माँ कुष्मांडा को सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया है। यह चालीसा विशेष रूप से ऊर्जा, तेज और सकारात्मकता प्रदान करती है। माँ की कृपा से घर में सुख-शांति और आयु में वृद्धि होती है।
मां कुष्मांडा की पूजा से आरोग्यता, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति होती है। ऐसे में अगर आप भी मां को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो उनकी चालीसा का पाठ ज़रूर करें। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि मां कुष्मांडा की चालीसा क्या है और इसका महत्व क्या है। तो चलिए जानते हैं विधि-विधान तक सारी जानकारी।
कुष्मांडा चालीसा मां दुर्गा के चौथे स्वरूप देवी कुष्मांडा को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है। चालीसा में चालीस छंद हैं, जिसमें उनकी महिमा, शक्तियों और कृपा का वर्णन किया गया है। इस चालीसा में मां के रोग नाशक, दुख हरने वाले और सुख व शांति देने वाले स्वरूपों का गुणगान है। कुष्मांडा चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से जीवन की अनेक परेशानियां दूर होती हैं और साधक को देवी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह चालीसा न केवल आत्मिक बल देती है, बल्कि मानसिक और आर्थिक स्थिरता भी प्रदान करती है। नवरात्रि के चौथे दिन इस चालीसा का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।
अगर आप जीवन में लगातार बीमारि, मानसिक तनाव या दुखों से घिरे हैं तो कुष्मांडा चालीसा का पाठ आपके लिए लाभकारी हो सकता है। मां कुष्मांडा को रोगों का नाश करने वाली और आयु में वृद्धि करने वाली देवी माना गया है। इनकी पूजा से न केवल शारीरिक रोग दूर होते हैं, बल्कि मन का बोझ और जीवन की तमाम परेशानियां भी समाप्त हो जाती हैं। इनकी चालीसा का पाठ करने से साधक को आरोग्यता, यश, बल और लंबी उम्र का वरदान प्राप्त होता है। जो लोग लंबे समय से असाध्य रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें इस चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। क्योंकि यह चालीसा केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक ऊर्जा स्रोत है। ऐसे में श्रद्धा और नियम से इस चालीसा का पाठ किया जाए तो मां कुष्मांडा की विशेष कृपा प्राप्त होती है जो जीवन को सुखमयबनाती है।
दोहा
माता कुष्मांडा की जय,
करुणा की सागर।
सुख-सम्पत्ति देने वाली,
जय मां, जय अंबर॥
जयति जयति जगत की माता।
कुष्मांडा देवी सुखदायी भ्राता॥
शुम्भ-निशुम्भ हरणी माता।
भक्तों की विपदा हरणी भ्राता॥
कुश (कुमार) मंद हर्ष से भरी।
चारों ओर कृपा की झरी॥
हंस पर सवार हे माता।
कृपा का अविरल बहाता॥
कुम्भ करों में जल से भरे।
धन-धान्य से भरे सारे घर॥
आभा से दीप्त हे माता।
भक्तों के संकट मिटाता॥
चतुर्थी तिथि शुभ कहलाती।
व्रत रखने से सब सफल होती॥
मंत्र का जप करों हे प्यारे।
जीवन सुखी हो जाए सारे॥
अंत में सुन लो अरज हमारी।
जीवन सवारे भवसागर से॥
जय माता कुष्मांडा भवानी।
कृपा करो हे जगत की रानी॥
पूजा स्थल को शुद्ध और साफ करें।
फिर आसन पर बैठें और मां कुष्मांडा की मूर्ति या चित्र को सामने रखें।
मां को फूल, अक्षत (चावल), चंदन, धूप, दीप और मिठाई अर्पित करें।
अब माता का ध्यान करें और मन में संकल्प लें।
देवी के स्वरूप का स्मरण करते हुए एकाग्र मन से चालीसा का पाठ करें।
पाठ समाप्त होने पर मां की आरती करें, भजन और कीर्तन गाएं।
फिर प्रसाद चढ़ाएं और सभी को वितरित करें।
कुष्मांडा चालीसा के लाभ करने से अनेक लाभ मिलते हैं।
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