जानें संकल्प लेने की विधि, महत्व
जय माता दी दोस्तों। इस लेख में हम आपके लिए लेकर आए हैं नवरात्रि पूजन के संकल्प से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। साथ ही हम आपको यह भी बताएँगे कि नवरात्रि के प्रथम दिन माँ की पूजा का संकल्प कैसे और क्यों लें। इसके अलावा पूजा के प्रारंभ से पहले संकल्प की विधि और मंत्र से जुड़ी जानकारी जानने के लिए आप अंत तक इस लेख को अवश्य पढ़ें और नवरात्रि की पूजा के संकल्प को पूरा करें, ताकि माँ दुर्गा की कृपा आप पर बनी रहे और आपकी सभी मनोकामनाएं मातारानी पूर्ण करें।
शास्त्रों के अनुसार किसी भी प्रकार के पूजन या व्रत से पहले संकल्प लेना बेहद महत्वपूर्ण और लाभकारी होता है। जिसका अर्थ यह है कि आप अपने इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर यह पूजन कार्य विभिन्न इच्छाओं की कामना पूर्ति के लिए कर रहे हैं, और इस पूजन को पूर्ण अवश्य करेंगे। अगर कोई भी श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव के साथ नवरात्र की पूजा और व्रत का संकल्प लेता है तो उन्हें इसका फल जरूर मिलता है।
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के 9 दिनों की पूजा-पाठ और व्रत को संकल्प लेते हुए मंत्रों में बांधना होता है। संकल्प लेने का सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण नियम यह है कि यदि आपने पूजा का संकल्प लिया है तो आपको वह पूजा पूर्ण करनी चाहिए और विधि-विधान से उसका समापन करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि संकल्प के बिना पूजा अधूरी होती है और उसका सारा फल इंद्रदेव को मिल जाता है।
नवरात्र में 9 दिनों तक व्रत रखने वाले देवी माँ के भक्तों को निम्नलिखित मंत्र के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए: संकल्प लेते समय हाथ में जल, चावल, फल और श्रद्धा के अनुसार कुछ दक्षिणा लें। इसके बाद श्रीगणेश की प्रतिमा को सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाएं। साथ ही इस संकल्प के गवाह (साक्षी) स्वयं गौरी पुत्र गणेश, सभी ग्रह, अग्नि, सभी दिशाएं, लोकपाल और दिग्पाल बनते हैं और संकल्प को सिद्ध करने और उसे पूरा करने के लिए अदृश्य रूप में सहायक भी बनते हैं। अब इस मंत्र के साथ लें पूजा का संकल्प।
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
नोट - ध्यान रखें, मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। इस मंत्र में कई जगह अमुक शब्द आया है। जैसे अमुकनामसम्वत्सरे, यहाँ पर आप अमुक की जगह संवत्सर का नाम उच्चारित करेंगे। ठीक ऐसे ही अमुकवासरे में उस दिन का नाम, अमुकगोत्रः में अपने गोत्र का नाम और अमुकनामाहं में अपना नाम उच्चारित करें।
यदि नवरात्र के पहले, दूसरे, तीसरे आदि दिनों के लिए उपवास रखा जाए, तब ऐसी स्थिति में ‘एतासु नवतिथिषु’ की जगह उस तिथि के नाम के साथ संकल्प किया जाएगा जिस तिथि को उपवास रखा जा रहा है। जैसे यदि सातवें दिन का संकल्प करना है, तो मंत्र इस प्रकार होगा।
यदि नवरात्रि के दौरान षोडशोपचार पूजा करना हो तो नीचे दिए गए मंत्र से प्रतिदिन पूजा का संकल्प करें।
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे नवरात्रपर्वणि अखिलपापक्षयपूर्वकश्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये अमुकगोत्रः अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः षोडशोपचार-पूजनं विधास्ये।
नवरात्रि की पूजा को पूरे विधि-विधान से करने के लिए पूजा से पहले संकल्प लेना अनिवार्य होता है। संकल्प के माध्यम से माँ के प्रति भक्तों का समर्पण और विश्वास मजबूत होता है और मनवांछित इच्छाओं की पूर्ति होती है।
पूजा का पूर्ण फल पाने एवं माँ को प्रसन्न करने के लिए आप भी पूजा का संकल्प जरूर लें, ताकि आपको भी माँ का विशेष आशीष प्राप्त हो और आपकी समस्त मनोकामनाएं पूरी हो।
तो भक्तों, इस लेख में आपने जाना कि नवरात्रि में संकल्प कैसे लें। हम आशा करते हैं कि यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। नवरात्रि से जुड़े अन्य लेख पढ़ने के लिए श्रीमंदिर के साथ बने रहे।
जय माता दी
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