभाय कामदम् ।

मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम् ॥74॥

भगवन कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद ।

देहि मे तनयं स्वामिंस्त्वामहं शरणं गत: ॥75॥

स्वामिंस्त्वं भगवन् राम कृष्ण माधव कामद ।

देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गत:॥ 76॥

तनयं देहि गोविन्द कंजाक्ष कमलापते ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गत: ॥77॥

पद्मापते पद्मनेत्र प्रद्युम्नजनक प्रभो ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गत:॥ 78॥

शंखचक्रगदाखड्गशांर्गपाणे रमापते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥79॥

नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन ।

सुतं मे देहि देवेश पद्मपद्मानुवन्दित ॥80॥

राम राघव गोविन्द देवकीवरनन्दन ।

रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुरार्चित ॥81॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥82॥

मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥83॥

गोपिकार्जितपंकेजमरन्दासक्तमानस ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥84॥

रमाहृदयपंकेजलोल माधव कामद ।

ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गत: ॥85॥

वासुदेव रमानाथ दासानां मंगलप्रद ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:॥ 86॥

कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥87॥

पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥88॥

पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥89॥

दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥90॥

पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम् ।

वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्रलाभप्रदायिनम् ॥91॥

कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये ।

नमस्ते पुत्रलाभार्थं देहि मे तनयं विभो ॥92॥

नमस्तस्मै रमेशाय रुक्मिणीवल्लभाय ते ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥93॥

नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च ।

पुत्रदाय च सर्पेन्द्रशायिने रंगशायिने ॥94॥

रंगशायिन् रमानाथ मंगलप्रद माधव ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥95॥

दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव ।

सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते॥ 96॥

यशोदातनयाभीष्टपुत्रदानरत: सदा ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:॥97॥

मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥98॥

नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजायते ।

भगवंस्त्वत्कृपायाश्च वासुदेवेन्द्रपूजित ॥99॥

य: पठेत् पुत्रशतकं सोsपि सत्पुत्रवान् भवेत् ।

श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च ॥100॥

जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम् ।

ऎश्वर्यं राजसम्मानं सद्यो याति न संशय: ॥101॥

॥ इति सन्तानगोपालस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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Published by Sri Mandir·November 19, 2025

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