श्रावण का अंतिम दिन और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा सावन पूर्णिमा व्रत 2025 जीवन में लाता है शुद्धता और संतुलन। जानिए व्रत की सही विधि, तिथि और इसका पौराणिक महत्व।
सावन पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की अंतिम तिथि होती है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक और ऋषि पूजन का विशेष अवसर है। इस दिन रक्षाबंधन, उपाकर्म (यज्ञोपवीत संस्कार) और विभिन्न व्रत-त्योहारों का आयोजन किया जाता है।
हिंदू धर्म में श्रावण महीने की पूर्णिमा को धार्मिक तौर पर, बहुत ही पुण्य तिथि माना जाता है। ऐसा कहा जाता है, कि श्रावण की पूर्णिमा तिथि को, चंद्रमा अपने सभी कलाओं से पूर्ण होता है, जिसकी अपरूप शोभा समस्त दिशाओं को प्रकाशित करती है। साथ ही, इस तिथि को देशभर के अलग-अलग प्रांतों में, विभिन्न पर्वों के रूप में भी मनाया जाता है। जहां उत्तर भारत में इस दिन, रक्षा बंधन का पर्व धूमधाम से मनाते हैं, तो वहीं दक्षिण भारत में यह दिन, अवनि अवित्तम के नाम से मनाया जाता है।
वहीं श्रावण पूर्णिमा की इस तिथि को, कुछ क्षेत्रों में कजरी पूनम नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान घर की महिलाएं, नवमी तिथि के दिन पत्तों से बने पात्रों में जौ बोती हैं, जिसे पूर्णिमा के दिन नदी में विसर्जित किया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत रखकर, अपनी संतान की लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करती हैं।
श्रावण मास की पूर्णिमा 09 अगस्त 2025 को पड़ रही है
श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्र अर्घ्य का समय, चंद्रोदय के बाद होता है। 2025 में, श्रावण पूर्णिमा 9 अगस्त को है, और चंद्रोदय का समय शाम 6:52 बजे होगा।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:22 ए एम से 05:04 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:43 ए एम से 05:47 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 07:06 पी एम से 07:27 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:06 पी एम से 08:10 पी एम तक |
अमृत काल | 03:42 ए एम, अगस्त 10 से 05:16 ए एम, अगस्त 10 तक |
निशिता मुहूर्त | 12:05 ए एम, अगस्त 10 से 12:48 ए एम, अगस्त 10 तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 05:47 ए एम से 02:23 पी एम तक |
श्रावण पूर्णिमा को धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लेकर हयग्रीव नामक दैत्य का संहार किया था और वेदों की रक्षा की थी। यह दिन भगवान शिव की उपासना के लिए भी विशेष माना जाता है, क्योंकि श्रावण मास शिवभक्ति का सर्वोत्तम समय होता है। इस दिन को मनाने के पीछे उद्देश्य होता है - देवताओं की कृपा प्राप्त करना, चंद्र दोष से मुक्ति पाना और आध्यात्मिक शुद्धि करना।
श्रावण पूर्णिमा न केवल पौराणिक घटनाओं से जुड़ी है, बल्कि यह व्रत, तप और दान के लिए भी अत्यंत फलदायक माना जाता है। इस दिन: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से धन, वैभव और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रमुख रूप से निम्न देवताओं की पूजा की जाती है:
1. प्रातःकालीन तैयारी
2. शिवलिंग का अभिषेक
3. भगवान शिव को अर्पण की जाने वाली सामग्री
4. आराधना के अनुष्ठान
5. चंद्रमा पूजन
6. पूजा समापन
विशेष मान्यताएं
शिवलिंग का रुद्राभिषेक करें – गंगाजल, दूध, शहद और शुद्ध जल से रुद्राभिषेक कर ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें।
चंद्रमा को अर्घ्य दें – रात्रि में चंद्र दर्शन कर गंगाजल, दूध, रोली व चावल मिलाकर अर्घ्य देने से चंद्रदोष दूर होता है।
विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करें – भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन कर धन, सुख और सौभाग्य की कामना करें।
राखी बांधें और रक्षा का संकल्प लें – बहनें भाइयों को राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। भाई बहनों की रक्षा का वचन देते हैं।
दान-पुण्य करें – ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, गौ-दान, तांबे के पात्र आदि का दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
जप और ध्यान करें – इस दिन महामृत्युंजय मंत्र, विष्णु सहस्त्रनाम, शिव चालीसा या विष्णु चालीसा का पाठ करें।
व्रत रखें और एक समय फलाहार लें – व्रत का पालन करने से मन स्थिर होता है और साधना में प्रगति होती है
शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है – व्रत रखने से तन-मन पवित्र होता है और संयम की शक्ति बढ़ती है।
चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है – इस दिन चंद्रमा की पूजा और व्रत करने से चंद्रमा से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।
भगवान शिव और विष्णु की कृपा प्राप्त होती है – दोनों देवों की पूजा इस दिन विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है – व्रत और दान करने से जीवन में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
परिवार में सुख और सौहार्द बना रहता है – पारिवारिक शांति के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना गया है।
पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है – पुराणों में इस दिन का व्रत करने से पापों से मुक्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होने की बात कही गई है।
हिंदू धर्म में श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। इस दिन की गई पूजा, व्रत, और धार्मिक गतिविधियाँ न केवल भगवान को प्रसन्न करती हैं, बल्कि पितरों की कृपा भी दिलाती हैं। आइए जानते हैं वे विशेष कार्य, जिन्हें श्रावण पूर्णिमा के दिन करना चाहिए—
1. श्रावणी तर्पण करें – पितरों को तृप्त करें
इस दिन पितरों की आत्मा की शांति और कल्याण हेतु तर्पण व हवन करने की परंपरा है। ऋग्वेद के मंत्रों से आहुति देकर तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। तर्पण से पहले यह संकल्प लें कि आप पापों से बचेंगे, हिंसा नहीं करेंगे, संयमित जीवन जिएँगे और सदाचरण अपनाएँगे। इससे न केवल पितृ संतुष्ट होते हैं, बल्कि आत्मिक शुद्धि भी प्राप्त होती है।
2. जनेऊ संस्कार – शुद्ध जीवन का संकल्प
श्रावण पूर्णिमा के दिन उपवित (जनेऊ) धारण करने का विशेष महत्व है। इस दिन पुराने जनेऊ को त्यागकर, गायत्री मंत्र का जाप करते हुए नया जनेऊ धारण करें। यह संस्कार आत्मिक पुनर्जन्म का प्रतीक है, जो अध्ययन, यज्ञ और संयमित जीवन का मार्ग खोलता है। इससे व्यक्ति के दोष मिटते हैं और पूर्वजों की कृपा प्राप्त होती है।
3. विष्णु-लक्ष्मी एवं शिव जी की पूजा करें
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, वहीं भगवान शिव को रुद्राभिषेक एवं खीर का भोग अर्पित कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। विष्णु-लक्ष्मी को पीले वस्त्र, पुष्प और पीले भोग चढ़ाएं, और शिव जी को बेलपत्र, दूध, धतूरा और भस्म अर्पित करें।
4. स्नान, दान और सेवा से बढ़ाएं पुण्य
ये कार्य आपके जीवन में शुभता और पुण्य लाते हैं।
5. ब्राह्मणों को भोजन कराएं
स्नान और पूजा के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति ससम्मान भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इससे दरिद्रता दूर होती है, गृह शांति बनी रहती है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
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