
जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए एकादशी तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन श्रद्धा से व्रत, पूजा और ध्यान करने पर साधक को धन, धान्य, सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से यह तिथि आमलकी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है, जो पापों का नाश करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने वाली मानी जाती है। तो आइये जानते हैं इस प्रसिद्ध एकादशी के बारे में विस्तार से।
आमलकी एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एक विशेष और पुण्यकारी एकादशी है, जिसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अपना विशिष्ट महत्व है। क्योंकि इस दिन व्रत रखने, पूजा-पाठ करने और भगवान विष्णु का स्मरण करने से साधक को धन, धान्य, सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। आमलकी एकादशी को पितरों के आशीर्वाद से भी जोड़कर देखा जाता है, इसलिए इसे पूर्वजों की शांति और मोक्ष के लिए भी अत्यंत फलदायी बताया गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस पावन दिन आंवले के वृक्ष में स्वयं भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इसी कारण इस एकादशी का नाम आमलकी एकादशी पड़ा और इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विशेष विधान है। भक्त इस दिन आंवले की पूजा के साथ व्रत रखते हैं। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करते हैं और भक्ति भाव से दिन बिताते हैं। विश्वास है कि इस एकादशी का पालन करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं, शरीर और मन शुद्ध होता है तथा जीवन में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आमलकी अत्यंत महत्व है। क्योंकि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति, सद्गुणों की प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। आमलकी एकादशी के पालन का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना है। इसलिए इसे विशेष फलदायी माना जाता है।
एकादशी व्रत पूरा होने पर इसे तोड़ने की प्रक्रिया को पारण कहा जाता है। यह पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले अवश्य कर लेना चाहिए। यदि द्वादशी सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाए, तब पारण सूर्योदय के बाद किया जाता है। शास्त्रों में द्वादशी के भीतर पारण न करना पाप के समान माना गया है। वहीं, कभी-कभी एकादशी दो दिनों तक चलती है। ऐसे में गृहस्थों के लिए पहले दिन व्रत करना उचित होता है, जबकि संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष की इच्छा रखने वाले श्रद्धालुओं को दूसरे दिन व्रत करना चाहिए। अत्यंत भक्तिभाव रखने वाले व्यक्ति भगवान विष्णु की विशेष कृपा हेतु दोनों दिन व्रत भी कर सकते हैं।
आमलकी एकादशी का पावन व्रत वर्ष 2026 में शुक्रवार, 27 फरवरी को मनाया जाएगा। व्रत करने वाले श्रद्धालु अगले दिन 28 फरवरी को निर्धारित समय के अनुसार पारण कर सकते हैं।
पारण (व्रत तोड़ने) का समय: सुबह 06:47 एम से 09:06 एम तक
द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय: शाम 08:43 पीएम
एकादशी तिथि की शुरुआत: 27 फरवरी को रात 12:33 एम
एकादशी तिथि की समाप्ति: 27 फरवरी को रात 10:32 पीएम
इन शुभ समयों का पालन करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
स्नान और संकल्प: आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान कर मन को शुद्ध करें और भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लें। यह संकल्प पूरे दिन की साधना को पवित्र और फलदायी बनाता है।
पीले वस्त्र धारण करना: स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनें और घर में गंगाजल का छिड़काव करें। पीला रंग श्रीहरि विष्णु का प्रिय माना जाता है और यह शुद्धता व पवित्रता का प्रतीक है।
पूजा सामग्री एकत्रित करें: पूजा के लिए दीपक, धूप, चंदन, पीले फूल, तुलसी दल, फल और आंवला जैसी सामग्री एकत्र करें। सभी सामग्री स्वच्छ और शुभ होनी चाहिए।
भगवान विष्णु की स्थापना: एक साफ चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उसके बाद चंदन, फूलों और वस्त्रों से भगवान का श्रृंगार करें।
तुलसी अर्पण और दीप प्रज्ज्वलन: पूजा में तुलसी पत्ते विशेष स्थान रखते हैं, इसलिए भगवान को चंदन के साथ तुलसीदल अवश्य अर्पित करें। फिर दीपक जलाकर शांत भाव से भगवान का ध्यान करें।
एकादशी कथा वाचन: पूजा के दौरान आमलकी एकादशी की पौराणिक कथा का पाठ करें। कथा वाचन से व्रत की महिमा समझ आती है और मन में भक्तिभाव और दृढ़ होता है।
आरती और आंवला वृक्ष की पूजा: भगवान विष्णु की आरती करें और आंवले के वृक्ष की पूजा अवश्य करें, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु आंवले के वृक्ष में वास करते हैं।
पूजा के अंत में श्रीहरि के शक्तिशाली मंत्रों का जाप करें।
बीज मंत्र: ॐ बृं
विष्णु गायत्री मंत्र: ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्
स्तुति मंत्र: शांताकारं भुजगशयनम्…
महामंत्र: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अंत में भगवान के समक्ष प्रार्थना करें कि पूजा-विधि में अनजाने में हुई किसी भी भूल-चूक के लिए वे क्षमा प्रदान करें।
आमलकी एकादशी के उपाय
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करना अत्यंत शुभ होता है। इससे कार्यक्षेत्र में आ रही रुकावटें दूर होती हैं और नए अवसर मिलने लगते हैं।
यदि वैवाहिक जीवन में तनाव या मनमुटाव बना रहता हो तो इस दिन तुलसी माता और लक्ष्मी माता की विधिवत पूजा करें। उन्हें श्रृंगार सामग्री अर्पित करने से दांपत्य जीवन में मधुरता बढ़ती है।
आमलकी एकादशी के दिन दान का बहुत महत्व है। किसी जरूरतमंद को भोजन कराना जीवन की बाधाओं को दूर करता है और मन में शांति लाता है।
इस दिन श्रीमद् भागवत कथा का पाठ करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इससे घर में आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है और वातावरण पवित्र होता है।
आर्थिक समस्याओं से राहत पाने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा करें और एक पान के पत्ते पर ‘ॐ विष्णवे नमः’ लिखकर भगवान को अर्पित करें। अगले दिन इस पत्ते को पीले कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें, इससे धन वृद्धि के योग बनते हैं।
आमलकी एकादशी के लाभ
पूर्ण श्रद्धा से आमलकी एकादशी का व्रत रखने और पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मन पवित्र होता है।
इस दिन किए गए उपाय और दान से आर्थिक कठिनाइयाँ दूर होने लगती हैं और धन-संपत्ति में वृद्धि के योग बनते हैं।
तुलसी और लक्ष्मी माता की पूजा से पति-पत्नी के बीच आपसी समझ बढ़ती है और वैवाहिक जीवन में शांति बनी रहती है।
श्रीमद् भागवत कथा और मंत्र-जाप के प्रभाव से मानसिक शांति मिलती है और आध्यात्मिक प्रगति होती है।
पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर परिक्रमा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर की दरिद्रता दूर होती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है।
आमलकी एकादशी पर क्या करें?
आमलकी एकादशी पर क्या न करें?
इन नियमों का पालन करने से आमलकी एकादशी का व्रत सफल, फलदायी और अत्यंत शुभ माना जाता है।
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