
क्या आप जानते हैं पार्श्व एकादशी 2026 कब है? जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु के उपासकों के लिए इस एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शयन मुद्रा में करवट बदलते हैं। करवट बदलने के कारण ही इस एकादशी को ‘पार्श्व एकादशी’ या 'परिवर्तिनी एकादशी' कहा गया है।
पार्श्व एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की उपासना करने का विधान है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसी कारण इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा गया है। इस पर्व पर भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की उपासना करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है, और जातक के सभी पाप कर्म नष्ट होते हैं। भगवान विष्णु के वामन अवतार के साथ-साथ इस दिन लक्ष्मी पूजन करना भी श्रेष्ठ माना गया है।
पार्श्व एकादशी की यह पवित्र कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। जो इस प्रकार है -
प्राचीन काल में महान प्रतापी राजा बलि ने अपने तप और दान से तीनों लोकों को जीत लिया था। उनके दान की महिमा ऐसी थी कि देवतागण भी उनसे भयभीत हो गए। राजा बलि की ख्याति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। उनके साम्राज्य में कोई दुखी, निर्धन या पीड़ित नहीं था। सब कुछ होते हुए भी उनसे अनजाने में एक ऐसा अहंकार उत्पन्न हुआ जिसने देवताओं के राज्य को संकट में डाल दिया।
देवताओं ने यह स्थिति देखकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे किसी प्रकार असुरराज बलि को मार्ग दिखाएँ और संसार का संतुलन बनाए रखें। भगवान विष्णु देवताओं का कष्ट देखकर वामन अवतार में प्रकट हुए। उनके मुख की दिव्य आभा देखकर सभी चकित हो जाते थे।
एक दिन भगवान वामन राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में पहुँच गए। बलि ने जैसे ही इस तेजस्वी ब्राह्मण बालक को देखा, वे तुरंत उठकर उनके चरणों में प्रणाम करने लगे और विनम्र स्वर में बोले “हे बालक! आप किस उद्देश्य से आए हैं? जो भी चाहें, निःसंकोच माँगें।” वामन भगवान ने सरल स्वर में कहा “मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए।” राजा बलि हँसकर बोले “हे ब्राह्मण! तीन पग भूमि? मैं तो पूरी पृथ्वी दे सकता हूँ।” लेकिन भगवान ने उसी छोटे से दान पर अटल रहने को कहा।
जैसे ही बलि ने संकल्प लिया, भगवान वामन का रूप बढ़ने लगा। वे विराट स्वरूप में बदल गए। उनके पहले पग में पूरा पृथ्वी लोक, दूसरे पग में पूरा आकाश और स्वर्ग समा गया। अब तीसरे पग के लिए स्थान शेष नहीं रहा। राजा बलि ने हाथ जोड़कर कहा “हे प्रभु! तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।” भगवान मुस्कुराए और तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया। लेकिन बलि की भक्ति, सत्य और दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे स्वयं यहीं रहकर उनकी रक्षा करेंगे।
भगवान ने युधिष्ठिर को बताया कि जब वे राजा बलि के पास पाताल में रहने लगे, तब देवी लक्ष्मी व्याकुल हो गईं। वे भगवान के बिना स्वयं को अधूरा महसूस करने लगीं। देवी लक्ष्मी पाताल लोक पहुँचीं और राजा बलि को प्रणाम करते हुए बोलीं “राजन! आप अत्यंत भक्त और दानी हैं। प्रभु आपकी रक्षा के लिए पाताल में रहने लगे हैं, लेकिन उनके बिना मैं असहज हो जाती हूँ। कृपया उन्हें मेरे साथ वापस लौटने की अनुमति दें।” बलि ने आदरपूर्वक कहा “माता! यदि भगवान की इच्छा हो, तो मैं उन्हें निश्चित ही जाने दूँगा। मैं कैसे रोक सकता हूँ?”
उस समय भगवान ने कहा “राजन! मैं कार्तिक मास तक यहाँ विश्राम करूँगा। मेरे इस शयन काल को ही पार्श्वावस्था कहा जाएगा।” भगवान के करवट बदलने के दिन को ही पार्श्व एकादशी कहा गया। इस दिन उनके पार्श्व परिवर्तन (करवट) का उत्सव मनाया जाता है। भगवान ने कहा “जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करेगा, वह मेरे विशेष कृपाभागी बनकर जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होगा। उसके सभी पाप नष्ट होंगे और उसे अक्षय फल प्राप्त होगा।
पार्श्व एकादशी पर श्रीहरि विष्णु को तुलसीदल चढ़ाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए इस दिन आप जो भी प्रसाद तैयार करें, उसमें एक या दो तुलसीदल अवश्य डालें और फिर श्रीहरि को अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि तुलसी से युक्त भोग चढ़ाने से घर-परिवार में शांति आती है, दुर्भाग्य दूर होता है।
इस दिन प्रातः स्नान के बाद तुलसी को जल चढ़ाकर उनका पूजन करें। इसके बाद तुलसी की परिक्रमा करते हुए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें। माना जाता है कि यह उपाय जीवन की बाधाएँ दूर करता है और हर काम में सफलता प्रदान करता है।
पार्श्व एकादशी पर पीले रंग के कपड़े पहनना अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि यह रंग श्रीहरि को प्रिय है। पूजा के बाद किसी जरूरतमंद को पीले वस्त्र, पीली दाल या हल्दी से बनी मिठाई का दान करने से कार्यों की रुकावटें दूर होती हैं और जीवन में तरक्की बढ़ती है।
पार्श्व एकादशी के दिन सुबह-शाम तुलसी के पास घी का दीप जलाएँ। तुलसी को स्त्री-शक्ति और लक्ष्मी स्वरूप माना गया है। दीपक जलाने और सोलह श्रृंगार अर्पित करने से घर में माँ लक्ष्मी का स्थायी निवास होने की मान्यता है। ध्यान रखें कि इस दिन तुलसी पर जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
पार्श्व एकादशी पर पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित करना और दीपक जलाना अत्यंत शुभ होता है। पीपल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इस उपाय से आर्थिक समस्याएँ दूर होती हैं, घर में खुशहाली आती है और विष्णु जी की कृपा बनी रहती है।
हमारी कामना है कि आपको पार्श्व एकादशी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और भगवान विष्णु आपको सुखी-समृद्ध जीवन का वरदान दें। ऐसे ही व्रत त्यौहारों से जुड़ी धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
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