जानिए महा भरणी श्राद्ध कैसे करें और इसका धार्मिक महत्व
महा भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष में आने वाली भरणी नक्षत्र की तिथि पर किया जाता है। इसे अत्यंत शुभ और विशेष श्राद्ध माना गया है। इस दिन पिंडदान, तर्पण और दान से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
महा भरणी श्राद्ध, हिंदू कैलेंडर के आश्विन महीने में पितृ पक्ष के दौरान भरणी नक्षत्र शुरू होते ही किया जाने वाला एक श्राद्ध है। यह श्राद्ध आम तौर पर चतुर्थी या पंचमी को किया जाता है। भरणी नक्षत्र में किए गए श्राद्ध से यम प्रसन्न होते हैं और पितरों पर उनकी कृपा बनी रहती है।
ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध से वही लाभ मिलते हैं जो बिहार के बोधगया में अनुष्ठान करने के बाद मिलते हैं।
परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु के एक वर्ष बाद भरणी श्राद्ध करना जरूरी होता है। जो लोग अविवाहित मरते हैं उनका श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है और उस दिन भरणी नक्षत्र हो तो और भी अच्छा होता है। इसके अलावा जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में तीर्थ यात्रा नहीं करता है उसे गया, पुष्कर आदि स्थानों पर भरणी श्राद्ध करना पड़ता है, ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
वेदों और पुराणों में भरणी नक्षत्र को विशेष महत्व दिया गया है। माना जाता है कि इस नक्षत्र में किए गए श्राद्ध का फल बहुत अधिक होता है। हिंदू धर्म में पितृ ऋण का बहुत महत्व होता है। महा भरणी श्राद्ध के माध्यम से हम अपने पितरों के ऋण से मुक्त होने का प्रयास करते हैं। महा भरणी श्राद्ध के माध्यम से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है
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