हिंदू धर्म में पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं, एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अवधि है। यह 16 दिनों का एक ऐसा काल होता है, जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस पूरे पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या है। यह दिन न केवल पितृ पक्ष का समापन करता है, बल्कि यह उन सभी पितरों को श्रद्धांजलि देने का एक अनमोल अवसर भी प्रदान करता है, जिनका श्राद्ध किसी कारणवश उनकी तिथि पर नहीं हो पाया।
यह मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा दिए गए श्राद्ध और तर्पण से संतुष्ट होकर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
वर्ष 2025 में, पितृ पक्ष का समापन रविवार, 21 सितंबर 2025 को होगा। इसी दिन सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाएगी। यह दिन अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पड़ता है।
यह तिथि ‘महालय अमावस्या‘ के नाम से भी जानी जाती है।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व अन्य श्राद्ध तिथियों से कहीं अधिक माना जाता है। इसके पीछे कई विशेष कारण हैं:
सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध विधि का पालन पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ किया जाना चाहिए।
1. ब्रह्म मुहूर्त में उठें: सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्नान के लिए किसी पवित्र नदी में जाना बहुत शुभ माना जाता है, लेकिन घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है।
2. पवित्रता और तैयारी: साफ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थान को साफ करें। श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री जैसे तिल, अक्षत (चावल), दूर्वा, फूल, जौ, गाय का दूध, घी, शहद, गंगाजल और सेंधा नमक पहले से एकत्र कर लें।
3. तर्पण (जल अर्पित करना): पूजा स्थान पर बैठकर पूर्वजों का ध्यान करें। हाथ में जल, तिल और फूल लेकर ‘ॐ अद्य अमुक गोत्रं अमुक शर्मणः (पूर्वज का नाम) प्रेताय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए तर्पण करें। यह क्रिया पितरों को जल अर्पित करने के लिए होती है।
4. पिंडदान: आटे, चावल या जौ को दूध, शहद और घी के साथ मिलाकर पिंड बनाएँ। इन पिंडों को पितरों के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इन्हें एक-एक करके अर्पित करें।
5. ब्राह्मण भोजन: श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को भोजन कराना एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह माना जाता है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों को भोजन प्राप्त होता है। एक या तीन ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित करें। भोजन में पूरी, खीर, कचौड़ी, दाल, सब्जी, और मिठाई जैसी सात्विक वस्तुएं शामिल करें। भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को दक्षिणा और वस्त्र भेंट करें।
6. कौवे, गाय और कुत्ते को भोजन: शास्त्रों के अनुसार, कौवों को पितरों का प्रतीक माना जाता है। ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले, उसी भोजन का एक हिस्सा कौवे, गाय और कुत्ते को खिलाएँ।
सर्वपितृ अमावस्या पर कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है:
क्या करें
क्या न करें
सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं:
सर्वपितृ अमावस्या का दिन हमें अपने पूर्वजों के प्रति अपने कर्तव्यों का स्मरण कराता है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और हमें यह सिखाता है कि हम अपने पूर्वजों के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते। सच्चे मन और श्रद्धा से किया गया श्राद्ध, हमें और हमारे परिवार को पितरों के आशीर्वाद से धन्य करता है।
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