मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 2025 की सही तिथि और शुभ मुहूर्त क्या है? जानें पूजा विधि और इस दिन के महत्त्व की पूरी जानकारी!
भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्तों का असीम प्रेम और उनकी आस्था की शब्दों में व्याख्या कर पाना असंभव है। भक्तजन भगवान श्री कृष्ण को जब भी दिल से याद करते हैं, उन्हें हमेशा अपने करीब महसूस करते हैं। इसी प्रेम और आस्था को व्यक्त करने के लिए भक्त उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना करते हैं और संयम के साथ व्रत-उपवास रखते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित ऐसा ही एक व्रत है, जिसे मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:54 ए एम से 04:36 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:15 ए एम से 05:18 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:37 ए एम से 12:31 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:19 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:49 पी एम से 07:10 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:50 पी एम से 07:53 पी एम तक |
अमृत काल | 01:22 ए एम, जुलाई 18 से 02:53 ए एम, जुलाई 18 तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:25 ए एम, जुलाई 18 तक |
धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि पर हुआ था। इस कारण, हिंदू धर्म में हर महीने भगवान कृष्ण की जन्म तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भक्त उनका आशीष प्राप्त करने के लिए उपवास रखते हैं और भगवान की आराधना करते हैं।
इस व्रत को रखना धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, इससे व्यक्ति के पापों तथा भय का नाश होता है। मान्यता यह भी है कि इस व्रत से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस मासिक कृष्ण अष्टमी व्रत को जो भक्त, श्रद्धापूर्वक लगातार एक साल तक करता हैं, वह सभी कष्टों से मुक्त होकर धन धान्य से परिपूर्ण होकर उत्तम ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। इस व्रत के महात्म्य को सुनने वाले उपासक को वैभव एवं यश की प्राप्ति होती है।
आप इस तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद मंदिर में दीप प्रज्वलित करके विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करें। अगले दिन पूजा करने के बाद ही व्रत का पारण करें।
यह व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है। अर्थात एक वर्ष में 12 बार मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इसका उद्देश्य श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की मासिक स्मृति और उपासना है।
यह व्रत कोई भी श्रद्धालु रख सकता है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। विशेष रूप से वे लोग जो नियमित रूप से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करते हैं या उनके आशीर्वाद की कामना रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी है। गृहस्थ, ब्रह्मचारी, साधक, या भक्त — सभी के लिए उपयुक्त है।
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