क्या आप जानते हैं कूष्माण्डा माता का प्रिय रंग कौन सा है और नवरात्रि में इस रंग का क्या महत्व है? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।
माता कूष्माण्डा की पूजा में रंग का भी बड़ा महत्व होता है। ऐसा करने से मां का आशीर्वाद बना रहता है और जीवन में सुख, समृद्धि आती है। इस लेख में जानिए कूष्माण्डा माता का प्रिय रंग, पूजा विधि और इससे मिलने वाले लाभ।
माँ कूष्माण्डा, देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। उनकी महिमा और स्वरूप की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
दिव्य स्वरूप: उनका शरीर सूर्य के समान तेजवान और तेजस्वी है। उनकी आठ भुजाएँ हैं, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, अमृत से भरा कलश, जपमाला, चक्र, गदा और कमल का फूल है। वह सिंह पर सवार हैं, जो उनकी अदम्य शक्ति और साहस का प्रतीक है।
सृष्टि की निर्माता: पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं था और हर तरफ केवल अंधकार था, तब माँ कूष्माण्डा ने अपनी मंद मुस्कान से इस सृष्टि की रचना की। सूर्य को भी प्रकाश और ऊर्जा देने वाली वही हैं।
रोगों की नाशक: यह माना जाता है कि माँ कूष्माण्डा की पूजा करने से भक्तों के सभी रोग और दुख दूर हो जाते हैं। उन्हें आरोग्य और दीर्घायु का वरदान मिलता है।
ज्ञान और बुद्धि की दाता: माँ कूष्माण्डा भक्तों को ज्ञान, बुद्धि और आत्मज्ञान का वरदान देती हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति में रचनात्मकता और विवेक बढ़ता है।
माँ कूष्माण्डा का पसंदीदा रंग नीला है। इस रंग का उपयोग उनकी पूजा और श्रृंगार में किया जाता है। नीला रंग आकाश और समुद्र की विशालता का प्रतिनिधित्व करता है। यह शांति, सुरक्षा और विश्वास का प्रतीक है। माँ कूष्माण्डा की पूजा में नीला रंग धारण करने से व्यक्ति का मन शांत होता है और उसे ध्यान में एकाग्रता प्राप्त होती है। यह रंग जीवन में स्थिरता और गहराई लाने में भी सहायक है।
संतुलन और शांति: नीला रंग मन और शरीर में संतुलन लाता है, जिससे तनाव और चिंता दूर होती है। यह शांत और सुखद होता है, जो आध्यात्मिक साधना में एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।
ऊर्जा और सकारात्मकता: यह रंग जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार करता है। माँ कूष्माण्डा को नीला रंग अर्पित करने से यह मान्यता है कि देवी भक्तों के जीवन में खुशहाली और सफलता लाती हैं।
मानसिक शांति: नीला रंग मन को शांत और स्थिर करता है, जिससे तनाव और चिंता दूर होती है। यह ध्यान और पूजा में एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।
समृद्धि और सफलता: नीला रंग जीवन में समृद्धि और सफलता का प्रतीक है। माँ कूष्माण्डा की कृपा से भक्तों को जीवन में खुशहाली और सफलता मिलती है।
नकारात्मकता से बचाव: नीला रंग नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मकता का संचार करता है। यह व्यक्ति को आंतरिक शक्ति और सुरक्षा प्रदान करता है।
ज्ञान और विवेक में वृद्धि: नीला रंग ज्ञान और विवेक का भी प्रतीक है। माँ कूष्माण्डा को नीला रंग अर्पित करने से भक्तों को ज्ञान और बुद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
आत्मविश्वास में वृद्धि: नीला रंग व्यक्ति में आत्मविश्वास और साहस का संचार करता है। यह व्यक्ति को जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
नवरात्रि में विशेष महत्व
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन सृष्टि की रचना का प्रतीक है। यह हमें यह याद दिलाता है कि जीवन की शुरुआत कहाँ से हुई और कैसे ब्रह्मांड में ऊर्जा और जीवन का संचार हुआ। इस दिन की पूजा करने से भक्त अपनी रचनात्मकता और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाते हैं।
सुबह स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और हरे रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर पूजा का संकल्प लें।
देवी का आह्वान: पूजा स्थान पर माँ कूष्माण्डा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, और हरे रंग के फूल अर्पित करके उनका आह्वान करें।
भोग: माँ कूष्माण्डा को मालपुआ और हलवा का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
मंत्र जाप और आरती: घी का दीपक जलाकर उनके मंत्रों का जाप करें और अंत में श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करें।
मुख्य मंत्र: “ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः।”
स्तुति मंत्र: “सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।”
माँ कूष्माण्डा की पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन की शुरुआत हमेशा एक छोटी सी चिंगारी से होती है, और यह चिंगारी ही एक बड़े बदलाव का कारण बन सकती है। उनकी पूजा करने से भक्त जीवन में ऊर्जा, रचनात्मकता और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हरा रंग और विशेष भोग अर्पित करके हम न केवल देवी को प्रसन्न करते हैं, बल्कि अपने जीवन में खुशहाली, संतुलन और नई शुरुआत का स्वागत भी करते हैं।
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