क्या आप जानते हैं माता दुर्गा के पति कौन हैं? जानिए उनके संबंध, महत्व और धार्मिक मान्यता आसान हिंदी में।
माता दुर्गा का कोई प्रत्यक्ष पति नहीं माना जाता, वे शक्ति स्वरूपा और आदिशक्ति हैं। किंतु पौराणिक मान्यताओं में उन्हें भगवान शिव की अर्धांगिनी पार्वती का रूप भी माना जाता है। इस कारण से दुर्गा और शिव का दिव्य संबंध बताया गया है।
हिन्दू धर्म में माता दुर्गा शक्ति, साहस और भक्ति की सर्वोच्च प्रतीक मानी जाती हैं। वे आदि शक्ति, जगदम्बा, शेरावाली, अम्बे, चामुंडा, महिषासुर मर्दिनी और अनेक नामों से पूजी जाती हैं। माता दुर्गा को ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और संहार की ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। वे केवल देवी ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि की आधारशिला हैं। उनके विभिन्न रूप भक्तों को साहस, ज्ञान, शांति और शक्ति प्रदान करते हैं।
देवी दुर्गा का स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजस्वी है। वे सामान्यतः दस भुजाओं या अष्टभुजाओं वाली दिखाई देती हैं। उनके प्रत्येक हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र धारण रहते हैं। उनका वाहन सिंह है, जो निर्भयता और शक्ति का प्रतीक है। उनके स्वरूप में कोमलता और उग्रता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। वे दैत्यों का संहार करने वाली और धर्म की रक्षा करने वाली देवी हैं। माता दुर्गा के नौ स्वरूप हैं।
शैलपुत्रीः शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। यह अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं तथा माता का वाहन वृषभ (बैल) है। माता शैलपुत्री को शक्ति का प्रथम स्वरूप माना जाता है, जो स्थिरता, आत्मविश्वास और धैर्य प्रदान करती हैं।
ब्रह्मचारिणीः माता ब्रह्मचारिणी तप, संयम और त्याग की प्रतीक हैं। उनके हाथों में जपमाला और कमंडल होता है। इस स्वरूप की आराधना से साधक को ज्ञान, तपस्या की शक्ति और आत्मसंयम की प्राप्ति होती है।
चंद्रघंटाः देवी के इस स्वरूप के मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटी के समान आकृति होती है, जिससे इनका नाम पड़ा।माता चंद्रघंटा का वाहन सिंह है और वे दस भुजाओं वाली हैं। यह स्वरूप शक्ति, साहस और निर्भयता का प्रतीक है।
कूष्मांडाः देवी के इस स्वरूप को सृष्टि की आदि जननी माना जाता है। मान्यता है कि देवी कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। मां के आठ हाथ हैं और अपने वाहन सिंह पर विराजे रहती हैं। इनकी पूजा से जीवन में ऊर्जा, प्रसन्नता और सृजनात्मकता आती है।
स्कंदमाताः स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं, जो उनकी गोद में बैठे रहते हैं। माता स्कंद का वाहन शेर है। इनकी पूजा से बुद्धि, शांति और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
कात्यायनीः महिषासुर का वध करने वाली देवी कात्यायनी को साहस और शक्ति का स्वरूप माना जाता है। देवी का यह स्वरूप अन्य रुपों से अलग है।
कालरात्रिः देवी का यह स्वरूप अत्यंत उग्र और भयानक है, परंतु वे सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। मा कालरात्रि का वाहन गधा होता है और उनका शरीर काजल के समान श्यामवर्णी होता है।
महागौरीः महागौरी का स्वरूप अत्यंत श्वेत और कोमल है, जो शांति, पवित्रता और करुणा का प्रतीक है। माता महागौरी की आराधना से साधक के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
सिद्धिदात्रीः देवी सिद्धियों की दात्री हैं और भक्तों को ज्ञान, सफलता और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती हैं।
देवी दुर्गा का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में अत्यंत गहरा और व्यापक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे ब्रह्मांड की पालनहार हैं, जो तीनों लोकों की रक्षा करती हैं और धर्म की स्थापना के लिए दुष्ट शक्तियों का नाश करती हैं। माना जाता है कि माँ दुर्गा भक्तों को मोक्ष प्रदान करती हैं और संसार में संतुलन बनाए रखती हैं। नवरात्रि का पर्व विशेष रूप से देवी दुर्गा और उनके नौ दिव्य स्वरूपों की आराधना के लिए मनाया जाता है। इन नौ रूपों की पूजा करने से भक्तों को जीवन में शक्ति, साहस, ज्ञान, स्वास्थ्य और शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माँ दुर्गा की उपासना का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि आत्मिक जागृति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करना भी है।
अक्सर लोग यह मानते हैं कि माता दुर्गा के पति भगवान शिव हैं, लेकिन श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। पुराणों के अनुसार, माता दुर्गा, जिन्हें अष्टांगी, भवानी, आदिमाया और शेरांवाली के नाम से भी जाना जाता है, का विवाह ब्रह्म जी से हुआ था। ब्रह्म जी को ज्योति निरंजन, क्षर पुरुष या काल भी कहा जाता है, जो 21 ब्रह्मांडों के स्वामी हैं। इसके अलवा, देवी भागवत के वर्णन के अनुसार, ब्रह्म और माता दुर्गा एक साथ निवास करते हैं, जो उनके बीच के अविभाज्य संबंध को दर्शाता है। इस तथ्य से यह स्पष्ट होता है कि माता दुर्गा की दिव्य शक्ति और ब्रह्म का संयोग सृष्टि के संचालन का मूल आधार है।
मां दुर्गा, शक्ति, साहस और भक्ति की देवी हैं। उनका स्वरूप जितना भव्य और दिव्य है, उतना ही रहस्यमय है उनका जीवन। ज्यादातर लोग मानते हैं कि भगवान शिव ही मां दुर्गा के पति हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वेद, गीता, पुराणों और रामचरितमानस जैसे प्राचीन शास्त्र कुछ और ही अद्भुत रहस्य बताते हैं। इन ग्रंथों के अनुसार, मां दुर्गा के पति भगवान शिव नहीं, बल्कि ब्रह्म हैं, जिन्हें ज्योति निरंजन या काल के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं शास्त्रों में छिपे इन रहस्यों के बारे में।
ब्रह्म (काल) हैं माता दुर्गा के पतिः श्रीमद् देवी भागवत पुराण (गीताप्रेस गोरखपुर, स्कंद 3, पृष्ठ 114-115) में स्पष्ट उल्लेख है कि माता दुर्गा (भवानी, आदिमाया) के पति ब्रह्म (ज्योति निरंजन, काल) हैं। इसमें बताया गया है कि दोनों साथ रहते हैं और उनके बीच अविभाज्य संबंध है।
त्रिदेव के भी पूर्वज हैं ब्रह्म और दुर्गाः ब्रह्म (काल) और दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के भी पूर्वज हैं। यह त्रिदेव इस भौतिक ब्रह्मांड के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन वे स्वयं शाश्वत नहीं हैं।
वेदों और गीता से प्रमाणः पवित्र श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 14, श्लोक 3-5 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्रकृति (दुर्गा) सभी प्राणियों की माता हैं और काल ब्रह्म बीज प्रदान करने वाले पिता हैं। इसका अर्थ है कि समस्त सृष्टि मां दुर्गा और काल ब्रह्म के संयोग से उत्पन्न होती है।
रामचरितमानस से प्रमाणः श्रीरामचरितमानस (बालकांड, दोहा 147, चौपाई 1) में भी वर्णन है कि आदिशक्ति (माता दुर्गा), ब्रह्म (ज्योति निरंजन) के बाएं भाग में सुशोभित रहती हैं, जो उनके पत्नी स्वरूप की पुष्टि करता है। इस प्रकार, शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट है कि मां दुर्गा के पति भगवान शिव नहीं बल्कि ब्रह्म (ज्योति निरंजन, काल) हैं। यह ज्ञान वेदों, पुराणों, गीता और रामचरितमानस जैसे प्रमाणित ग्रंथों द्वारा समर्थित है।
Did you like this article?
नवरात्रि के सातवें दिन पूजित माता कालरात्रि अंधकार और बुराई नाश की देवी मानी जाती हैं। जानिए माता कालरात्रि किसका प्रतीक हैं और उनके स्वरूप का धार्मिक महत्व।
नवरात्रि के सातवें दिन पूजित कालरात्रि माता का प्रिय रंग कौन सा है? जानिए कालरात्रि माता का पसंदीदा रंग और इसका धार्मिक व प्रतीकात्मक महत्व।
नवरात्रि के सातवें दिन पूजित माता कालरात्रि का बीज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। जानिए माता कालरात्रि का बीज मंत्र, उसका सही उच्चारण और जाप से मिलने वाले लाभ।