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वराह जयंती 2025 कब है?

वराह जयंती 2025 की तिथि, पूजा विधि, वराह अवतार की कथा और व्रत से जुड़ी संपूर्ण जानकारी जानें। यह दिन धर्म की रक्षा और भगवान विष्णु के शक्तिशाली स्वरूप की आराधना का प्रतीक है।

वराह जयंती के बारे में

वराह जयंती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह स्वरूप की जयंती है। इस दिन भक्त भगवान वराह की पूजा करते हैं, धर्म-कर्म में संलग्न रहते हैं और सुख-समृद्धि तथा पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।

कब मनाई जाएगी वराह जयंती?

भगवान विष्णु के तीसरे अवतार के अवतरण होने की तिथि को हर साल वराह जयंती के रूप में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। भगवान विष्णु के वराह अवतार को उद्धारक देवता के रूप में भी जाना जाता है। तो आइए, हम आपको प्रभु के इस अवतार के से जुड़ी संपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं।

वराह जयन्ती का शुभ मुहूर्त व तिथि

  • वराह जयंती, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाई जाती है।
  • इस साल वराह जयन्ती 26 अगस्त 2025, मंगलवार को पड़ रही है।
  • वराह जयन्ती मुहूर्त - 01:16 PM से 03:50 PM तक रहेगा
  • अवधि - 02 घण्टे 33 मिनट्स
  • तृतीया तिथि प्रारम्भ - 25 अगस्त 2025 को 12:34 PM बजे से
  • तृतीया तिथि समाप्त - 26 अगस्त 2025 को 01:54 PM बजे तक होगा।

वराह जयंती के दिन के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:06 ए एम से 04:51 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:29 ए एम से 05:36 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:34 ए एम से 12:25 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:07 पी एम से 02:58 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:23 पी एम से 06:45 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:23 पी एम से 07:30 पी एम तक

अमृत काल

11:30 पी एम से 01:15 ए एम, 27 अगस्त तक

निशिता मुहूर्त

11:37 पी एम से 12:22 ए एम, 27 अगस्त तक

रवि योग

पूरे दिन

क्या है वराह जयंती?

वराह जयंती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार की स्मृति में मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाकर छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किया। इस दिन को धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के नाश के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

क्यों मनाते हैं वराह जयन्ती?

वराह जयंती को मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य है —

  • भगवान विष्णु के वराह रूप की आराधना करना,
  • अधर्म पर धर्म की विजय की स्मृति,
  • पृथ्वी माता के उद्धार के लिए भगवान के अवतरण का सम्मान,
  • और पापों से मुक्ति की कामना।
  • इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं, वराह अवतार की कथा का पाठ करते हैं, और विशेष पूजा-अर्चना द्वारा भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

वराह जयंती का महत्व क्या है?

हिंदू धर्म में वराह जयंती के पर्व का एक विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और उनके वराह स्वरुप की पूजा करने से, इंसान के जीवन में खुशियों का संयोग बनता है। ऐसा भी माना जाता है, कि जो लोग वराह जयंती का व्रत सच्चे मन से रखते हैं, उनका सोया हुआ भाग्य जाग जाता है। साथ ही जातक की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती है।

भगवान विष्णु ने वराह का कल्याणकारी अवतार बुरी शक्तियों का अंत करने के लिए लिये लिया था, ऐसे में इस दिन उनकी पूजा करने वाले मनुष्य की सभी भूल व पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा वराह जयंती की पूजा के बाद इस दिन ज़रुरतमंदों को धन, वस्त्र व अन्य चीजों का दान करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।

कौन थे वराह भगवान?

  • वराह भगवान, भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माने जाते हैं। यह अवतार उन्होंने उस समय लिया जब हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी (भूमि देवी) को पाताल लोक में डुबो दिया था।
  • भगवान विष्णु ने वराह (एक विशाल जंगली सूअर) का रूप धारण कर समुद्र में प्रवेश किया, राक्षस का वध किया और पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर पुनः आकाश में स्थिर किया।
  • वराह अवतार धर्म की पुनर्स्थापना, असुरों के विनाश और पृथ्वी माता के उद्धार का प्रतीक है।

कौन से लोग मना सकते हैं वराह जयन्ती?

वराह जयंती सभी भक्तों के लिए उपयुक्त है, लेकिन विशेष रूप से निम्न लोग इसका पालन कर सकते हैं:

  • जिनके जीवन में बार-बार भूमि से संबंधित समस्याएं, जैसे ज़मीन विवाद, मकान की बाधाएं या वास्तु दोष हों
  • जो धार्मिक साधना, व्रत और उपवास में श्रद्धा रखते हैं
  • जो पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं
  • गृहस्थ, साधक, ब्रह्मचारी, स्त्री-पुरुष सभी इस व्रत को कर सकते हैं

वराह जयंती की पूजाविधि

  • सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • घर के पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करें।
  • भगवान विष्णु या वराह रूप की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • पीले पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
  • “ॐ वराहाय नमः” या “ॐ श्री वराहाय विष्णवे नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
  • वराह स्तुति या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • व्रत रखें और दिनभर सात्विक आहार ग्रहण करें।
  • शाम को भगवान को दीप अर्पित कर आरती करें।

वराह जयंती के दिन धार्मिक अनुष्ठान

  • वराह अवतार कथा का श्रवण या पाठ
  • विष्णु मंदिर में दर्शन और सेवा
  • गरीबों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा का दान
  • घर में श्रीसुक्त, नारायण कवच या श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ
  • संध्या के समय पीत वस्त्रधारी ब्राह्मण को भोजन कराना

वराह जयंती मनाने के लाभ

  • भूमि से जुड़ी सभी बाधाओं का निवारण
  • पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति
  • जीवन में सुख, शांति और स्थिरता
  • घर-परिवार में धार्मिकता और समृद्धि
  • भगवान विष्णु की कृपा से मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति

वराह जयंती से जुड़ी पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, वराह अवतार में भगवान विष्णु आधे शुकर एवं आधे इंसान के रूप में अवतरित हुए थे। अपने इस अवतार में भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष नामक दैत्य का अन्त करके संपूर्ण जगत की रक्षा की थी। तभी से भगवान विष्णु के इस स्वरुप की पूजा की जाती है, और इस अवतार के जन्मोत्सव को वराह जयंती के रूप में मनाया जाता है।

इन मंदिरों में होता है विशेष आयोजन

वराह जयंती देश के कई हिस्सों में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। वहीं, देश के कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जहाँ इस त्योहार में भगवान के दर्शन के लिये, भक्तों की भीड़ लगी रहती है। ऐसा ही एक मंदिर, तिरुमाला में स्थित 'भुवराह स्वामी मंदिर' है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 16वीं शताब्दी में हुआ था। यहाँ वराह जयंती के दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति को नारियल के पानी से नहलाया जाता है, फिर उनकी पूजा की जाती है।

ऐसा ही एक और पुराना मंदिर भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के छतरपुर क्षेत्र में भी मौजूद है, जिसका निर्माण 11 वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर "वराह मंदिर खजुराहो" के नाम से प्रसिद्ध है और इस स्मारक को, यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत का एक धरोहर क्षेत्र भी माना गया है। भगवान वराह के जन्मदिन पर यहाँ भव्य आयोजन किया जाता है।

वराह जयंती उत्सव की कहानी

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, जब सृष्टि के प्रारंभिक काल में पृथ्वी असुर हिरण्याक्ष द्वारा जल में डुबा दी गई, तब देवता अत्यंत चिंतित हो उठे। तब भगवान विष्णु ने वराह का रूप लिया, और समुद्र में प्रवेश कर हिरण्याक्ष से घोर युद्ध किया। अंततः उसका वध कर उन्होंने पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाया और ब्रह्मा को सौंप दिया। यह विजय धर्म पर अधर्म की जीत का प्रतीक बनी। तभी से इस दिन को वराह जयंती के रूप में मनाया जाने लगा।

तो भक्तों, यह थी वराह जयंती से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि वराह भगवान आप पर अपनी कृपा बनाए रखें, और आपको प्रभावित करने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश करें। ऐसी ही धार्मिक जानकारियों के लिये जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' पर।

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Published by Sri Mandir·August 8, 2025

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