वर्षी तप पारण 2025: सही तिथि और तप विधि जानें, और इस खास दिन पर विशेष तप से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करें।
वर्षी तप पारण जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण तपस्या का समापन होता है, जिसमें साधक एक वर्ष तक विभिन्न नियमों का पालन और उपवास करते हैं। पारण के दिन विशेष पूजा, अभिषेक, स्वाध्याय और सामूहिक धार्मिक आयोजन होते हैं।
वर्षी तप जैन धर्म का एक विशेष पर्व होता है। ये पर्व जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के कार्यों और आदर्शों को याद करके मनाया जाता है। आपको बता दें कि भगवान आदिनाथ को ऋषभदेव के नाम से भी जाना जाता है। वर्षी तप को जैन समुदाय का सबसे बड़ा तप माना जाता है।
चैत्र, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से वर्षी तप का आरंभ होता है, और इस व्रत का समापन वैशाख, शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, यानि अक्षय तृतीया पर किया जाता है।
इस साल वर्षी तप का पारण 30 अप्रैल 2025, बुधवार को किया जायेगा।
वर्षी तप के व्रत वाले दिन पूर्ण रूप से भोजन का त्याग किया जाता है। और अगले दिन दो बार का भोजन किया जाता है, जिसमें एक बार प्रातः काल सूर्योदय से पहले और दूसरी बार सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण किया जाता है। ये एकांतर व्रत होता है, अर्थात् एक-एक दिन के अंतराल पर 13 माह तक जैन अनुयाई इस कठिन व्रत का पालन करते हैं, और आखा तीज पर पारण करते हैं।
जैन समाज में वर्षी तप एक महत्वपूर्ण पर्व माना गया है। ये एक कठोर तप है, जिसका पालन करना अत्यंत कठिन होता है। हालांकि जिन अनुयायियों के लिए इस व्रत के नियमों का पालन करना संभव नहीं है, वह भगवान आदिनाथ की आराधना करके, उनके द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलकर, जप व दान करके इस व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त कर सकते हैं। वर्षी तप के दौरान तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा अनुयायियों को बुरे विचारों से दूर रहना चाहिए।
ऐसा कहा जाता है कि जब 13 महीने के निरंतर उपवास के बाद भगवान आदिनाथ के पुत्र ने उन्हें गन्ने का रस भेंट किया, तो उसी से उन्होंने इस व्रत का पारण किया। इस कारण वर्षी तप करने वाले अनुयाई आज भी आखा तीज के दिन गन्ने का रस ग्रहण कर उपवास का पारण करते आ रहे हैं। कई अनुयायी पालीताणा तीर्थ गुजरात व उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर जाकर वर्षी तप का विशेष रुप से पारण करते हैं। आखा तीज के दिन वर्षी तप पारण के रूप में एक विशेष महोत्सव का आयोजन होता है। ये आयोजन जैन समुदाय के अनुयायियों द्वारा पावन तीर्थों पर किया जाता है। इस दौरान भगवान आदिनाथ की प्रक्षाल पूजा की जाती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन किसी पुण्य भूमि पर पारण महोत्सव में भाग लेने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
एक प्रचलित कथा के अनुसार कुछ समय तक सुख पूर्वक राज्य करने के पश्चात ऋषभदेव अपना समस्त राज-पाट अपने पुत्रों को सौंपकर तपस्या के लिए निकल पड़े। तपस्या पूर्ण होने के पश्चात जब वह भिक्षा मांगने के लिए जाते तो लोग उन्हें बहुमूल्य रत्न देते, लेकिन उन्हें कोई भोजन नहीं देता था। इस प्रकार उन्होंने निरंतर 400 दिनों तक उपवास रखकर भ्रमण किया। अंततः अक्षय तृतीया के दिन जब वह अपने पौत्र श्रेयांश के राज्य हस्तिनापुर पहुंचे, तो श्रेयांश ने उन्हें गन्ने का रस भेंट किया। उसी गन्ने के रस का पान करके उन्होंने अपने इस उपवास का पारण किया। ऐसी मान्यता है कि इक्षु यानि गन्ने का रस ग्रहण करने के कारण उनके वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश पड़ा।
आदिनाथ का उपवास उनके अनुयायियों के लिए तक साधना का एक मार्ग बन गया। तब से लेकर आज तक जैन समुदाय के लोग इस कठिन व्रत का पालन करते आ रहे हैं।
दोस्तों, हमें आशा है कि इस लेख के माध्यम से आपको वर्षी तप पारण से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
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