क्या आप जानते हैं माँ चंद्रघंटा का वाहन कौन सा है और इसका धार्मिक महत्व क्या है? यहाँ पढ़ें माँ चंद्रघंटा के वाहन सिंह के प्रतीकात्मक अर्थ और शक्ति का रहस्य।
माँ कूष्मांडा नवदुर्गा का चौथा स्वरूप हैं, जिनकी पूजा शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। मान्यता है कि माँ ने अपनी अद्भुत शक्ति और तेज से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। उनकी कृपा से भक्तों को आरोग्य, सुख-समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है। इस लेख में जानिए माँ कूष्मांडा कथा, उनका महत्व और पूजन से मिलने वाले विशेष लाभ।
नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। इनमें तीसरा स्वरूप है ‘माँ चंद्रघंटा’, जिनकी उपासना नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। शास्त्रों में मान्यता है कि उनका स्मरण और पूजन करने से जातक को साहस और भयमुक्त जीवन की प्राप्ति होती है। माता चंद्रघंटा का रूप अत्यंत अलौकिक और दिव्य है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित रहता है, जो घंटे के आकार का है, इसलिए उन्हें “चंद्रघंटा” नाम से जाना जाता है। माता चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान तेजस्वी है। उनके तीन नेत्र और दस हाथ हैं, जिनमें वे गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र जैसे अस्त्र शस्त्र धारण करती हैं।
नवरात्रि का तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित है। इस दिन की गई पूजा से जातक को माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार विधि-विधान से माता चंद्रघंटा की उपासना करने और कथा का श्रवण करने से सभी दुख - क्लेश दूर होते हैं, और घर-परिवार में सुख शांति बनी रहती है। माँ चंद्रघंटा की आराधना से जातक का अहंकार नष्ट होता है और जीवन में विजय, सौभाग्य, वैभव और मानसिक शांति का वरदान मिलता है।
माँ चंद्रघंटा का वाहन सिंह माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब महिषासुर के अत्याचार से त्रिलोक भयभीत हो गया, तब देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण में पहुँचे। देवताओं की पीड़ा सुनकर तीनों देवताओं के क्रोध से एक अद्भुत ऊर्जा उत्पन्न हुई, और उस ऊर्जा से एक शक्तिशाली देवी प्रकट हुईं। भगवान शिव ने उन्हें त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया, इंद्र ने घंटा अर्पित किया, सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, और अंत में उन्हें वाहन के रूप में सिंह की सवारी प्रदान की। इस प्रकार देवी चंद्रघंटा का अवतरण हुआ।
सिंह पर आरूढ़ होकर देवी ने युद्धभूमि में महिषासुर का वध किया और देवताओं को उनके संकट से मुक्त किया। उनके इस अद्वितीय पराक्रम से त्तीनों लोक में शांति स्थापित हुई। वाहन सिंह पर सवार माता चंद्रघंटा का यह रूप दुष्टों के लिए प्रचंड रौद्र, जबकि भक्तों के लिए करुणा और शांति का प्रतीक है।
माँ चंद्रघंटा के वाहन को केवल युद्ध का साधन न मानकर, एक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। सिंह साहस, पराक्रम और निर्भयता का प्रतीक है। माँ के हाथ में सुशोभित शस्त्र और उनके साथ सिंह का गर्जन, दोनों मिलकर दुष्ट शक्तियों के लिए विनाश का संदेश देते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि रणभूमि में जब मां के पराक्रम के साथ साथ उनके सिंह की गर्जना गूंजती थी, तो दैत्य और राक्षस भय से काँप उठते थे। माँ का यह रूप भक्तों को यह सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, लेकिन साहस और सत्य के साथ डटकर खड़े होने पर विजय निश्चित है।
नवरात्रि के तीसरे दिन प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर माँ की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। कलश स्थापना के बाद माँ चंद्रघंटा का आह्वान करें।
पूजा में धूप, दीप, पुष्प, अक्षत और गंध अर्पित करें। माता को विशेषकर सफेद या पीले फूल प्रिय माने गए हैं। भोग में दूध से बने मिष्ठान, खीर या मिश्री अर्पित करना शुभ माना जाता है।
पूजन के समय भक्त “ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः” मंत्र का जप करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। इसके बाद माँ चंद्रघंटा की आरती करें। इससे जातक को विशेष फल प्राप्त होता है।
पूजा के समय श्रद्धा और पूर्ण विश्वास का भाव रखना आवश्यक है। माना जाता है कि भक्ति-भाव से की गई आराधना से पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है, और जातक के जीवन के भय व संकट दूर हो जाते हैं।
ये थी नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली देवी ‘माँ चंद्रघंटा’ के स्वरूप के बारे में विशेष जानकारी। देवी चंद्रघंटा की उपासना से जातक को अदम्य साहस, आत्मविश्वास और भयमुक्त जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी आराधना से जीवन में शांति, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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