वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 2025 पर करें वट वृक्ष की पूजा और सुनें सावित्री-सत्यवान की कथा। जानें व्रत विधि, नियम और फल सौभाग्य की प्राप्ति के लिए अवश्य पढ़ें।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत स्त्रियों द्वारा पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा कर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी जाती है। यह व्रत पूर्णिमा को होता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर किया जाता है, लेकिन कई अन्य जगहों पर ये व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि पर किया जाता है। मान्यता है कि पूरी आस्था से इस व्रत का पालन करने वाली स्त्रियां सदा सुहागन रहती हैं।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:44 ए एम से 04:26 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:05 ए एम से 05:07 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:30 ए एम से 12:25 पी एम |
विजय मुहूर्त | 02:14 पी एम से 03:09 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:47 पी एम से 07:08 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:48 पी एम से 07:50 पी एम |
अमृत काल | 06:32 ए एम से 08:18 ए एम |
निशिता मुहूर्त | 11:37 पी एम से 12:18 ए एम, जून 11 |
रवि योग | 05:07 ए एम से 06:02 पी एम |
इसलिए एक ही पर्व को साल में दो बार मनाने की स्थिति बनती है, हालांकि उसका मूल उद्देश्य एक ही रहता है — पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख की कामना। तो यह थी ज्येष्ठ/वट पूर्णिमा व्रत के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी, हम आशा करते हैं कि आपका व्रत सफल हो।
हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाला वट सावित्री व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। ये व्रत स्त्रियां अखंड सौभाग्य, पति के कल्याण एवं संतान प्राप्ति की कामना के लिए रखती हैं।
चलिए जानते हैं,
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत का पालन करने वाली स्त्री का पति दीर्घायु होता है, और उसका सुहाग सदैव अचल रहता है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली स्त्रियों को इस व्रत के फलस्वरूप उत्तम संतान की प्राप्ति होती है, और परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।
वट सावित्री व्रत प्रत्येक सुहागन स्त्री के सुहाग को अखंड रखने वाला पर्व है। सदियों पहले सावित्री ने भी इसी व्रत का पालन कर अपने मृत पति सत्यवान को यमराज द्वारा जीवनदान देने के लिए विवश किया था, तभी से सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी आयु के इस व्रत का पालन करने की परंपरा है। वट सावित्री व्रत में सत्यवान सावित्री व मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है, साथ ही इस दिन सभी सुहागन स्त्रियां 16 श्रृंगार कर वट वृक्ष की भी पूजा करती है।
तो यह थी वट सावित्री व्रत के महत्व से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत सफल हो, और आपको अखंड सौभाग्य मिले।
दोस्तों! वट सावित्री व्रत का फल वट यानी कि बरगद की पूजा पर भी निर्भर करता है। चूँकि हमारे कई यूज़र्स महानगरों में रहते हैं, जहाँ बरगद के पेड़ आसानी से नहीं मिल पाते हैं, ऐसे में कई लोगों ने हमसे इस समस्या का हल माँगा। जिसे लेकर हम आज आपके सामने प्रस्तुत हैं -
तो सबसे आसान उपायों में से एक है कि
बरगद का पेड़ न सही लेकिन बरगद की कुछ टहनियां और पत्ते भी अगर आप वट सावित्री व्रत के 2-3दिन पहले कहीं से जुटा लें तो आपकी वट सावित्री व्रत की पूजा घर में ही सम्पन्न हो जाएगी। इन टहनियों और पत्तों को एक गमले में काली या पीली मिट्टी के साथ बो दें और थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहे तो यह आपकी पूजा में बरगद का पेड़ के रूप में उपयोग हो सकेगा।
पेड़ भी नहीं है, और टहनी भी नहीं मिल रही तो एक चौकी पर जल से भरा कलश स्थापित करें, और इस कलश में ब्रह्मा देव, राजा सत्यवान और सावित्री का आह्वान करें। कहें कि “कि हे ब्रह्मदेव, हे सावित्री माता, हे राजा सत्यवान, मैंने अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरी श्रद्धा से आपका व्रत किया है, इस जल कलश में आकर मेरी पूजा को सफल बनाएँ, मैं आपका आह्वान करती हुं।” इसके बाद पूर्ण विधि से इसकी पूजा करें। आपकी पूजा जरूर सफल होगी।
जिस तरह करवा चौथ माता की तस्वीर बाजार में मिल जाती है, उसी तरह आजकल वट सावित्री व्रत की तस्वीर भी बाजार में ढूंढने से मिल जाएगी। यदि आपको यह नहीं मिल पाएं तो श्रीमंदिर पर ऍप के माध्यम से पूजा सम्पन्न करें।
जी हाँ! इंटरनेट पर DIY यानि कि डु इट यौरसेल्फ के कई विकल्प है, जिनमें से सनातन स्त्रियों के लिए हम सबसे खास चुनकर आपके लिए लाएं हैं। आटे का इस्तेमाल करके आप बरगद का पेड़ बना सकती हैं। इसमें थोड़ी ही हल्दी मिलाएं, जो सुहाग की निशानी भी होती है। इस आटे से बने बरगद की विधि पूर्वक पूजा करें और अगले दिन इसके विसर्जन के लिए इसकी रोटियां बनाकर गाय व् अन्य पशुओं को खिला दें।
इसके साथ ही आप हरतालिका तीज की तरह ही मिट्टी और रेत का इस्तेमाल भी कर सकती है। इन दो चीजों से वट वृक्ष बनाकर इसकी पूजा और अगले दिन पानी में इसे विसर्जित कर दें।
हमारे देश के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ बरगद बिल्कुल भी नहीं पाया जाता हैं। ऐसे में वे लोग वट सावित्री व्रत के दिन तुलसी जी और शालिग्राम के पास एक जल कलश रखकर इसकी पूजा कर सकते हैं।
हम यहां वहीं विकल्प लाएं हैं जिनसे आपकी वट सावित्री व्रत की पूजा बिना किसी अड़चन के सफल हो और आपको पूजा में किसी तरह की कमी भी महसूस न हों। हम आशा करते हैं आपको हमारा यह प्रयास पसंद आए।
वट सावित्री व्रत के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से इसका विशेष फल मिलता है इसलिए हम आज इस वीडियो में आपको इस व्रत की संपूर्ण पूजा विधि बताने जा रहे हैं।
चलिए अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि इस दिन प्रसाद में क्या-क्या चढ़ाया जाता है। प्रसाद में एक दिन पहले भिगोए गए काले चनों को रखना ज़रूरी होता है। इसके अलावा प्रसाद के लिए पूड़ी, पुए और बरगद फल बनाए जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि यह बरगद फल क्या होता है?
तो यह थी वट सावित्री की पूजा विधि। वट सावित्री की व्रत कथा सुनने के लिए श्रीमंदिर के ऐप पर अवश्य जाएं।
Did you like this article?
नागुला चविथी 2025: जानें पूजा की तारीख, समय और विधि। इस दिन नाग देवता की पूजा कर सुख-समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त करें।
यम द्वितीया 2025: जानें इस पावन दिन की तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
भाई दूज 2025 कब है? जानें इस दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, आवश्यक सामग्री और उपहार के आइडियाज। अपने भाई के प्रति प्रेम और स्नेह व्यक्त करने के लिए इस दिन की खासियत को समझें और इसे खास बनाएं।